
Salman Khan speech sparks Indo-Pak controversy over Balochistan remarks.
सलमान खान और बलूचिस्तान विवाद: इंडो-पाक रिश्तों में नई तल्ख़ी
सलमान खान के बयान ने बढ़ाई भारत-पाक कूटनीतिक गर्मी
इंडो-पाक तनाव के बीच बॉलीवुड कूटनीति का नया मोर्चा
सऊदी अरब में सलमान खान के बयान से पाकिस्तान बुरी तरह भड़क गया है। बलूचिस्तान को “अलग देश” बताने पर शहबाज़ सरकार ने उन्हें आतंकवादी घोषित कर दिया है। यह घटना सिर्फ़ एक बयान नहीं बल्कि भारत-पाक रिश्तों में नई वैचारिक दरार की निशानी है।
📍नई दिल्ली 🗓️ 26 अक्तूबर 2025✍️आसिफ़ ख़ान
बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान को लेकर पाकिस्तान सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है, जिसने पूरे दक्षिण एशिया के राजनीतिक और सांस्कृतिक हलकों में हलचल मचा दी है।
हाल ही में सऊदी अरब के जॉय फोरम 2025 में सलमान खान ने कहा—
“ये बलूचिस्तान के लोग हैं, अफ़ग़ानिस्तान के लोग हैं, पाकिस्तान के लोग हैं… हर कोई सऊदी अरब में मेहनत कर रहा है।”
बस यही वाक्य पाकिस्तान की सत्ता और सेना को नागवार गुज़रा।
पाकिस्तान ने इसे अपने ‘राष्ट्रीय एकता’ के ख़िलाफ़ बयान बताया और Anti-Terrorism Act के तहत सलमान को “आतंकवादी” घोषित कर दिया।
उनका नाम ‘फोर्थ शेड्यूल लिस्ट’ में डाल दिया गया है—एक ऐसी सूची जिसमें पाकिस्तान उन लोगों को शामिल करता है जिन पर चरमपंथी गतिविधियों में संलिप्तता का शक होता है।
फोर्थ शेड्यूल क्या है?
पाकिस्तान का आतंकवाद रोधी अधिनियम 1997 (ATA) चार सूचियाँ रखता है, जिनमें “Fourth Schedule” सबसे विवादास्पद है।
इस सूची में आने वाले व्यक्ति न केवल सख़्त निगरानी में रहते हैं, बल्कि उनके विदेश यात्रा, बैंक खाते और संपत्तियों पर भी रोक लग जाती है।
कानून की दृष्टि से यह एक “घरेलू दायरा” वाला प्रावधान है, यानी इसकी सीमा पाकिस्तान तक सीमित है।
क्या पाकिस्तान भारत में सलमान पर कार्रवाई कर सकता है?
नहीं।
अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) की दृष्टि से पाकिस्तान के पास भारत में किसी भी व्यक्ति पर कार्रवाई का अधिकार नहीं है।
भारत और पाकिस्तान के बीच प्रत्यर्पण संधि (Extradition Treaty) नहीं है, और MLAT यानी Mutual Legal Assistance Treaty भी निष्क्रिय स्थिति में है।
इसका अर्थ यह है कि पाकिस्तान चाहे तो भी भारतीय क्षेत्र में सलमान खान के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकता।
अगर वह Interpol Red Notice जारी करने की कोशिश भी करे, तो उसके लिए “वैश्विक अपराध” या “आतंकी गतिविधि” से जुड़े ठोस सबूत पेश करने होंगे — जो इस केस में मौजूद नहीं हैं।
बलूचिस्तान का दर्द और बॉलीवुड की गूंज
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा लेकिन सबसे उपेक्षित प्रांत है।
यहाँ के लोग दशकों से “Free Balochistan Movement” चला रहे हैं।
उनका आरोप है कि इस्लामाबाद की सत्ता उनके संसाधनों को लूट रही है, जबकि स्थानीय जनता गरीबी और सेना के अत्याचारों में पिस रही है।
इसलिए जब सलमान खान ने बलूचिस्तान का नाम अलग से लिया, तो वहाँ के अलगाववादी नेताओं ने इसे “Recognition of Baloch Identity” कहा।
मीर यार बलूच, जो बलूच राष्ट्रवादी आंदोलन के वरिष्ठ नेता हैं, ने कहा —
“सलमान खान ने वह कहा जो कई बड़े देश भी कहने से डरते हैं। उन्होंने 6 करोड़ बलूचों को पहचान दी है।”
नोबत मरी बलूच, Free Balochistan Movement की पूर्व प्रवक्ता, ने लिखा —
“अब समय है कि वैश्विक समुदाय बलूचों पर हो रहे अत्याचारों को स्वीकार करे। सलमान का बयान हमारी पहचान का प्रतीक है।”
कूटनीतिक प्रभाव: सांस्कृतिक मंच से राजनीतिक संदेश
यह मामला सिर्फ़ एक बयान या फिल्मी विवाद नहीं है, बल्कि Soft Diplomacy का एक जीवंत उदाहरण है।
भारत और पाकिस्तान दोनों यह समझते हैं कि बॉलीवुड सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक ताकत है।
जब कोई वैश्विक स्टार किसी राजनीतिक रूप से संवेदनशील शब्द का इस्तेमाल करता है, तो वह कूटनीति के गलियारों में गूंज बन जाता है।
सलमान के बयान ने पाकिस्तान के अंदर के असंतोष को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उजागर किया।
यह बात पाकिस्तान की सैन्य प्रतिष्ठान को सबसे ज़्यादा चुभी है, क्योंकि बलूचिस्तान का मुद्दा हमेशा से उसकी “आंतरिक कमजोरी” रहा है।
क्या सलमान ने जानबूझकर कहा?
इस सवाल का जवाब अभी तक किसी के पास नहीं है।
कई विश्लेषक मानते हैं कि सलमान ने यह बात अनजाने में कह दी होगी।
लेकिन, कूटनीति में शब्दों की अहमियत बहुत गहरी होती है — और पाकिस्तान ने इसी बात का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की है।
इंडो-पाक रिश्तों की नई दिशा
भारत सरकार ने इस पूरे विवाद पर औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, पर विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि “यह पाकिस्तान की Domestic Overreaction” है।
भारत के लिए यह घटना दो दृष्टिकोण खोलती है —
पहला, पाकिस्तान की आंतरिक असुरक्षा का सार्वजनिक प्रदर्शन।
दूसरा, भारत के सांस्कृतिक प्रभाव की गहराई, जो सीमा पार तक असर रखता है।
बलूचिस्तान का मुद्दा पहले भी नरेंद्र मोदी के भाषणों और संयुक्त राष्ट्र के मंचों पर उठ चुका है।
लेकिन इस बार, यह मुद्दा एक फिल्म स्टार के शब्दों से उठा है — जो दिखाता है कि कला और राजनीति का संगम कभी-कभी सरकारों से भी ज़्यादा असर डाल सकता है।
सिनेमा बनाम सियासत
यह घटना एक चेतावनी भी है और एक अवसर भी।
चेतावनी इस बात की कि कलाकारों को अपने शब्दों के राजनीतिक मायनों को समझना चाहिए।
और अवसर इस बात का कि संस्कृति कभी-कभी सच्चाई को कहने का सबसे प्रभावी माध्यम बन जाती है।
बलूचिस्तान की आवाज़ भले ही सीमाओं में कैद हो, लेकिन बॉलीवुड की गूंज अब उन दीवारों से टकरा रही है — जहाँ सियासत हमेशा “सच” से डरती आई है।




