
Donald Trump appears tense as Gaza burns in the background, reflecting the failure of his 20-point peace plan.
गाजा शांति प्रस्ताव का पतन: ट्रंप पीस प्लान पर हमास का वीटो
“निरस्त्रीकरण नहीं करेंगे” — हमास का ऐलान और अमेरिका की बढ़ी मुश्किलें
📍शर्म अल-शेख, मिस्र🗓️12 अक्टूबर 2025✍️असिफ़ ख़ान
गाजा में शांति बहाल करने के अमेरिकी नेतृत्व वाले प्रयास उस वक़्त गहरे संकट में पड़ गए जब हमास ने ट्रंप की 20-सूत्रीय शांति योजना पर साइन करने से इनकार कर दिया। बंधकों की रिहाई और युद्धविराम का पहला चरण सफल रहा, लेकिन राजनीतिक समझौते की नींव ढह गई है। निरस्त्रीकरण और क्षेत्र छोड़ने की शर्तों पर हमास के वीटो ने न केवल ट्रंप के कूटनीतिक अभियान को झटका दिया है बल्कि पूरे मध्य-पूर्व में नए युद्ध की आहट तेज़ कर दी है।
गाजा में शांति की कोशिश नाकाम, शर्म-अल-शेख सम्मेलन पर छाया संकट
चरण 1 की सफलता, लेकिन शांति की राह बंद
गाज़ा की जंग थमने के बाद उम्मीद थी कि अमन की सुबह अब दूर नहीं। ट्रंप प्रशासन ने कतर और मिस्र की मध्यस्थता से एक समझौते का खाका तैयार किया — दो चरणों में।
पहला चरण था बंधकों की अदला-बदली और मानवीय सहायता, और दूसरा चरण — राजनीतिक समाधान और निरस्त्रीकरण।
पहले चरण में प्रगति हुई। सोमवार सुबह तक हमास करीब 20 जीवित इज़राइली बंधकों को रिहा करने जा रहा था, जिसके बदले इज़रायल 2,000 फिलिस्तीनी क़ैदियों को छोड़ेगा। यह कदम राहत की सांस जैसा लगा। मगर यह शांति का स्थायी रास्ता नहीं, बस एक अस्थायी राहत थी।
जैसे ही बात दूसरे चरण की आई — यानी निरस्त्रीकरण और गाज़ा से हमास का बाहर निकलना — सब कुछ टूट गया।
हमास का वीटो और अस्तित्व की जंग
हमास के राजनीतिक ब्यूरो के वरिष्ठ सदस्य होसम बदरान ने साफ़ कहा, “हम मिस्र में किसी औपचारिक साइनिंग में हिस्सा नहीं लेंगे।” उनका यह बयान दरअसल एक राजनीतिक वीटो था — जो इस शांति प्रक्रिया को वहीं रोक देता है।
बदरान ने आगे कहा कि हथियार छोड़ना बातचीत के दायरे से बाहर है। उन्होंने कहा, “ये हथियार सिर्फ हमास के नहीं, पूरे फ़िलिस्तीनी अवाम के हैं।”
यानी उनके लिए ये हथियार सिर्फ युद्ध के औज़ार नहीं बल्कि मौजूदगी की पहचान हैं।
इस बयान से यह साफ़ है कि हमास के लिए निरस्त्रीकरण का मतलब आत्मसमर्पण है — जो उसके राजनीतिक और वैचारिक अस्तित्व को ख़तरे में डालता है।
ट्रंप की शांति योजना — इरादे नेक, पर हकीकत कठोर
ट्रंप की 20-सूत्रीय योजना को अमेरिकी मीडिया में “boldest peace blueprint” कहा गया। इसमें “terror-free Gaza” की बात की गई थी, एक ऐसा इलाका जहाँ हथियार नहीं होंगे और प्रशासन एक अंतरराष्ट्रीय बोर्ड संभालेगा।
लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि गाज़ा सिर्फ राजनीतिक मुद्दा नहीं, यह इज़्ज़त और पहचान का सवाल है। हमास के लिए हथियार छोड़ना, उसके समर्थकों के लिए आत्मसमर्पण जैसा होगा। वहीं इज़रायल के लिए बिना निरस्त्रीकरण के पीछे हटना सुरक्षा के लिहाज से असंभव है।
इसलिए यह योजना भले ही कूटनीतिक कागज़ों में सुंदर लगे, पर व्यावहारिक नहीं।
शर्म अल-शेख सम्मेलन: उम्मीद या औपचारिकता?
