
Afghanistan Pakistan border tension , Taliban and Pakistani army clash near Durand Line
तालिबान बनाम पाकिस्तान: दोस्ती से दुश्मनी तक का सफ़र
Durand Line पर बारूद की गंध: क्या फिर दोहराएगा इतिहास खुद को?
📍 काबुल 🗓️ 12 अक्टूबर 2025✍️आसिफ़ ख़ान
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव एक बार फिर खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है। तालिबान नेतृत्व वाली अफगान सेना ने दावा किया है कि उन्होंने डूरंड लाइन के पास पाकिस्तानी चौकियों पर कब्ज़ा कर लिया है। दोनों तरफ़ से भारी गोलीबारी जारी है और 58 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत और एक टैंक के कब्जे की तस्दीक अफ़ग़ान मीडिया ने की है। यह टकराव उस वक्त हुआ जब दोनों देशों के बीच भरोसे की डोर पहले ही कमज़ोर थी। सऊदी अरब और क़तर जैसे मुस्लिम मुल्कों ने संयम और बातचीत की अपील की है, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त बताती है कि यह झगड़ा केवल सीमा तक सीमित नहीं है — इसके पीछे राजनीति, इतिहास और अविश्वास की लंबी कहानी छिपी है।
सरहद पर बढ़ता तनाव — गोलीबारी से बयानबाज़ी तक
अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा कि “तालिबान बलों ने कुनर और हेलमंद प्रांतों में डूरंड लाइन के पार स्थित पाकिस्तानी सेना की कई चौकियों पर कब्ज़ा कर लिया है।” इस बयान के कुछ घंटे बाद पाकिस्तान की ओर से जवाबी कार्रवाई शुरू हो गई।
पाकिस्तानी मीडिया का दावा है कि अफगान चौकियों को आर्टिलरी, टैंकों और हवाई हमलों से निशाना बनाया गया। वहीं अफगान सूत्रों के मुताबिक उन्होंने पाकिस्तान का एक टैंक अपने कब्जे में ले लिया है।
इस ऑपरेशन में 58 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए, जबकि 30 अन्य घायल हुए।
जवाब में, पाकिस्तानी सेना ने कहा कि उसके केवल 25 सैनिक मारे गए, जबकि उसने 200 तालिबान लड़ाकों को मार गिराया था।
इस तरह की बयानबाज़ी और एक-दूसरे के दावे बताते हैं कि दोनों देशों के बीच भरोसा पूरी तरह टूट चुका है। तालिबान शासन के आने के बाद पाकिस्तान ने जो उम्मीदें लगाई थीं — कि काबुल अब “दोस्त” बनेगा — वे अब धूल में मिलती नज़र आ रही हैं।
Durand Line — सरहद नहीं, ज़ख़्म
डूरंड लाइन कोई साधारण सीमा नहीं है। यह एक सौ पच्चीस साल पुराना जख़्म है जो अफगान मानस में अब तक हरा है। 1893 में ब्रिटिश अफ़सर मोर्टिमर डूरंड ने इस सीमा रेखा को खींचा था, जिसने पश्तून इलाकों को दो हिस्सों में बाँट दिया।
आज भी अफगानिस्तान की आम अवाम इस लाइन को “ग़ैरक़ानूनी” मानती है, जबकि पाकिस्तान इसे अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमा कहता है। यही विवाद बार-बार हिंसा का रूप ले लेता है।
काबुल की सत्ता बदलने के बाद उम्मीद थी कि तालिबान इस सीमा को लेकर समझौता करेंगे, लेकिन अब वही तालिबान पाकिस्तान को “हद में रहने” की चेतावनी दे रहे हैं।
तालिबान–पाकिस्तान रिश्ते: दोस्ती से अविश्वास तक
जब 2021 में अमेरिकी फ़ौजें अफगानिस्तान से निकलीं, तो पाकिस्तान ने तालिबान की जीत को अपनी “रणनीतिक सफलता” कहा था। लेकिन तीन साल बाद हालात उलट गए हैं।
तालिबान अब पाकिस्तान को वही “बाहरी दखल” मानने लगे हैं, जो पहले अमरीका या भारत को कहा जाता था।
पाकिस्तान ने शुरू में तालिबान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मदद दी, लेकिन बदले में उसे सीमा पार आतंक और टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) के हमलों का सामना करना पड़ा।
इस्लामाबाद को उम्मीद थी कि काबुल टीटीपी को नियंत्रित करेगा, लेकिन तालिबान ने हमेशा कहा — “हम अफगान हैं, पाकिस्तानी तालिबान से हमारा कोई लेना-देना नहीं।”
यहीं से रिश्तों में ठंडक आई।
हवाई हमले और जवाबी टकराव
कुछ दिन पहले पाकिस्तान ने कथित तौर पर काबुल के पास हवाई हमला किया था, जिसे अफगानिस्तान की 201 खालिद बिन वालिद आर्मी कोर ने “उकसाने वाला कदम” कहा।
इसके बाद अफगान पक्ष ने नंगरहार और कुनर के सैन्य ठिकानों पर जवाबी हमले किए।
हालाँकि पाकिस्तान ने इस हवाई हमले की न तो पुष्टि की, न ही खंडन — मगर जमीनी सच्चाई ये है कि दोनों देश अब एक-दूसरे पर सीधे निशाना साध रहे हैं।
इन हमलों के बाद सोशल मीडिया पर दोनों देशों के समर्थक एक-दूसरे पर भड़काऊ टिप्पणियाँ कर रहे हैं, जिससे माहौल और गर्म हो गया है।
सऊदी अरब और क़तर की अपील — शांति या रणनीति?
सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया — “सऊदी अरब इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच हो रहे तनाव पर चिंता व्यक्त करता है और आत्म-संयम बरतने की अपील करता है।”
यह बयान कूटनीतिक रूप से संतुलित है, लेकिन दिलचस्प यह है कि सऊदी अरब हाल ही में पाकिस्तान के साथ एक रक्षा समझौता साइन कर चुका है — जिसमें कहा गया था कि किसी एक पर हमला, दोनों पर हमला माना जाएगा।
तो क्या सऊदी वाक़ई निष्पक्ष है, या वह पाकिस्तान के साथ अपनी नई सामरिक साझेदारी को बचाने की कोशिश कर रहा है?
दूसरी तरफ़, क़तर ने भी संयम की अपील की और बातचीत को “सबसे अहम रास्ता” बताया। क़तर अफगान शांति वार्ता का मेज़बान रह चुका है, इसलिए उसका बयान प्रतीकात्मक नहीं बल्कि गंभीर महत्व रखता है।
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भारत, चीन और ईरान की निगाहें
भारत ने इस संघर्ष पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन नई दिल्ली के रणनीतिक हल्कों में इसे “पाकिस्तानी असुरक्षा” का नतीजा माना जा रहा है।
अगर अफगान–पाकिस्तान सीमा अस्थिर होती है, तो चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजनाओं पर भी असर पड़ेगा, ख़ासकर सीपेक (CPEC) के रास्ते।
ईरान, जो पहले ही अपने सीमावर्ती इलाकों में अशांति से परेशान है, अब अफगानिस्तान के दक्षिणी क्षेत्र पर नजर रख रहा है।
कुल मिलाकर यह टकराव सिर्फ़ दो देशों की सीमा नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
अफगान जनता और ज़मीनी सच्चाई
काबुल, जलालाबाद और हेरात में रहने वाले आम लोगों के लिए यह टकराव किसी युद्ध की तरह है जो बिना एलान के चल रहा है।
सड़कों पर अफवाहें हैं कि पाकिस्तान जल्द ही बड़े पैमाने पर सैन्य कार्रवाई करेगा, जबकि तालिबान के प्रवक्ता दावा कर रहे हैं कि “हमने पाकिस्तान को जवाब दे दिया है, अब वे सोच-समझकर कदम उठाएँ।”
लेकिन इस सब के बीच, सबसे ज़्यादा नुकसान सीमावर्ती लोगों का हो रहा है — जिनकी ज़िंदगी हर बार गोलियों के बीच फँस जाती है।
मीडिया नैरेटिव्स और प्रचार युद्ध
अफगान और पाकिस्तानी मीडिया दोनों अपनी-अपनी कहानी गढ़ रहे हैं।
पाकिस्तानी चैनल तालिबान को “बेकाबू ताक़त” बता रहे हैं, जबकि अफगान चैनल इसे “रक्षा की कार्रवाई” कहते हैं।
सोशल मीडिया पर नकली वीडियो, पुराने युद्ध फुटेज और भड़काऊ टिप्पणियाँ वायरल हो रही हैं।
यह आधुनिक युद्ध सिर्फ़ बंदूक का नहीं, बल्कि “नैरेटिव” का भी है — जहाँ सच्चाई किसी की भी नहीं रहती।
भविष्य का रास्ता — जंग या बातचीत?
अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों जानते हैं कि सीधी जंग किसी के हक में नहीं जाएगी।
लेकिन “अहंकार” और “भरोसे की कमी” दोनों को शांति की मेज़ से दूर रख रहे हैं।
संभव है कि आने वाले हफ़्तों में ओआईसी (Organisation of Islamic Cooperation) या चीन जैसे मध्यस्थ देश शांति वार्ता की पहल करें।
फिर भी, जब तक तालिबान शासन और पाकिस्तान सेना अपने-अपने नैरेटिव से बाहर नहीं निकलते, तब तक सरहद पर गोलियों की आवाज़ें बंद होना मुश्किल है।