
Sigma gang in Rohini. Police teams investigating the scene after the encounter.
रोहिणी मुठभेड़: ‘सिग्मा गैंग’ का अंत या संगठित अपराध की नई शुरुआत?
📍 नई दिल्ली
🗓️ तारीख: 23 अक्टूबर 2025
✍️आसिफ़ ख़ान
दिल्ली के रोहिणी इलाके में हुई तड़के मुठभेड़ में बिहार के कुख्यात ‘सिग्मा गैंग’ के चार अपराधी मारे गए। यह संयुक्त ऑपरेशन दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच और बिहार पुलिस की स्पेशल टीम ने किया। माना जा रहा है कि यह गिरोह बिहार विधानसभा चुनाव से पहले दहशत फैलाने की साजिश रच रहा था। मुठभेड़ ने न सिर्फ़ अपराध की एक बड़ी जड़ काटी, बल्कि इसने राजनीतिक-प्रशासनिक नेक्सस की परतें भी उजागर कीं।
सुबह के अंधेरे में जब दिल्ली के रोहिणी इलाके की गलियों में पुलिस सायरनों की गूंज उठी, शायद किसी ने नहीं सोचा था कि यह रात बिहार के कुख्यात ‘सिग्मा गैंग‘ के अंत की रात बन जाएगी।
लगभग 2:20 बजे, दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच और बिहार पुलिस की स्पेशल टीम ने एक संयुक्त ऑपरेशन में चार वांछित अपराधियों को ढेर कर दिया। इस गिरोह का सरगना रंजन पाठक था — वह नाम जो बिहार के अपराध जगत में डर का दूसरा नाम बन चुका था।
अपराध की जड़ें और चुनावी साजिश
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, यह गिरोह बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में हिंसा फैलाने की साजिश रच रहा था। मक़सद था माहौल में डर पैदा करना ताकि जनता और प्रशासन दोनों अस्थिर हों।
रंजन पाठक और उसके साथी किसी छोटे-मोटे अपराधी मानसिकता वाले नहीं थे; वे रणनीतिक सोच वाले, योजनाबद्ध अपराधी थे — जो अपराध को सत्ता और नियंत्रण का औज़ार बना चुके थे।
दिल्ली में छिपकर उन्होंने न सिर्फ़ हथियार इकट्ठे किए बल्कि राजनीतिक संरक्षण की तलाश भी की। सूत्रों का कहना है कि उन्हें कुछ “सफ़ेद कुर्ता वाले संरक्षक” का समर्थन हासिल था — जो बताता है कि अपराध और राजनीति के बीच की दूरी कितनी पतली हो चुकी है।
मुठभेड़ की असली तस्वीर
खुफ़िया सूचना के मुताबिक़, पुलिस कई दिनों से इन अपराधियों की निगरानी कर रही थी।
जब उन्हें रोहिणी के बहादुर शाह मार्ग पर घेर लिया गया, तो उन्होंने आत्मसमर्पण के बजाय पुलिस पर गोलियाँ बरसा दीं। जवाबी फायरिंग में पुलिस ने चारों को ढेर कर दिया।
मारे गए अपराधियों की पहचान रंजन पाठक (25), मनीष पाठक (33), बिमलेश महतो (25) और अमन ठाकुर (21) के रूप में हुई।
अमन ठाकुर दिल्ली के करावल नगर का रहने वाला था — यही संकेत देता है कि बिहार के गिरोह अब दिल्ली को अपने ठिकाने और लॉजिस्टिक्स सेंटर के रूप में इस्तेमाल करने लगे थे।
बरामद हथियार और नेटवर्क की गंभीरता
मौके से जिगाना पिस्टल जैसे विदेशी हथियार मिले — यह कोई साधारण गिरोह नहीं था।
यह सीधा संकेत है कि रंजन पाठक का नेटवर्क अंतर्राष्ट्रीय हथियार तस्करी तक फैला हुआ था।
फॉरेंसिक टीम ने घटनास्थल से कई कारतूस और डिजिटल साक्ष्य जब्त किए हैं।
इससे यह स्पष्ट है कि गिरोह के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी — और संभवतः विदेशों में भी सप्लाई चैन सक्रिय थी।
गिरोह की संरचना और अपराध प्रोफ़ाइल
रंजन पाठक का गैंग “सिग्मा एंड कंपनी” नाम से मशहूर था।
उनका मुख्य ऑपरेशन बिहार-नेपाल सीमा पर चलता था, जहाँ से वे अपराध करने के बाद सीमा पार कर जाते थे।
गिरोह के पास न सिर्फ़ धनबल था, बल्कि स्थानीय नेताओं से संरक्षण भी।
उन पर कई हत्याओं, रंगदारी और डकैती के मामले दर्ज थे।
