
India's firm stance at the Ministry of External Affairs press conference in New Delhi – a display of confidence on nuclear policy.
परमाणु डिप्लोमेसी में भारत का नया आत्मविश्वास और वैश्विक नीति
विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान की गुप्त परमाणु गतिविधियों पर चिंता जताई और अमेरिका के हालिया बयानों पर संयमित प्रतिक्रिया दी। यह वही भारत है जो अब दबाव में नहीं, रणनीति में सोचता है।
📍नई दिल्ली 🗓️ 8 नवम्बर 2025✍️ आसिफ़ ख़ान
नई दिल्ली में शुक्रवार की शाम विदेश मंत्रालय की नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रवक्ता रणधीर जायसवाल के शब्दों में एक ठहराव था, पर उस ठहराव में आत्मविश्वास झलक रहा था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की गुप्त और गैरकानूनी परमाणु गतिविधियाँ उसके इतिहास के अनुरूप हैं — यह बयान जितना सीधा था, उतना ही गहरा भी। भारत ने यह बात पहली बार नहीं कही, लेकिन इस बार उसका लहजा पहले से ज़्यादा सख़्त और स्पष्ट था।
दक्षिण एशिया की राजनीति हमेशा से परमाणु ताक़तों की परछाइयों में पलती रही है। पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम, उसकी गुप्त तस्करी और ए.क्यू. ख़ान नेटवर्क के ज़रिए हथियारों का आदान-प्रदान किसी से छिपा नहीं। मगर जब अमेरिका या पश्चिमी देश इस पर चुप रहते हैं, तो सवाल उठता है — क्या विश्व व्यवस्था वाकई न्यायपूर्ण है, या फिर हितों का खेल है?
भारत इस असमानता को पहचानता है। लेकिन भारत की खासियत यह है कि वह शिकायत नहीं करता, बल्कि अपनी राह खुद बनाता है। यही वजह है कि आज भारत की विदेश नीति ‘संयम और संकल्प’ का मेल है।
भारत की रणनीतिक शांति
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ कहा कि कोई भी देश भारत पर दबाव नहीं डाल सकता। यह बयान केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि भारत की नई विदेश नीति का सार है। आज भारत अपने निर्णय खुद लेता है — चाहे वह परमाणु परीक्षण का मामला हो, सीमापार आतंकवाद हो या रक्षा समझौते।
भारत की रणनीति सीधी है — शांति हमारी प्राथमिकता है, पर सुरक्षा हमारी ज़िम्मेदारी। यही कारण है कि भारत “नो फर्स्ट यूज़” की नीति पर कायम रहते हुए भी अपनी ताक़त का संतुलन बनाए रखता है।
इस बार चर्चा इसलिए भी गर्म है क्योंकि पाकिस्तान और अमेरिका के बीच परमाणु परीक्षणों को लेकर गुप्त वार्ता की खबरें आईं। ऐसे में भारत का संयमित लेकिन कड़ा रुख यह बताता है कि वह अब दर्शक नहीं, निर्णायक भूमिका में है।
राजनीतिक यथार्थ और नैतिक संतुलन
भारत ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में नैतिक ऊँचाई बनाए रखी है। चाहे वो 1974 का पोखरण परीक्षण हो या 1998 का, भारत ने कभी आक्रामकता में नहीं, आत्मविश्वास में काम किया। यही संतुलन आज की परिस्थिति में भी झलकता है।
रणधीर जायसवाल का यह कहना कि भारत ने ट्रंप के बयान को “संज्ञान में लिया है”, दरअसल कूटनीति की भाषा में यह संदेश है — हम जानते हैं, पर जल्दबाज़ी में प्रतिक्रिया नहीं देंगे। यही पेशेवर परिपक्वता एक मज़बूत राष्ट्र की पहचान है।
अफ़ग़ानिस्तान की पृष्ठभूमि और भारत की भूमिका
अफ़ग़ानिस्तान से जुड़ा मुद्दा भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू बन चुका है। अफ़ग़ान विदेश मंत्री की भारत यात्रा और उसके बाद हुई बातचीत इस बात का संकेत है कि भारत अब भी क्षेत्रीय स्थिरता में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
काबुल में भारतीय दूतावास को फिर से सक्रिय करने की प्रक्रिया न सिर्फ़ एक तकनीकी कदम है, बल्कि यह भारत की दीर्घकालिक सोच का हिस्सा है — “विकास के ज़रिए स्थिरता।”
भारत जानता है कि अगर अफ़ग़ानिस्तान अस्थिर रहेगा, तो पूरे क्षेत्र की सुरक्षा प्रभावित होगी। इसलिए वह सिर्फ़ अपने हित नहीं, पूरे दक्षिण एशिया की शांति के लिए निवेश कर रहा है।
अबू धाबी में भारतीय नागरिक का मामला
