
हरियाणा से उठी वोट चोरी की सियासत — क्या लोकतंत्र पर मंडरा रहा है शक़?
📍नई दिल्ली
🗓️ 5 नवंबर 2025
✍️आसिफ ख़ान
राहुल गांधी का ‘एच-फाइल्स’ खुलासा हरियाणा की सियासत में ज़ोरदार बहस छेड़ चुका है। 25 लाख फ़र्ज़ी वोट का दावा, एक ब्राज़ीलियन मॉडल की तस्वीर से 22 वोट — क्या ये चुनावी धांधली की हक़ीक़त है या महज़ सियासी रणनीति?
भारत का लोकतंत्र हमेशा से एक शब्द पर टिका रहा है — ‘भरोसा’। जब लोगों को विश्वास हो कि उनका वोट किसी की जेब में नहीं बल्कि उनके हक़ में गिना जा रहा है, तभी गणतंत्र सच्चा रहता है। इसी विश्वास की जड़ पर इस वक़्त राहुल गांधी का इल्ज़ाम हलचल मचा रहा है — कि हरियाणा में वोट चोरी हुई, 25 लाख फ़र्ज़ी वोट डाले गए, एक ब्राज़ीलियन मॉडल की तस्वीर से 22 बार वोट डाले गए। सुनने में यह फिल्मी लगता है, पर राहुल का कहना है कि यह ‘एच-फाइल्स’ की सच्ची कहानी है।
सियासत या सच्चाई?
हर चुनाव के बाद हारने वाली पार्टी कभी EVM पर सवाल उठाती है, कभी प्रचार पर, कभी ‘मैनेजमेंट’ पर। मगर इस बार राहुल गांधी ने जो कहा, वह सिर्फ़ ‘चुनावी हार’ की भड़ास नहीं लगती। उन्होंने आंकड़ों के साथ बात की — कि हरियाणा में कांग्रेस सिर्फ़ २५ हज़ार वोट से हारी, और अगर २५ लाख वोट फ़र्ज़ी थी, तो इसका मतलब हर आठ में से एक वोटर नकली था। यह आंकड़ा डराने वाला है।
लेकिन यही कहानी यहां से दिलचस्प हो जाती है। उन्होंने जो तस्वीर दिखाई — वह असल में एक ब्राज़ीलियन मॉडल की स्टॉक फोटो निकली। राहुल ने कहा कि यह तस्वीर अलग-अलग नामों से वोटर लिस्ट में डाली गई — सीमा, सरस्वती, विमला, और दूसरे नामों से। वही एक चेहरा, वही एक फोटो, २२ वोट। अगर यह सच है तो यह सिर्फ़ धांधली नहीं, बल्कि चुनावी ढाँचे की आत्मा पर वार है।
बीजेपी का जवाब: “मुद्दा बनाओ, मज़ा लो”
बीजेपी ने इसे सिरे से नकार दिया। केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने तंज़ कसा कि राहुल गांधी बिहार चुनाव से पहले हरियाणा की कहानी सुना रहे हैं क्योंकि “बिहार में कांग्रेस के पास कहने को कुछ नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा कि राहुल हर बार कुछ ‘बम’ फोड़ने का एलान करते हैं — कभी ‘एटम बम’, कभी ‘हाइड्रोजन बम’ — मगर वो कभी फटते नहीं।
राजनीति में व्यंग्य पुराना हथियार है, पर यहां मुद्दा हंसी का नहीं, विश्वास का है। किरन रिजिजू कहते हैं कि अगर राहुल के पास सबूत थे, तो कांग्रेस के बूथ-एजेंटों ने रिविज़न के वक़्त आपत्ति क्यों नहीं जताई? यह सवाल वाजिब है, पर इससे मुद्दे की गंभीरता कम नहीं होती।
वोटर लिस्ट की सच्चाई
भारत में मतदाता सूची कई बार अपडेट होती है, मगर ज़मीनी स्तर पर भ्रांतियाँ बनी रहती हैं। कई जगह नाम डुप्लीकेट हो जाते हैं, पते गलत हो जाते हैं, या मृतक लोगों के नाम सूची में रह जाते हैं। यह तकनीकी कमज़ोरी है, साजिश नहीं। मगर जब राहुल जैसे नेता कहते हैं कि यह ‘संघटित धांधली’ है, तो आरोप तकनीकी नहीं, सियासी बन जाते हैं।
फर्ज़ कीजिए आप अपने मोहल्ले के बूथ पर गए और देखा कि आपके घर के पते पर पाँच नाम और जुड़े हैं। आप हैरान होंगे, पर यह हकीकत कई जगह है। तो क्या राहुल का इल्ज़ाम सिर्फ़ राजनीतिक प्रचार है, या यह आँख खोलने वाला मौका है?
