
मिडिल ईस्ट में शांति का नया दौर और भारत की कूटनीतिक भूमिका
ट्रंप, नेतन्याहू और मोदी: एक नये भू-राजनीतिक समीकरण की कहानी
📍 नई दिल्ली, 13 अक्टूबर 2025
✍️ आसिफ़ ख़ान
गाज़ा युद्ध में दो साल बाद हुआ युद्धविराम केवल एक सैन्य समझौता नहीं बल्कि विश्व राजनीति का निर्णायक मोड़ है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता ने एक नए मिडिल ईस्ट की शुरुआत की है, और भारत ने इस मौके पर कूटनीतिक संतुलन का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया ने भारत-अमेरिका साझेदारी की नई दिशा को परिभाषित किया है — जहां मानवीय मूल्य और रणनीतिक हित एक साथ चलते हैं।
गाज़ा की धरती पर दो साल से धधक रही जंग आखिरकार थम गई है। हवा में बारूद की गंध की जगह अब उम्मीद की खुशबू है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता से हुआ यह सीज़फ़ायर समझौता न सिर्फ़ इस क्षेत्र के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए राहत की सांस है। इज़रायल और हमास के बीच बचे हुए बीस बंदियों की रिहाई के साथ यह संघर्ष एक नए मोड़ पर आ गया है।
ट्रंप ने यरूशलम में अपने संबोधन में कहा — “अब बंदूकें खामोश हैं, आसमान साफ़ है और पवित्र भूमि पर सुकून है।” यह बयान किसी राजनीतिक रणनीति से अधिक उस थकान की झलक दिखाता है जो निरंतर संघर्ष से पैदा हुई है।
भारत ने इस शांति प्रयास का खुले दिल से स्वागत किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “बंधकों की आज़ादी परिवारों की हिम्मत और राष्ट्रपति ट्रंप के अटूट शांति प्रयासों का प्रतीक है।” इस बयान में वह राजनयिक परिपक्वता झलकती है, जो भारत की विदेश नीति की पहचान बन चुकी है — “संतुलन और संवेदनशीलता”।
🌍 भारत-अमेरिका समीकरण की नई परिभाषा
आज के बदलते भू-राजनीतिक दौर में भारत और अमेरिका के रिश्ते केवल रणनीतिक साझेदारी नहीं बल्कि वैश्विक दृष्टिकोण का संतुलन बन चुके हैं। जब अमेरिका मध्य पूर्व में शांति का मार्ग तलाश रहा है, भारत उस राह पर एक नैतिक साथी के रूप में खड़ा है।
ट्रंप की कूटनीति पर कई बार सवाल उठते रहे हैं — उनका बेबाक अंदाज़, उनकी “डीलमेकिंग” शैली और कभी-कभी अतिवादी बयान। मगर गाज़ा समझौते ने यह दिखाया कि प्रैगमैटिज़्म (व्यावहारिकता) कभी-कभी आदर्शवाद से अधिक प्रभावी साबित होती है।
भारत ने इस प्रक्रिया में अपनी परिपक्व भूमिका निभाई — न इज़रायल के अंध-समर्थन में गया, न हमास के पक्ष में भावनात्मक बयानबाज़ी की। बल्कि उसने वही किया जो एक ज़िम्मेदार वैश्विक शक्ति को करना चाहिए — शांति के लिए समर्थन और स्थिरता के लिए सहयोग।
🤝 एक नया मिडिल ईस्ट, नई उम्मीदें
मिडिल ईस्ट हमेशा से संघर्ष का प्रतीक रहा है — धर्म, भूगोल और सत्ता की त्रिकोणीय लड़ाई। लेकिन इस बार कुछ अलग है। ट्रंप ने अरब नेताओं और मुस्लिम देशों को धन्यवाद देते हुए कहा कि “अब यह इलाक़ा दुश्मनी नहीं, साझेदारी की भाषा बोल रहा है।”
सऊदी अरब, यूएई, क़तर और मिस्र जैसे देशों ने हमास पर दबाव डालकर युद्धविराम को संभव बनाया। यह वही गठजोड़ है जो पिछले दशक में असंभव लगता था। यही वो “नया मिडिल ईस्ट” है जिसकी झलक ट्रंप ने अपने भाषण में दी — “This is not an end, it’s a beginning.”
