
Argument in Supreme Court over ED raid on Tamil Nadu TASMAC
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा – क्या ईडी राज्य के अधिकार क्षेत्र में दखल दे रही है?
TASMAC छापेमारी पर तमिलनाडु सरकार बनाम ईडी – संघीय ढांचे पर बड़ा सवाल
📍नई दिल्ली 🗓️ 14 अक्टूबर 2025 ✍️ Asif Khan
तमिलनाडु में राज्य की शराब बिक्री करने वाली सरकारी कंपनी TASMAC पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) की छापेमारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जोरदार बहस हुई। अदालत ने कहा, “जब राज्य खुद जांच कर रहा है तो ईडी की क्या भूमिका?” कोर्ट ने फिलहाल ईडी की मनी लॉन्ड्रिंग जांच पर अस्थायी रोक लगा दी है।
तमिलनाडु में शराब कारोबार का संचालन TASMAC (Tamil Nadu State Marketing Corporation) करती है — एक सरकारी उपक्रम जो राज्य के राजस्व का बड़ा स्रोत है। जब ईडी ने 1000 करोड़ रुपये के कथित भ्रष्टाचार के आरोपों में TASMAC मुख्यालय और अफसरों के घरों पर छापा मारा, तो मामला सिर्फ भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि संविधान के संघीय ढांचे का हो गया।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने केंद्र और राज्य के अधिकारों की सीमाओं पर सवाल उठाया।
उन्होंने कहा, “अगर राज्य पहले से जांच कर रहा है तो क्या ईडी का हस्तक्षेप अतिक्रमण नहीं?”
कपिल सिब्बल (तमिलनाडु सरकार की ओर से) ने तर्क दिया कि यह एक सरकारी निगम है, जिस पर पहले ही राज्य ने FIR दर्ज की है — फिर केंद्रीय एजेंसी क्यों दखल दे रही है? उन्होंने कहा, “ईडी सरकारी कंपनी के सर्वर, कंप्यूटर और मोबाइल तक जब्त कर रही है — क्या ये संघीय मर्यादा नहीं तोड़ता?”
ईडी की ओर से एएसजी एसवी राजू ने पलटवार किया — उनका कहना था कि राज्य ने कई FIR दर्ज जरूर की हैं, लेकिन हमें predicate offences (मूल अपराध) के आधार पर धन शोधन की जांच करने का अधिकार है। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण दे रही है।
बहस का दिलचस्प मोड़ तब आया जब अदालत ने पूछा — “क्या हर बार एफआईआर दर्ज होने पर ईडी जांच शुरू करेगी?” यह सवाल भारत की संघीय व्यवस्था के मूल को छूता है, जहां राज्य की स्वायत्तता और केंद्र की जांच एजेंसियों की सीमा बार-बार टकराती है।
सिब्बल ने कहा, “अगर सरकारी कंपनी पर छापा मारा जा सकता है, तो कल किसी भी राज्य उपक्रम पर ईडी पहुंच जाएगी।”
राजू का जवाब था — “यह सिर्फ तलाशी थी, जांच नहीं।”
मुकुल रोहतगी (TASMAC की ओर से) ने कहा कि ईडी को कर्मचारियों के निजी फोन डेटा लेने का अधिकार नहीं।
राजू ने प्रतिवाद किया कि जिन लोगों के अधिकारों की बात की जा रही है, वे अदालत में आए ही नहीं।
निचोड़ यह है कि यह मामला सिर्फ मनी लॉन्ड्रिंग नहीं, बल्कि केंद्र बनाम राज्य की शक्तियों की सीमाओं पर एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस बन चुका है।
सुप्रीम कोर्ट का आगामी फैसला न केवल तमिलनाडु, बल्कि पूरे देश में केंद्रीय एजेंसियों की जांच सीमाओं को परिभाषित कर सकता है।