
Global tension over Rare Earth minerals as US threatens 100% tariffs and China tightens export rules.
Rare Earth के बहाने अमेरिका-चीन में नई Global Power Tussle
खनिजों से कूटनीति तक: Rare Earth पर बढ़ती तनातनी
📍New Delhi
🗓️ 14 October 2025
✍️ Asif Khan
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी दी है।
इसका जवाब देते हुए बीजिंग ने कहा — “हम जंग नहीं चाहते, मगर डरते भी नहीं।”
Rare Earth Minerals पर यह टकराव अब खनिज से ज़्यादा एक रणनीतिक युद्ध बन चुका है।
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ आज फिर आमने-सामने हैं।
इस बार मुद्दा है रेयर अर्थ मिनरल्स — यानी वो “अनमोल ज़र्रे” जो आधुनिक टेक्नोलॉजी की रूह हैं।
स्मार्टफोन से लेकर मिसाइल तक, इलेक्ट्रिक कार से लेकर सैटेलाइट तक — हर हाईटेक चीज़ इन पर टिकी है।
अब जब चीन ने इन खनिजों के निर्यात पर सख्ती बढ़ाई है, तो अमेरिका ने जवाब में टैरिफ का हथियार उठा लिया।
Rare Earth क्या हैं, और इतने अहम क्यों?
“Rare Earth” दरअसल 17 ऐसे तत्वों का समूह है जिनसे चुंबक (Magnets), बैटरी, लेज़र, और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज़ बनते हैं।
इनकी खासियत ये है कि इनका कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
इनसे निकलने वाली चमक, चुंबकत्व और इलेक्ट्रो-केमिकल रिएक्शन पूरी टेक्नोलॉजी की रीढ़ बन चुके हैं।
मिसाल के तौर पर —
एक iPhone में 8 से 10 Rare Earth तत्व होते हैं।
एक F-35 Fighter Jet में इनकी ज़रूरत 400 किलोग्राम तक होती है।
यानी ये सिर्फ खनिज नहीं, बल्कि “Strategic Minerals” हैं — जो Global Power Balance तय करते हैं।
चीन की पकड़: Monopoly in Making
आज दुनिया के 86% Rare Earth Minerals तीन देशों से आते हैं —
चीन, ऑस्ट्रेलिया और म्यांमार।
लेकिन Refining यानी शुद्धिकरण के खेल में अकेला चीन 70% से ज़्यादा हिस्सेदारी रखता है।
क्योंकि Refining मुश्किल है — इसमें यूरेनियम और थोरियम जैसे रेडियोएक्टिव तत्व निकलते हैं जिन्हें संभालना हर देश के बस की बात नहीं।
चीन ने इस मुश्किल को “मौका” बना लिया।
वहां की कंपनियों ने सस्ती लेबर और ढीले पर्यावरण नियमों का फायदा उठाकर पूरी दुनिया की सप्लाई चेन को अपने हाथ में ले लिया।
अब चीन अगर नियम बदल दे — तो पूरी दुनिया की टेक इंडस्ट्री हिल जाती है।
ट्रंप की रणनीति: Tariff as a Weapon
अमेरिका की दिक्कत यह है कि उसकी Defence Industry — F-35 Fighter Jet, Tomahawk Missile, Virginia-Class Submarine —
सब Rare Earth पर टिकी हैं।
और इनमें से ज्यादातर खनिज चीन से ही आते हैं।
इसलिए राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा:
“चीन अगर Rare Earth पर रोक लगाएगा, तो हम उसके Export पर 100% Tariff लगाएंगे।”
लेकिन चीन ने इसे “धमकी नहीं, चुनौती” की तरह लिया।
बीजिंग ने एलान किया —
“हम किसी भी सैन्य-संबंधित कंपनी को Rare Earth Export की मंज़ूरी नहीं देंगे।”
सीधे शब्दों में —
अमेरिकी Defence Chain से Rare Earth काट देना।
वैश्विक हलचल: हर देश अपनी चाल चल रहा है
अफगानिस्तान ने भारत को अपने खनिज सेक्टर में निवेश के लिए बुलाया है।
म्यांमार में कचिन इंडिपेंडेंस आर्मी ने पनवा शहर पर कब्जा कर लिया — Rare Earth का बड़ा केंद्र।
जापान फ्रांस के Rare Earth प्रोजेक्ट में $120 मिलियन डाल रहा है।
ऑस्ट्रेलिया ने कालगॉर्ली में पहला प्रोसेसिंग प्लांट शुरू किया।
एस्टोनिया ऐसे मैग्नेट बना रहा है जो 15 लाख इलेक्ट्रिक कारों को पावर देंगे।
हर देश समझ चुका है कि Rare Earth अब Oil 2.0 है —
जिसके पास ये खजाना है, वही भविष्य की तकनीकी ताकत लिखेगा।
चीन-अमेरिका तनाव: Diplomacy vs Economy
ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच बातचीत का सिलसिला फिर पटरी से उतरने लगा है।
चीनी प्रवक्ता लिन जियान ने कहा —
“हाई टैरिफ लगाकर कोई देश अपने हित नहीं बचा सकता। अमेरिका को आम सहमति पर चलना चाहिए।”
ट्रंप ने पलटवार में Truth Social पर लिखा —
“चिंता मत करो, सब ठीक होगा। राष्ट्रपति शी जिनपिंग सम्मानित नेता हैं।”
लेकिन यह सियासी मुलायमियत अंदर से उतनी ही सख्त है जितनी Rare Earth की चमक।
दोनों जानते हैं — यह जंग सिर्फ खनिजों की नहीं, Global Leadership की है।
क्यों नहीं थमेगी यह जंग?
AI, Clean Energy और Military Tech — सबको Rare Earth चाहिए।
नया Oil यही है — मगर सीमित हाथों में।
Supply Chain Decoupling आसान नहीं।
Strategic Autonomy अब हर देश का लक्ष्य है।
अमेरिका खुद उत्पादन बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, पर चीन 5 गुना तेजी से आगे है।
पेंटागन ने हाल ही में $1 Billion तक के Critical Minerals खरीदने का एलान किया —
यानी Rare Earth की जंग अब “Mining” नहीं “Strategy” का खेल बन चुकी है।
नज़रिया
Rare Earth सिर्फ खनिज नहीं, 21वीं सदी की Power Currency हैं।
चीन उन्हें नियंत्रित कर Global Tech Flow को अपने पक्ष में मोड़ना चाहता है।
अमेरिका अपने सैन्य और औद्योगिक हितों की रक्षा के लिए हर दांव आज़मा रहा है।
सवाल सिर्फ इतना है —
क्या दुनिया “Rare Earth War” से “New Cold War” की तरफ बढ़ रही है?