भारत के लिए यह बदलाव कई मायनों में अवसर है। एक तरफ़ ऊर्जा सुरक्षा, दूसरी तरफ़ कूटनीतिक प्रभाव — दोनों ही अब इस क्षेत्र की स्थिरता से सीधे जुड़ गए हैं। जब तेल की राजनीति शांति में बदलती है, तो दिल्ली के लिए यह रणनीतिक वरदान होता है।
🕊️ भारत की कूटनीति और इस्लामी दुनिया से रिश्ते
भारत का मुस्लिम दुनिया से रिश्ता भावनात्मक भी है और व्यावहारिक भी। गाज़ा संकट के दौरान भारत ने मानवीय मदद, चिकित्सा आपूर्ति और संयुक्त राष्ट्र में संतुलित बयान देकर यह दिखाया कि वह किसी के खिलाफ़ नहीं, बल्कि इंसानियत के पक्ष में है।
यह नीति वही है जिसने भारत को आज ब्रिज बिल्डर बना दिया है — एक ऐसा देश जो अमेरिका और अरब दोनों की भरोसे की ज़मीन पर खड़ा है। क्वाड, I2U2 और Indo-Abraham Axis जैसी पहलें इसी सोच की उपज हैं।
भारत आज इस स्थिति में है कि वह अमेरिका के साथ रहकर भी अपनी स्वायत्त नीति पर कायम है। यही कूटनीति का असली मतलब है — “Friend of All, Ally of None but Partner to All.”
⚖️ आलोचना और वास्तविकता
हर सफलता के साथ आलोचना भी आती है। कुछ विश्लेषक कहते हैं कि ट्रंप का यह समझौता स्थायी नहीं रहेगा, यह केवल चुनावी कूटनीति है। वहीं कुछ अन्य का मानना है कि नेतन्याहू और हमास दोनों ही अपने-अपने घरेलू दबावों से निकलने के लिए यह “विराम” चाहते थे।
सवाल यह नहीं कि यह शांति कितनी लंबी चलेगी, बल्कि यह है कि क्या दुनिया इस मौके को स्थायी शांति में बदल पाएगी। भारत जैसे देशों के लिए यह परीक्षा है — क्या वे अपने प्रभाव से इस क्षेत्र को स्थिर बना सकते हैं या फिर यह एक और “political photo-op” बनकर रह जाएगा।
🌏 भविष्य की दिशा
भविष्य का मिडिल ईस्ट अब केवल युद्ध की खबरों से नहीं बल्कि आर्थिक सहयोग, तकनीकी साझेदारी और धार्मिक सह-अस्तित्व की नई कहानियाँ लिखेगा। भारत, अमेरिका और अरब देशों के बीच बढ़ता सहयोग यही संकेत देता है।
जैसे-जैसे भारत वैश्विक मंच पर उभर रहा है, उसकी ज़िम्मेदारी भी बढ़ रही है। गाज़ा समझौते जैसे मौके भारत के लिए अवसर हैं कि वह अपने “वसुधैव कुटुम्बकम” के दर्शन को व्यवहार में साबित करे।
✍️ निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप का यह कदम चाहे राजनीतिक हो या व्यक्तिगत, उसने एक ज़रूरी विराम दिया है — उन माताओं के आँसुओं को जो बंधक बच्चों की राह देख रही थीं, उन देशों को जो दशकों से युद्ध के धुएँ में साँस ले रहे थे।
भारत ने इस मौक़े पर वही किया जो एक परिपक्व राष्ट्र करता है — शांति की तरफ़ कदम बढ़ाया, लेकिन आंखें खुली रखीं। यह संतुलन ही भारत की असली ताकत है, और यही उसकी कूटनीति का चरित्र।