
US and Pakistan officials review rare earth mineral samples during a high-level meeting, highlighting new strategic cooperation. | Shah Times
रेयर अर्थ मिनरल्स की खेप और पाकिस्तान की नई मुश्किलें
अमेरिका-पाकिस्तान मिनरल साझेदारी पर सियासी बवाल
📍इस्लामाबाद,06 अक्टूबर 2025✍️Asif Khan
पाकिस्तान ने पहली बार अमेरिका को रेयर अर्थ मिनरल्स की खेप भेजकर नई स्ट्रैटेजिक डील की शुरुआत की है। लेकिन इमरान खान की पार्टी PTI और कई एक्सपर्ट्स इसे “सीक्रेट डील्स” का नाम देते हुए सवाल उठा रहे हैं। यह मामला सिर्फ मिनरल्स का नहीं बल्कि पाकिस्तान की जियोपॉलिटिकल पोजिशनिंग, कर्ज़ के दबाव और अमेरिका-चीन बैलेंस से भी जुड़ा है।
पाकिस्तान की सीक्रेट डील्स: संसाधन या सरेंडर?
दुनिया में रेयर अर्थ मिनरल्स (Rare Earth Minerals) आज के दौर का नया ऑयल माने जाते हैं। यह वही संसाधन हैं जिनसे हाई-टेक हथियार, मोबाइल, EV बैटरी और एयरोस्पेस इंडस्ट्री चलती है। पाकिस्तान का दावा है कि उसके पास 6 खरब डॉलर से ज्यादा के मिनरल रिजर्व्स मौजूद हैं। मगर सवाल यह है कि इतनी बड़ी दौलत के बावजूद पाकिस्तान बार-बार कर्ज़दार क्यों बन रहा है?
सितंबर में पाकिस्तान और अमेरिकी कंपनी US Strategic Minerals (USSM) के बीच जो समझौता हुआ, वह इस सवाल को और पेचीदा बना देता है। अमेरिका ने पाकिस्तान से एंटिमनी, कॉपर कॉन्सन्ट्रेट और रेयर अर्थ मिनरल्स (Neodymium और Praseodymium) के सैंपल रिसीव किए। व्हाइट हाउस ने खुद तस्वीर जारी की जिसमें ट्रंप को पाकिस्तान के आर्मी चीफ़ जनरल आसिम मुनीर मिनरल सैंपल्स दिखा रहे थे। यह तस्वीर महज़ डिप्लोमैटिक जेस्चर नहीं बल्कि एक मेसेज था कि पाकिस्तान अपनी खनिज दौलत अब वॉशिंगटन के सामने रखने को तैयार है।
पाकिस्तानी मीडिया और सियासी हल्कों में उठ रहे सवाल
पाकिस्तानी अख़बारों और सियासी हल्कों में यह सवाल उठ रहा है कि “क्या पाकिस्तान अपनी जमीन और बंदरगाह भी उसी तरह गवां देगा जैसे कभी सूरत के बंदरगाह से ईस्ट इंडिया कंपनी का रास्ता खुला था?” PTI लीडर्स इसे सीधे तौर पर “क़ौमी मफ़ाद के ख़िलाफ़ सीक्रेट डील” बता रहे हैं। उनका कहना है कि बलूचिस्तान के पासनी पोर्ट को अमेरिका को ऑफर करना वही ग़लती है जो पहले चीन के साथ ग्वादर पोर्ट देकर की गई थी।
एक तरफ़ शहबाज़ शरीफ़ सरकार का दावा है कि यह डील पाकिस्तान की इकोनॉमी को संभालने और ग्लोबल मार्केट में जगह बनाने का मौका है, दूसरी तरफ़ आलोचकों का कहना है कि यह डील वॉशिंगटन की स्ट्रैटेजिक ज़रूरतें पूरी करने का ज़रिया है।
अमेरिका को क्यों ज़रूरत है?
अमेरिका लंबे समय से रेयर अर्थ मिनरल्स के लिए चीन पर डिपेंड रहा है। चीन दुनिया की 60% से ज्यादा सप्लाई कंट्रोल करता है। ऐसे में पाकिस्तान जैसे देश से मिनरल्स लेना वॉशिंगटन के लिए स्ट्रैटेजिक बैलेंस का हिस्सा है। यह सिर्फ़ मिनरल्स की बात नहीं बल्कि इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी का हिस्सा है।
पाकिस्तान की दुविधा
पाकिस्तान एक तरफ़ चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का अहम पार्ट है, वहीं अब अमेरिका को भी अपने बंदरगाह और मिनरल्स ऑफर कर रहा है। यह डबल प्ले पाकिस्तान को और गहरी मुसीबत में डाल सकता है। चीन कभी नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान का स्ट्रैटेजिक पोर्ट अमेरिका के हाथ लगे। ऐसे में पाकिस्तान दो महाशक्तियों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में खुद असंतुलन का शिकार हो सकता है।
जनरल मुनीर और “स्ट्रेटेजिक सिग्नल”
यह डील पाक आर्मी के बिना मुमकिन नहीं थी। FWO (Frontier Works Organization) की मौजूदगी बताती है कि यह सिर्फ़ ट्रेड डील नहीं बल्कि मिलिटरी-ड्रिवन पॉलिसी है। तस्वीर में ट्रंप और मुनीर की मुलाक़ात भी यही बताती है कि पाकिस्तानी आर्मी सीधा वॉशिंगटन के साथ डील कर रही है।
PTI की चिंता
इमरान खान की पार्टी ने कहा कि पाकिस्तान की जनता को अंधेरे में रखकर यह डील की गई। उन्होंने संसद में ओपन डिबेट की मांग की और कहा कि “हम किसी भी ऐसी डील को क़बूल नहीं करेंगे जो मुल्क के मफ़ादात के खिलाफ हो।”
नतीजा
यह डील पाकिस्तान के लिए आर्थिक अवसर भी है और राजनीतिक संकट भी। अगर यह मिनरल्स सही दिशा में एक्सप्लोर और डेवेलप किए जाएं तो पाकिस्तान वाकई अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। लेकिन अगर यह सिर्फ़ विदेशी शक्तियों के हित में इस्तेमाल हुए तो यह वही गलती होगी जो इतिहास में कई बार दोहराई गई।