मिस्र के शर्म अल-शेख में सोमवार को होने वाले सम्मेलन की तैयारी जोरों पर है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सीसी इसकी सह-अध्यक्षता करेंगे।
भारत, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली सहित 20 से ज़्यादा देशों के प्रतिनिधि इसमें शामिल हो रहे हैं।
लेकिन असली खिलाड़ी — यानी हमास, इज़रायल और फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) — इसमें मौजूद नहीं होंगे।
PA को तो व्हाइट हाउस ने बुलाया ही नहीं, क्योंकि उसे “सुधार की ज़रूरत” बताई गई है।
ऐसे में यह सम्मेलन अब किसी शांति समझौते पर मुहर लगाने से ज़्यादा, राजनीतिक समर्थन और आर्थिक फंडिंग जुटाने का मंच बन गया है।
कूटनीतिक तर्क बनाम ज़मीनी सच्चाई
एक तरफ़ अमेरिका और उसके सहयोगी देशों का मानना है कि गाज़ा में शांति तभी आएगी जब हमास पूरी तरह से निरस्त्र हो।
दूसरी तरफ़ हमास का कहना है कि “निरस्त्रीकरण = कब्ज़े की इजाज़त।”
इन दोनों दृष्टिकोणों के बीच कोई मध्य मार्ग नज़र नहीं आता।
कतर और मिस्र के मध्यस्थों ने कोशिश की कि “partial disarmament” यानी सीमित निरस्त्रीकरण का विकल्प निकले, लेकिन हमास ने इसे भी “धोखा” कहा।
एक वरिष्ठ मिस्री राजनयिक के शब्दों में — “अगर किसी समूह को अपनी रक्षा का अधिकार छीन लिया जाए, तो वह शांति नहीं बल्कि आत्मसमर्पण कहलाएगा।”
अमेरिका की रणनीतिक मुश्किल
ट्रंप प्रशासन के लिए यह स्थिति शर्मिंदगी से कम नहीं।
ट्रंप ने इस शांति योजना को अपने दूसरे कार्यकाल की बड़ी विदेश नीति उपलब्धि के रूप में पेश किया था।
लेकिन अब जब हमास ने वीटो लगाया है, तो यह पूरी प्रक्रिया उनके नेतृत्व की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर रही है।
अमेरिकी प्रेस का कहना है कि व्हाइट हाउस अब “Plan B” पर विचार कर रहा है — यानी “Phase 2” को बिना हमास की सहमति के लागू करना।
पर ऐसा करने का मतलब है सीधा सैन्य टकराव।
गाज़ा में युद्ध की वापसी?
इज़रायल की सुरक्षा कैबिनेट पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि जब तक हमास हथियार नहीं डालता, वह “पूर्ण वापसी” नहीं करेगा।
दूसरी तरफ़ हमास के प्रवक्ताओं ने दो टूक कहा — “अगर इज़रायल ने हमला किया तो हम जंग लड़ेंगे।”
इसका मतलब है कि वर्तमान “मानवीय युद्धविराम” बेहद नाजुक है।
बंधकों की रिहाई के बाद ही अगर गोलीबारी फिर शुरू हो जाती है, तो पूरा क्षेत्र फिर से आग में झोंक दिया जाएगा।
ट्रंप के सपनों पर फिरा पानी
डोनाल्ड ट्रंप को उम्मीद थी कि यह सम्मेलन “मध्य पूर्व में स्थायी शांति” की दिशा में मील का पत्थर बनेगा।
लेकिन अब जब हमास ने “साइन” करने से इनकार कर दिया है, तो उनके सपने को करारा झटका लगा है।
अमेरिकी मीडिया ने इसे “Trump’s biggest diplomatic setback” कहा।
ट्रंप के आलोचक कह रहे हैं कि यह योजना ज़मीनी वास्तविकताओं से कटी हुई थी।
उनके समर्थक मानते हैं कि अगर दुनिया सच में शांति चाहती है तो उसे “हमास जैसे समूहों से सख्ती” दिखानी ही होगी।
एक मानवीय सवाल
गाज़ा में आम लोग इस जंग के सबसे बड़े शिकार हैं।
हर नई गोली, हर नया बम — किसी माँ का बेटा, किसी बच्चे का भविष्य छीन लेता है।
एक गाज़ा निवासी ने बीबीसी को कहा — “हमें शांति चाहिए, पर किसी की शर्तों पर नहीं।”
यह वाक्य शायद इस पूरे संकट का सार है।
शांति का रास्ता, जो अब भी धुंधला है
अभी बंधकों की अदला-बदली का चरण सफल हो सकता है, लेकिन आगे की राह बेहद कठिन है।
अगर ट्रंप और उनके सहयोगी सच में स्थायी समाधान चाहते हैं, तो उन्हें “पूर्ण निरस्त्रीकरण” जैसे अव्यवहारिक लक्ष्य छोड़कर “विश्वसनीय सुरक्षा आश्वासन और पुनर्निर्माण फंड” जैसे व्यावहारिक रास्तों पर ध्यान देना होगा।
क्योंकि अगर ज़मीन पर भरोसा नहीं बनेगा, तो कागज़ पर किया गया कोई भी समझौता सिर्फ़ एक विराम चिन्ह साबित होगा — वाक्य का अंत नहीं।