बिमलेश महतो और मनीष पाठक उसके कोर सदस्य थे जबकि अमन ठाकुर दिल्ली कनेक्शन संभालता था।
चुनाव से पहले दहशत की साज़िश
जांच में सामने आया है कि यह गिरोह चुनावी माहौल में आतंक फैलाने की तैयारी में था।
वे बिहार के कुछ ज़िलों में विस्फोट और हत्याओं के जरिए डर का वातावरण बनाना चाहते थे।
इसका एक बड़ा मक़सद था — पुलिस नेतृत्व को कमजोर करना और प्रशासनिक तबादले करवाना।
सूत्र बताते हैं कि सीतामढ़ी के एसपी अमित रंजन को टारगेट किया गया था क्योंकि वे गिरोह के खिलाफ़ कड़े कदम उठा रहे थे।
सोचिए, जब अपराधी प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले तय करने की क्षमता तक पहुँच जाएं, तो यह सिर्फ़ अपराध नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर हमला है।
“सफ़ेद कुर्ता वाले” और नेपाल कनेक्शन
दिल्ली पुलिस के मुताबिक गिरोह को कुछ राजनीतिक और प्रभावशाली लोगों का समर्थन था।
इन “सफ़ेद कुर्ता वालों” ने अपराधियों को न केवल बिहार में बल्कि दिल्ली में भी पनाह दी।
नेपाल कनेक्शन ने इन्हें सीमा पार से हथियार और फंडिंग उपलब्ध कराई।
नेपाल से जिगाना पिस्तौल और अन्य विदेशी हथियारों की तस्करी का सीधा लिंक इस गिरोह से जोड़ा जा रहा है।
यह नेटवर्क किसी फिल्मी स्क्रिप्ट जैसा नहीं बल्कि भारत की वास्तविक सुरक्षा चुनौती है।
अंतर-राज्यीय समन्वय का नया मॉडल
इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी सफलता यह रही कि दिल्ली और बिहार पुलिस ने मिलकर काम किया।
पहली बार इतने प्रभावी इंटर-स्टेट कोऑर्डिनेशन के तहत किसी संगठित गिरोह को जड़ से उखाड़ा गया।
यह मॉडल आने वाले वक्त में बाकी राज्यों के लिए भी मिसाल बनेगा — ख़ासकर उन अपराधियों के लिए जो राजधानी में शरण लेकर राज्यों की सीमाओं का फायदा उठाते हैं।
दिल्ली पुलिस के MCOCA सेल और फाइनेंशियल डेटा यूनिट अब इस गिरोह के पैसों और हथियारों के ट्रेल को ट्रैक कर रहे हैं।
कानूनी प्रक्रिया और जवाबदेही
हर मुठभेड़ के बाद एक अहम सवाल उठता है — क्या ये कार्रवाई कानून के दायरे में थी?
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ऐसे मामलों के लिए सख़्त दिशानिर्देश दिए हैं।
एफआईआर, मजिस्ट्रियल जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट अनिवार्य हैं।
दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि यह मुठभेड़ आत्मरक्षा में हुई।
पुलिसकर्मियों के घायल होने से यह दलील मजबूत होती है, लेकिन फिर भी स्वतंत्र जांच ज़रूरी है।
न्यायिक निरीक्षण ही यह साबित करेगा कि यह मुठभेड़ ‘कानूनी कार्रवाई’ थी या ‘एक्स्ट्रा-जूडिशियल इवेंट’।
संगठित अपराध और सत्ता का गठजोड़
यह मुठभेड़ हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि संगठित अपराध अब सिर्फ़ पैसों के लिए नहीं, बल्कि सत्ता पर नियंत्रण के लिए हो रहा है।
गिरोह की रणनीति थी — “भय पैदा करो, नियंत्रण हासिल करो, प्रशासन को झुकाओ।”
यह भारत के अपराध जगत का नया चेहरा है, जो लोकतंत्र की जड़ों को अंदर से खोखला कर सकता है।
रोहिणी मुठभेड़ कोई साधारण पुलिस एक्शन नहीं
रोहिणी मुठभेड़ कोई साधारण पुलिस एक्शन नहीं थी — यह एक “संकेत” है कि अब संगठित अपराध से निपटने के लिए सिर्फ़ हथियार नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और पारदर्शी जवाबदेही की भी ज़रूरत है।
यह ऑपरेशन बताता है कि कानून की जीत तभी स्थायी होगी जब उसके भीतर की सच्चाई को भी जांचा जाए।
“सिग्मा गैंग” भले खत्म हो गया हो, लेकिन वह सवाल अब भी ज़िंदा है —
क्या हमारे सिस्टम ने अपराध की जड़ को काटा है या सिर्फ़ उसकी शाख़ें?