युवा की आवाज़ — जनरेशन Z की लड़ाई
राहुल गांधी ने अपनी स्पीच में जनरेशन Z से अपील की: “सत्य और अहिंसा के साथ लोकतंत्र को बचाना युवाओं का काम है।” यह लाइन सिर्फ़ स्लोगन नहीं बल्कि रणनीति है। कांग्रेस को युवा वोटरों में नई जगह चाहिए, और ‘वोट चोरी’ जैसा मुद्दा भावनात्मक कनेक्शन दे सकता है।
लेकिन यही वो जगह है जहां सवाल उठता है — क्या इस जागरण का आधार सच है या सिर्फ़ सियासी पलटवार? जनरेशन Z की सबसे बड़ी समस्या है ‘विश्वास की कमज़ोरी’। वे न राजनीति में पूरी तरह विश्वास करते हैं और न मीडिया में। तो अगर हर चुनाव के बाद ‘धांधली’ का शोर बढ़ेगा, तो क्या लोकतंत्र की आवाज़ कमज़ोर नहीं होगी?
सच्चाई की तलवार दोनों तरफ़ चलती है
कई बार सत्ता और विपक्ष दोनों सत्य को अपने मकसद से तोड़ते हैं। बीजेपी का कहना है कि राहुल अपनी नाकामी छिपा रहे हैं; कांग्रेस का कहना है कि चुनाव कमीशन निष्पक्ष नहीं रहा। सवाल यह नहीं कि कौन सही है, बल्कि यह कि क्या सिस्टम पारदर्शी है?
अगर राहुल के पास वास्तविक “एच फाइल्स” हैं, तो उन्हें जांच एजेंसी को देना चाहिए। अगर बीजेपी को लगता है कि ये झूठ है, तो ईसीआई को स्वतंत्र ऑडिट करवाना चाहिए। दोनों तरफ़ से खुलापन ही लोकतंत्र की ढाल है।
मीडिया का रोल
मीडिया के लिए यह मामला एक परीक्षा जैसा है। कई चैनलों ने राहुल के इल्ज़ाम को ‘सीरियस’ बताया, तो कई ने उसे ‘प्रोपगैंडा’। मगर सच्चाई कहीं बीच में छिपी है। मीडिया अगर तथ्य जाँच के लिए खुद फील्ड में उतरे, तो देश को वास्तविक तस्वीर मिल सकती है। पर दुर्भाग्य से, हमारा मीडिया अक्सर ‘साउंड बाइट’ के जाल में फँस जाता है।
लोकतंत्र का सबसे बड़ा हथियार: पारदर्शिता
राहुल गांधी की पीसी ने कम से कम एक बात तो पक्की की — कि वोटर लिस्ट जैसे तकनीकी मुद्दे अब राष्ट्रीय बहस का हिस्सा बन गए हैं। अगर इस विवाद से सिस्टम थोड़ा भी सुधरे, तो यह लोकतंत्र के लिए फायदेमंद होगा। पर अगर यह सिर्फ़ सियासी नाटक रहा, तो यह भरोसे की नींव को कमज़ोर करेगा।
सियासत के पीछे मकसद
राहुल गांधी इस समय ‘नैरेटिव पॉलिटिक्स’ खेल रहे हैं। वे चाहते हैं कि देश का मतदाता सोचे — “क्या मेरे वोट की कीमत बची है?” यह एक भावनात्मक प्रश्न है, जो हर नागरिक को छू सकता है। पर अगर हर चुनाव के बाद हारने वाला ‘वोट चोरी’ कहेगा, तो फिर जीतने का मायना क्या रहेगा?
राजनीति में हर पक्ष को कभी-न-कभी अपने आईने में देखना चाहिए। कांग्रेस हो या बीजेपी, दोनों को सवालों से भागना नहीं चाहिए। क्योंकि सवाल ही लोकतंत्र का सबसे सुंदर हिस्सा हैं।
जनता की ज़िम्मेदारी
सिर्फ़ नेताओं पर छोड़ देना भी गलत है। हम मतदाता भी ज़िम्मेदार हैं कि अपने नाम, पते, और वोटर आईडी को सही रखें। कई बार हम खुद लिस्ट नहीं जाँचते, और फिर सिस्टम को दोष देते हैं। राहुल गांधी का यह विवाद कम से कम हम सब को यह याद दिलाता है कि ‘लोकतंत्र में हम भी भागीदार हैं’।
यह एडिटोरियल किसी एक पार्टी के हक़ या ख़िलाफ़ नहीं है। यह सिर्फ़ इतना कहना चाहता है कि अगर वोट की पवित्रता पर भी शक़ होगा, तो लोकतंत्र के मंदिर की दीवारें हिल जाएँगी। राहुल गांधी का इल्ज़ाम सही है या नहीं, यह जाँच का मामला है, मगर..