अबू धाबी में मेजर विक्रांत जेटली (सेवानिवृत्त) की गिरफ्तारी का मामला भारत के लिए मानवीय और कूटनीतिक दोनों दृष्टि से संवेदनशील था। विदेश मंत्रालय ने इसमें जिस संयम और तत्परता का परिचय दिया, वह बताता है कि भारत अपने नागरिकों के लिए जिम्मेदार भी है और संवेदनशील भी।
चार बार कांसुलर एक्सेस और परिवार से सीधा संपर्क स्थापित कर सरकार ने दिखाया कि भारतीय पासपोर्ट सिर्फ़ पहचान नहीं, सुरक्षा का प्रतीक भी है।
अमेरिकी रुख और भारतीय जवाब
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के बयान ने एक बार फिर परमाणु राजनीति को सुर्खियों में ला दिया। लेकिन भारत का जवाब बेहद संतुलित रहा।
भारत ने न तो रक्षात्मक प्रतिक्रिया दी, न ही आक्रामक — बस एक साफ़ संदेश: हम अपनी नीति अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार तय करेंगे, किसी दबाव में नहीं।
राजनाथ सिंह का यह कहना कि “अमेरिका, चीन या पाकिस्तान — कोई भी देश भारत के फैसले तय नहीं करेगा” दरअसल एक ऐतिहासिक घोषणा है।
भारत अब किसी शक्ति का परिशिष्ट नहीं, बल्कि शक्ति-संतुलन का केंद्र बन चुका है।
ऑपरेशन सिंदूर: नियंत्रण और संयम का प्रतीक
रक्षा मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर तब ही रोका गया जब भारत ने अपने सभी सैन्य उद्देश्यों को प्राप्त कर लिया था।
यह बयान दो स्तरों पर महत्वपूर्ण है —
पहला, यह बताता है कि भारत हर कार्रवाई में स्पष्ट उद्देश्य रखता है।
दूसरा, यह संकेत देता है कि भारत किसी बाहरी दबाव में नहीं झुकता।
राजनाथ सिंह ने कहा कि पाकिस्तान के DGMO ने बार-बार युद्धविराम के लिए संपर्क किया, और जब भारत ने अपने टारगेट पूरे कर लिए, तभी ऑपरेशन बंद हुआ।
यह वही नीति है — “लक्ष्य पूरा करो, युद्ध नहीं बढ़ाओ।”
आतंकवाद पर भारत की ज़ीरो टॉलरेंस नीति
सीमा पार आतंकवाद भारत के लिए अब कोई नया खतरा नहीं। लेकिन अब अंतर यह है कि भारत इसे सिर्फ़ रक्षात्मक दृष्टि से नहीं, रणनीतिक दृष्टि से देख रहा है।
रक्षा मंत्री का यह कहना कि “हमने नागरिकों को नहीं, सिर्फ़ आतंकवादियों को निशाना बनाया” — यह भारत की सैन्य नैतिकता को दर्शाता है।
दुनिया में ऐसे बहुत कम देश हैं जो सुरक्षा और मानवीयता का यह संतुलन बनाए रख सकते हैं।
पाकिस्तान की बेचैनी और कूटनीतिक अकेलापन
पाकिस्तान की स्थिति आज एक विरोधाभास में फँसी है। एक ओर वह खुद को इस्लामी दुनिया का नेता बताता है, दूसरी ओर उसकी अर्थव्यवस्था विदेशी कर्ज़ों पर टिकी है।
उसकी विदेश नीति अमेरिका की कृपा पर और घरेलू नीति सेना की मर्ज़ी पर चलती है।
ऐसे में जब भारत आत्मविश्वास से अपनी नीति प्रस्तुत करता है, तो पाकिस्तान की बेचैनी स्वाभाविक है।
असीम मुनीर को फ़ील्ड मार्शल बनाए जाने की घोषणा पर राजनाथ सिंह का यह कहना कि “उन्होंने तो खुद ही पदोन्नति ले ली” एक व्यंग्य था, पर उसमें गहरी कूटनीतिक समझ छिपी थी। यह इशारा था कि भारत पाकिस्तान के दिखावे से प्रभावित नहीं होता।
वैश्विक शक्ति-संतुलन का नया दौर
अब सवाल यह नहीं कि कौन कितनी परमाणु शक्ति रखता है, बल्कि यह है कि कौन अपनी शक्ति का प्रयोग कब और कैसे करता है।
भारत का दृष्टिकोण यही है — शक्ति का प्रदर्शन नहीं, शक्ति का अनुशासन।
दुनिया आज उस मोड़ पर है जहाँ ‘डिटरेंस’ सिर्फ़ हथियारों से नहीं, नीतियों से तय होता है।
भारत की नीति “संतुलन के साथ शक्ति” का आदर्श प्रस्तुत करती है। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की बात सुनी जाती है, अनसुनी नहीं की जाती।
भविष्य की दिशा
आज का भारत वह नहीं जो किसी की छाया में खड़ा हो।
यह वह भारत है जो अपने मित्रों से बराबरी पर बात करता है, अपने विरोधियों को स्पष्ट जवाब देता है और अपनी जनता से पारदर्शिता रखता है।
विदेश मंत्रालय का ताज़ा बयान इसी आत्मविश्वास का प्रमाण है।
दुनिया बदल रही है — पुरानी संधियाँ टूट रही हैं, नए गठबंधन बन रहे हैं। लेकिन भारत की दिशा स्थिर है:
राष्ट्रीय हित सर्वोपरि, वैश्विक ज़िम्मेदारी समान रूप से आवश्यक।
कूटनीति की इस बिसात पर भारत अब मोहरा नहीं, निर्णायक खिलाड़ी है।
और यही आने वाले दशक की असली कहानी होगी —
शांति के साथ शक्ति, संयम के साथ साहस, और नीति के साथ प्रतिष्ठा।





