
Dr Suman Vashisht receiving the National Best Nursing Teacher Award during the Mathura conference.
नर्सिंग शिक्षा में डॉ वशिष्ट का सफर और अवार्ड की हक़ीक़त
📍मुरादाबाद 🗓️ 1 6 नवम्बर 2025 ✍️आसिफ़ खान
टीएमयू की डॉ सुमन वशिष्ट को मिला राष्ट्रीय अवार्ड सिर्फ एक इज़्ज़त नहीं, बल्कि नर्सिंग शिक्षा, तहक़ीक़, क्लिनिकल समझ और स्टुडेंट डेवलपमेंट के बदलते नक़्शे की एक अहम निशानी है।
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी मुरादाबाद का कॉलेज ऑफ नर्सिंग पिछले कुछ सालों में जिस सुकूनभरी तरक़्क़ी से गुज़रा है, उसकी नई मिसाल हाल ही में मथुरा में दिखाई दी। वहां नेशनल नर्सिंग कॉन्फ्रेंस के दौरान मेंटल हेल्थ नर्सिंग की हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ सुमन वशिष्ट को नेशनल बेस्ट नर्सिंग टीचर अवार्ड 2025 से नवाज़ा गया।
यह सम्मान महज़ एक औपचारिक अवार्ड नहीं, बल्कि नर्सिंग तालीम के बदलते मयार, जज़्बे और ज़िम्मेदारी की एक गहरी परत को सामने लाता है।
मेरी निगाह में यह अवार्ड एक शख़्स की मेहनत की दाद तो है ही, लेकिन उससे ज़्यादा यह सवाल उठाता है कि नर्सिंग तालीम में असल में कामयाबी की असल कसौटी क्या है। तालीम सिर्फ किताब तक सीमित नहीं रहती। यह उस लम्हे में परखी जाती है जब स्टूडेंट पहली बार असल मरीज के पलंग के पास खड़ी होती है और एक नर्स की तरह उसके दर्द, फ़िक्र, बेचैनी और उम्मीद को महसूस करती है। यही वह मौक़ा है जहां एक अच्छे उस्ताद का असर सबसे ज़्यादा झलकता है।
डॉ वशिष्ट को मिला यह सम्मान इस बात का इशारा है कि उनकी तालीमी फोकस सिर्फ क्लासरूम तक नहीं सिमटता। उनकी तजुर्बाकारी, तहक़ीक़ी नजर, और स्टूडेंट्स के असली जीवन अनुभवों को समझकर पढ़ाने की सलाहियत उन्हें बाक़ियों से जुदा बनाती है। उनके 42 रिसर्च पेपर्स इस बात की गवाही देते हैं कि वह महज़ लेक्चर देने वाली टीचर नहीं, बल्कि हेल्थ साइंस की दुनिया में एक फ़िक्रमंद तहक़ीक़गर भी हैं।
यहां एक सवाल उठता है। क्या अवॉर्ड तालीम की क्वालिटी का पक्का पैमाना हो सकता है? मेरी राय में अवॉर्ड सिर्फ दरवाज़ा खोलते हैं; अंदर क्या है, वह काम दिखाता है। और डॉ वशिष्ट का काम एक लंबे अरसे से दिखाई देता रहा है। स्टूडेंट्स अक्सर बताते हैं कि उनके अंदाज़ में एक अजीब सी यक़ीनदेही होती है, जैसे वह हर नए स्टूडेंट का हाथ पकड़कर उसे यह एहसास दिलाती हों कि नर्स बनना सिर्फ एक नौकरी नहीं, बल्कि इंसानी दर्द की गहराई को समझने का सफ़र है।
कॉन्फ्रेंस की थीम भी दिलचस्प थी — साक्ष्य आधारित अभ्यास और हेल्थ टेक्नोलॉजी की भूमिका। आज मेडिकल साइंस का ढांचा जिस तेजी से डिजिटल हो रहा है, उसी तेजी से नर्सिंग तालीम भी अपना चेहरा बदल रही है। मगर टेक्नोलॉजी सिर्फ तभी फ़ायदेमंद बनती है जब उसके साथ इंसानियत की बुनियाद न डगमगाए। यहां उर्दू का एक लफ़्ज़ इसे ठीक बयान करता है — कशिश। एक नर्स की आंखों में जो कशिश, नर्मी, और रहमदिली दिखती है, वह किसी मशीन से पैदा नहीं की जा सकती। डॉ वशिष्ट के काम की अहमियत यही है कि वह टेक्नोलॉजी और तालीम के इस बदलते संगम में इंसानी अहसास को जिंदा रखने की कोशिश करती हैं।
अवार्ड देने वालों में संस्कृति यूनिवर्सिटी की डीन डॉ डी पुनगोडी थीं, और मंच पर लोकसभा के सांसद श्री फग्गन सिंह कुलस्ते और यूपी की राज्य मंत्री श्रीमती प्रतिभा शुक्ला जैसे नाम मौजूद थे। ऐसे मंच पर किसी नर्सिंग टीचर का सम्मान मिलना इस बात की तस्दीक़ है कि नर्सिंग अब सिर्फ एक सहायक प्रोफेशन नहीं माना जाता बल्कि हेल्थ केयर सिस्टम की रीढ़ बन चुका है।
अब बात करते हैं एक मुश्किल सवाल की।
क्या हमारे तालीमी संस्थान हर उस टीचर को पहचानते हैं जो बदलाव ला रहा हो?
