
Delhi's air quality dips back to 'poor' as fog reduces visibility
दिल्ली में AQI 257, ठंड बढ़ी, कोहरा छाया
हिमाचल में बारिश, दिल्ली में प्रदूषण से संकट
दिल्ली में वायु गुणवत्ता खराब श्रेणी में पहुँच गई है। हिमाचल में बारिश और ठंड बढ़ी है। समुद्री इलाकों में भी बारिश का अलर्ट जारी है। यह स्थिति केवल मौसम नहीं, बल्कि जलवायु संकट की गंभीर चेतावनी है।
📍 नई दिल्ली 🗓️ 25 अक्टूबर 2025 ✍️ Asif Khan
मौसम की करवट: सर्दी, बारिश और जहरीली हवा
दिल्ली की सुबह अब महज़ ठंडी नहीं, बल्कि धुंध और प्रदूषण से ढकी हुई है। अक्टूबर के आख़िरी हफ्ते में जब लोग दिवाली और ठंड की शुरुआत का स्वागत करते हैं, तब हवा में ज़हर घुला महसूस होता है। शनिवार, 25 अक्टूबर 2025 को राजधानी का औसत AQI 257 दर्ज किया गया — ‘खराब’ श्रेणी में।
आनंद विहार, बवाना, चांदनी चौक, जहांगीरपुरी जैसे इलाक़ों में तो यह 300 से भी ऊपर गया। मतलब साफ़ है — दिल्ली की सांस अब दूषित हो चुकी है।
दिल्ली की हवा: सांस लेना भी मुश्किल
दिल्ली में हर साल यही कहानी दोहराई जाती है। पराली जलाने की ख़बरें पंजाब-हरियाणा से आती हैं, और दिल्लीवाले गैस चैंबर में कैद हो जाते हैं। इस बार भी यही हो रहा है। हवा में मौजूद महीन धूल कण (PM2.5 और PM10) सामान्य से कई गुना ज़्यादा हैं।
लोग सुबह की सैर से डरने लगे हैं, बच्चों को बाहर खेलने से रोका जा रहा है, और आंखों में जलन व गले में खराश अब आम बात हो गई है। सरकार पानी के छिड़काव, कृत्रिम वर्षा और ट्रैफिक कंट्रोल जैसी कोशिशें कर रही है, पर सवाल है — क्या ये उपाय स्थायी हैं?
ठंड और कोहरा: मौसम की नई चाल
इस साल सर्दी दिल्ली में औसत से पहले दस्तक दे रही है। हवा में नमी और प्रदूषण मिलकर घना कोहरा बना रहे हैं। दृश्यता घट रही है और ट्रैफिक पर असर साफ़ दिख रहा है।
हिमाचल प्रदेश में तो हालात और गंभीर हैं। लगातार बारिश और बर्फ़बारी से तापमान गिर चुका है। पहाड़ों के रास्ते फिसलन भरे हैं, किसानों की फसलों पर बुरा असर पड़ा है, और छोटे कस्बों में बिजली कटौती ने लोगों को परेशान किया है।
यह सिर्फ़ मौसम नहीं, बल्कि बदलते जलवायु पैटर्न की चेतावनी है — जो बता रही है कि इंसान और प्रकृति के बीच असंतुलन कितना बढ़ चुका है।
क्यों लौटता है प्रदूषण का यह संकट?
हर साल अक्टूबर-नवंबर में यही हाल क्यों होता है? जवाब साफ़ है — हम समस्या को समझते हैं, पर बदलना नहीं चाहते।
पराली जलाना
बढ़ते वाहन
निर्माण कार्यों से निकलती धूल
औद्योगिक उत्सर्जन
और मौसमी हवा की दिशा — ये सब मिलकर दिल्ली को गैस चैंबर बना देते हैं।
क्लाउड सीडिंग या स्प्रिंकलर से अस्थायी राहत मिल सकती है, मगर समाधान तभी मिलेगा जब हम स्रोत पर नियंत्रण करें।
हमें दीर्घकालिक नीति चाहिए —
हरित क्षेत्र बढ़ाना, इलेक्ट्रिक वाहन अपनाना, निर्माण स्थलों पर सख्त निगरानी, और किसानों को पराली न जलाने के विकल्प देना।
समुद्री राज्यों में बारिश का अलर्ट
पश्चिमी समुद्री राज्यों — महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में तेज़ हवाओं और भारी बारिश का अलर्ट जारी किया गया है। अरब सागर में बने लो-प्रेशर सिस्टम के कारण अगले कुछ दिनों तक बारिश जारी रह सकती है।
यात्रियों को सावधानी बरतने की सलाह दी गई है। मछुआरों को समुद्र में न जाने की चेतावनी दी गई है।
यह मौसमीय घटना दर्शाती है कि भारत के अलग-अलग हिस्सों में जलवायु अब चरम रूप ले रही है — कहीं सूखा, कहीं बाढ़, कहीं जहरीली हवा।
एक बड़ा सवाल: क्या हम सच में तैयार हैं?
भारत जैसे देश में जलवायु परिवर्तन अब कोई ‘भविष्य का खतरा’ नहीं, बल्कि ‘वर्तमान की वास्तविकता’ है।
दिल्ली की हवा, हिमाचल की सर्दी, और तटीय बारिश — ये सब एक बड़े बदलाव के संकेत हैं।
लेकिन अफसोस, हमारी राजनीति अभी भी विकास बनाम पर्यावरण की बहस में उलझी है। जबकि असली सवाल यह होना चाहिए — क्या हम अपने बच्चों को सांस लेने लायक हवा दे पाएंगे?
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रदूषण नियंत्रण में सरकार की कोशिशें पर्याप्त नहीं, वहीं दूसरे कहते हैं कि जनसहयोग की कमी ही असली बाधा है।
दोनों सही हैं। पर्यावरण एक साझा ज़िम्मेदारी है। सिर्फ़ सरकारी आदेश या जुर्माना काफी नहीं — जब तक नागरिक खुद आगे नहीं आएंगे।
हमें सोचने की ज़रूरत है कि क्या हर बार सर्दी और कोहरे के साथ यह ‘संकट’ लौटेगा, या हम अब इसे सच में बदलने की कोशिश करेंगे?
यह मौसम रिपोर्ट नहीं, चेतावनी है।
दिल्ली की हवा, हिमाचल की ठंड और समुद्री बारिश — ये सब जलवायु परिवर्तन के बढ़ते असर की निशानियाँ हैं। अगर अभी नहीं चेते, तो आने वाले सालों में स्थिति और भयावह होगी।
हमें पर्यावरण को राजनीति से ऊपर रखना होगा।
साफ हवा, हरियाली और संतुलित मौसम सिर्फ़ एक सपना नहीं — हमारी ज़रूरत है।







