
US Ambassador Sergio Gor meets Indian Prime Minister Narendra Modi to deepen India-US strategic ties.
भारत-अमेरिका रिश्तों की बहार: सर्जियो गोर की डिप्लोमैटिक डगर
नई कूटनीति, नए संकेत: इंडो-पैसिफिक में बढ़ती साझेदारी
📍नई दिल्ली
🗓️ 13 अक्टूबर 2025
✍️ आसिफ़ ख़ान
अमेरिका के नए राजदूत सर्जियो गोर की भारत यात्रा ने दोनों देशों के बीच नई गर्माहट पैदा की है। डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद भारत-अमेरिका रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले, लेकिन अब ऐसा लगता है कि दोनों देश एक बार फिर रणनीतिक साझेदारी की राह पर हैं। गोर की मुलाकातें—पीएम मोदी, एस. जयशंकर, अजीत डोभाल, और विक्रम मिश्री से—इसी दिशा में बढ़ता भरोसा दिखाती हैं।
अक्सर कहा जाता है कि राजनीति में रिश्ते मौसम की तरह बदलते हैं—कभी गर्म, कभी ठंडे। भारत और अमेरिका के रिश्ते भी कुछ ऐसे ही हैं। जब डोनाल्ड ट्रंप दोबारा व्हाइट हाउस पहुँचे, तो भारत के लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। बहुतों ने यह उम्मीद जताई कि अब भारत-अमेरिका रिश्ते स्वर्ण युग में प्रवेश करेंगे। मगर हुआ इसका उल्टा—टैरिफ बढ़े, वीज़ा नीतियाँ सख्त हुईं, और व्यापार वार्ता ठंडी पड़ गई।
लेकिन अब, वक़्त का पहिया फिर घूमता नज़र आ रहा है। ट्रंप ने एक बार फिर पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ़ दोस्ताना हाथ बढ़ाया है। सर्जियो गोर की नियुक्ति और भारत यात्रा इसी दिशा का हिस्सा है।
गोर, जो ट्रंप के बेहद क़रीबी माने जाते हैं, केवल एक राजदूत नहीं बल्कि साउथ और सेंट्रल एशिया के लिए विशेष दूत भी हैं। यह अपने आप में बताता है कि अमेरिका अब इस क्षेत्र को लेकर गंभीर है—चाहे वो अफ़ग़ानिस्तान की स्थिरता का मामला हो या चीन की बढ़ती मौजूदगी का जवाब।
गोर की मुलाकातों से यह साफ़ झलकता है कि भारत और अमेरिका अब व्यापारिक रिश्तों से आगे बढ़कर रणनीतिक साझेदारी पर ध्यान दे रहे हैं। रक्षा, तकनीक, और खनिज संसाधनों जैसे क्षेत्रों में सहयोग की बातें अब सिर्फ़ दस्तावेज़ों में नहीं, बल्कि कार्ययोजनाओं में तब्दील हो रही हैं।
जयशंकर और डोभाल के साथ गोर की मीटिंग्स इस बात का संकेत हैं कि दोनों देश सुरक्षा और तकनीकी साझेदारी को लेकर एक साझा रोडमैप बना रहे हैं। अजीत डोभाल को ‘भारत का जेम्स बॉन्ड’ कहा जाता है, और उनके साथ गोर की मुलाकात सिर्फ़ एक औपचारिकता नहीं थी—यह गहराई से रणनीतिक संकेत देती है कि अमेरिका इंडो-पैसिफिक में भारत को अपने प्राथमिक साझेदार के रूप में देख रहा है।
दूसरी ओर, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों पर भी गोर की नज़र रहेगी। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह अमेरिका की ‘रीजनल बैलेंस स्ट्रैटेजी’ का हिस्सा है—जहां वो भारत के साथ मजबूत रिश्ता रखते हुए भी, पड़ोसी देशों में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहता है।
भारत के लिए यह चुनौती और अवसर दोनों है। एक तरफ़ उसे चीन की आक्रामक नीतियों से निपटना है, दूसरी तरफ़ अमेरिका के साथ रिश्ता संतुलित रखना है ताकि आत्मनिर्भर भारत की राह में कोई बाहरी दबाव न बने।
इस यात्रा का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि ट्रंप ने गाज़ा शांति वार्ता में पीएम मोदी को आमंत्रित किया है। यह आमंत्रण सिर्फ़ राजनीतिक औपचारिकता नहीं बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका को मान्यता देने जैसा है।
सर्जियो गोर की प्रेस ब्रीफिंग में यह साफ़ सुनाई दिया कि “राष्ट्रपति ट्रंप मोदी को न सिर्फ़ एक सहयोगी बल्कि व्यक्तिगत दोस्त मानते हैं।” यह बयान प्रतीकात्मक होते हुए भी बहुत कुछ कह जाता है।
संबंधों के इस नए दौर में व्यापार और निवेश को लेकर भी आशाएं जागी हैं। गोर ने यह भी बताया कि अमेरिका एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल को वाशिंगटन बुला रहा है, जहां एक “आशाजनक समझौता” होने की संभावना है। यह समझौता दोनों देशों के बीच आर्थिक रिश्तों को नई दिशा देगा।
दुनिया के मौजूदा हालात में, जब वैश्विक शक्तियाँ नई ध्रुवीयता की ओर बढ़ रही हैं, भारत-अमेरिका का साथ न सिर्फ़ दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए अहम होगा।
मगर, सवाल यह भी है कि क्या यह रिश्ता स्थायी गर्माहट में बदलेगा या फिर एक बार फिर ठंडे हवाओं में खो जाएगा?
अगर दोनों देश दीर्घकालिक नीतिगत स्पष्टता बनाए रखें, तो यह साझेदारी एशिया की रणनीतिक तस्वीर बदल सकती है। भारत को यहां अपनी स्वायत्तता और संतुलन दोनों संभालने होंगे।