अक्सर जवाब ‘नहीं’ होता है। मगर जब किसी टीचर को ऐसा राष्ट्रीय मंच मिलता है, तो यह पूरे सिस्टम को एक तरह का आईना दिखाता है। इसमें उर्दू की एक खूबसरत तर्ज़ मौजूद है — एतराफ़। यानी किसी की खूबियों को खुलकर मान लेना। डॉ वशिष्ट के सम्मान में यही एतराफ़ साफ दिखाई देता है।
उनके 15 वर्ष के तजुर्बे में क्लिनिकल नर्सिंग की बारीकियों से लेकर स्टूडेंट मैनेजमेंट तक सब कुछ शामिल है। कई टीचर पढ़ाते तो अच्छा हैं, लेकिन रिसर्च की दुनिया से दूर रहते हैं। दूसरी ओर कुछ लोग सिर्फ रिसर्च में जुट जाते हैं और क्लासरूम की गर्म मिट्टी से दूर हो जाते हैं। डॉ वशिष्ट इन दोनों सिरों के बीच एक संतुलन बनाती हैं, जो उनकी सबसे बड़ी क़ाबिलियत है।
उनकी चार किताबें नर्सिंग स्टूडेंट्स के बीच काफ़ी मक़बूल हैं। खासकर नर्सिंग फ़ाउंडेशन को मिला सम्मान उनकी लेखन शैली और समझदारी का सबूत है। तालीमी किताबें अक्सर सूखी लगती हैं, मगर उनका लिखा हुआ कंटेंट रटने पर मजबूर नहीं करता बल्कि समझने पर आमादा करता है।
अब जरा एक और आयाम पर सोचिए।
हमारे मुल्क में नर्सिंग पेशे को लेकर समाज की सोच हमेशा दो हिस्सों में बंटी रही है। एक तरफ यह पेशा बेहद सम्मानित है, तो दूसरी तरफ कई लोग इसे केवल ‘सर्विस’ समझते हैं। मगर जब किसी नर्सिंग टीचर को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिलता है, तो यह तसव्वुर बदलता है। यह इस प्रोफेशन को नई रौशनी में पेश करता है।
यहां English का एक शब्द बेहद सटीक बैठता है — इंस्पिरेशन।
डॉ वशिष्ट का सफ़र नई नर्सों और टीचर्स दोनों के लिए यही प्रेरणा बन सकता है कि मेहनत और ईमानदारी हमेशा अपना रास्ता बना लेती है।
अब एक तर्क भी सुन लीजिए।
कई लोग कहेंगे कि अवॉर्ड्स की दुनिया में राजनीति, नेटवर्किंग या शोहरत का असर होता है।
मैं इस तर्क को सिरे से नहीं खारिज कर रहा। हां, कभी-कभी ऐसा भी होता है। मगर क्या हर अवॉर्ड को उस शक की नज़र से देखना जायज़ है? यहां हमें बैलेंस बनाना चाहिए। अगर अवॉर्ड पाने वाला व्यक्ति सचमुच अपने काम से सिस्टम में फर्क ला रहा हो, तो अवॉर्ड महज़ शोपीस नहीं बनता, बल्कि एक तरह का सामाजिक दस्तावेज़ बन जाता है। डॉ वशिष्ट के मामले में यही महसूस होता है।
अब ज़रा आगे की तस्वीर देखें।
नर्सिंग शिक्षा का भविष्य उन हाथों में रहेगा जो तालीम, तहक़ीक़ और टेक्नोलॉजी तीनों को एक साथ पकड़ सकें। भारत जिस हेल्थ-केयर बोझ से गुज़र रहा है, उसमें नर्सिंग स्टाफ की भूमिका सबसे अहम है। ऐसे माहौल में नर्सिंग टीचर्स को सिर्फ किताबें पढ़ाने वाली शख़्सियत नहीं, बल्कि सिस्टम बिनाने वाली कड़ी माना जाना चाहिए।
टीएमयू के कॉलेज ऑफ नर्सिंग में यह अवॉर्ड एक नई ऊर्जा पैदा करेगा। यह स्टूडेंट्स के लिए भी संकेत है कि उनका संस्थान सिर्फ पढ़ाई का नहीं, बल्कि पहचान और क़ाबिलियत का केंद्र है।
आखिर में एक बात और।
नर्सिंग पेशा जितना नर्मदिल लोगों की जरूरत रखता है, उतना ही मजबूत इरादे की भी। दर्द, बीमारी, बेबसी, और कभी-कभी मौत — यह सब उस पेशे का हिस्सा हैं। ऐसे माहौल में तालीम देने वाला हर टीचर एक तरह से समाज का ख़ामोश हीरो होता है।
डॉ सुमन वशिष्ट को मिला यह अवॉर्ड ऐसी ही ख़ामोश हीरोइज़्म का इज़हार है।
उनके सफ़र में फैली मेहनत, तहक़ीक़, इंसानी समझ और तालीमी जज़्बे की कहानी आने वाली नर्सों के लिए एक मजबूत रास्ता तय करती है। यही किसी भी अवॉर्ड की असली कामयाबी है — कि वह सिर्फ एक शख़्स को नहीं, बल्कि पूरी नस्ल को बेहतर बनने की प्रेरणा दे।




