
गाजा संकट पर उभरती नई जियोपॉलिटिक्स और दो ज़ोन की बहस
गाजा की ताज़ा रणनीति और बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरण
📍नई दिल्ली🗓️16 नवम्बर 2025✍️आसिफ़ खान
गाजा को ग्रीन ज़ोन और रेड ज़ोन में बांटने की चर्चाओं ने जियोपॉलिटिकल बहस को तेज़ कर दिया है। यह संपादकीय योजना की वास्तविकता, नैतिकता और वैश्विक शक्ति समीकरणों की परतें खोलता है।
अमेरिका इज़राइल और वैश्विक ताकतों की गाजा पर नई सोच
गाजा संकट किसी एक फ़ैसले का नतीजा नहीं है। यह कई सालों से बनती आ रही भू-राजनीतिक परतों का संगठित तनाव है। हाल की रिपोर्टें बताती हैं कि अमेरिका गाजा को दो हिस्सों में बांटने के लिए एक लंबी योजना पर काम कर रहा है। यह दावा द गार्डियन की जांच आधारित रिपोर्ट में सामने आया। ग्रीन ज़ोन और रेड ज़ोन शब्द भले सरल दिखें लेकिन इनके पीछे जो नई जियोपॉलिटिकल इंजीनियरिंग छिपी है, वह कहीं ज़्यादा जटिल है।
यहां पहली बात ध्यान देने की है कि ग्रीन ज़ोन में इंटरनेशनल सिक्योरिटी फोर्सेज़ और इज़राइली सैनिकों का साझा कंट्रोल होगा। यह एक तरह का हाइब्रिड सिक्योरिटी स्पेस बनता है, जहां स्थानीय फिलिस्तीनी आबादी को सीमित प्रवेश मिलेगा। दूसरी ओर रेड ज़ोन वह इलाक़ा है जो आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। यहां फिलहाल कोई पुनर्निर्माण नहीं होगा। पूरी दो मिलियन की आबादी इसी हिस्से में फंसी है।
अब असली सवाल यह है कि क्या यह योजना गाजा को स्थिरता देगी या इसे और टूटे हुए स्वरूप में ढकेल देगी। मैं यहां सिर्फ सहमति नहीं देता, बल्कि इस विचार की परीक्षा करना ज़रूरी समझता हूं। क्या यह मॉडल किसी स्थायी शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में ले जा सकता है। या यह तनाव बढ़ाने वाली नई दीवारें बना रहा है।
ग्रीन ज़ोन का उद्देश्य और उसकी चुनौती
गाजा के पूर्वी हिस्से को ग्रीन ज़ोन के रूप में चिन्हित करने का मतलब है कि यहां इंटरनेशनल ट्रूप्स तैनात होंगे। योजना के मुताबिक शुरुआत में कुछ सौ सैनिक और बाद में यह संख्या बीस हजार तक जा सकती है। अमेरिका चाहता है कि इस व्यवस्था को संयुक्त राष्ट्र से आधिकारिक मंजूरी मिले। अंग्रेज़ी में कहें तो यह एक Security Mandated Corridor जैसा ढांचा लगता है।
लेकिन यहां एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है। क्या किसी बाहरी बल की लगातार उपस्थिति फिलिस्तीनी जनता को भरोसा देगी या असुरक्षा बढ़ाएगी। उर्दू में इसे यूं समझिए कि अमन की राह पर चलते हुए जब एक तरफ समझौते की बात हो और दूसरी तरफ भारी फौजी तैनाती, तो अवाम के दिल में एहतियात पैदा होना लाज़मी है।
यहां मेरा दूसरा तर्क यह है कि अंतरराष्ट्रीय बल को ग्रीन ज़ोन से बाहर जाने की इजाज़त नहीं होगी। यानी यह एक कंट्रोल्ड आइलैंड है। इससे longtime governance का प्रश्न खड़ा होता है। क्या एक ऐसा इलाका, जो सुरक्षा की परछाई में खड़ा हो, स्थायी जनविश्वास बना सकता है।
रेड ज़ोन की हकीकत और नैतिक प्रश्न
गाजा का पश्चिमी हिस्सा बिल्कुल तबाह हो चुका है। इस पर कोई पुनर्निर्माण कार्य फिलहाल नहीं होगा। इसे रेड ज़ोन कहते हैं। दो मिलियन की भीड़ यहां सुरक्षा, पानी, बिजली और रोज़मर्रा के संसाधनों के लिए जूझ रही है।
यहां मेरा सीधा सवाल है। क्या एक खंडहर को रेड ज़ोन घोषित कर देना एक रणनीतिक निर्णय है या मानवीय संवेदनाओं के विरुद्ध एक गहरी चूक। उर्दू में कहा जाए तो यह इलाक़ा सिर्फ बर्बाद शहर नहीं, बल्कि बिखरे हुए घरों की आहें भी अपने अंदर लिए बैठा है। ऐसे में रीहैबिलिटेशन को रोकने का फैसला खुद अमन की बुनियाद को कमजोर करता है।
अंग्रेज़ी में bottom line यही है कि किसी भी peace plan का पहला आधार reconstruction और dignity restoration होना चाहिए।
ट्रम्प की शांति योजना और उसका विरोधाभास
ट्रम्प ने मिस्र में एक शांति समझौते पर दस्तख़त किए थे और एक बीस पॉइंट प्लान पेश किया था। इसमें युद्ध रोकना, बंधकों की रिहाई, अंतरिम बोर्ड बनाना और reconstruction की योजनाएं शामिल थीं। कागज पर यह framework काफी संतुलित लगता है।
लेकिन यहां मैं एक counter point रखना चाहता हूं। अगर शांति योजना का उद्देश्य गाजा की एकता था, तो फिर बाद में उभरती दो ज़ोन की नीति इस लक्ष्य के बिल्कुल उलट है। उर्दू में इसे तज़ाद कहते हैं। यानी एक तरफ कहा गया था कि गाजा एक रहेगा। दूसरी तरफ उसे दो हिस्सों में बांटने की कवायद चल रही है।
यही विरोधाभास किसी भी peace roadmap की credibility को कमज़ोर करता है।
रूस और चीन की नई चाल
यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में रूस ने अपना अलग प्रस्ताव पेश कर दिया। अमेरिका की बीस सूत्री योजना के जवाब में रूस का दस सूत्री प्रस्ताव आया जिसमें फिलिस्तीनी राज्य की मांग तो है, लेकिन किसी अंतरराष्ट्रीय बल या अमेरिकी मॉडल की गवर्निंग स्ट्रक्चर का ज़िक्र नहीं।
यहां मैं कहना चाहूंगा कि यह सिर्फ कूटनीतिक मतभेद नहीं, यह वैश्विक संतुलन की नई लाइनें खींचने जैसा है। चीन भी रूस के साथ खड़ा दिखता है। इससे संकेत मिलता है कि गाजा अब सिर्फ एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं, बल्कि एक multipolar power contest बन गया है।
हिंदी में साफ समझें तो अब गाजा भविष्य की वैश्विक राजनीति का परीक्षण मैदान बन चुका है।
मानवीय संकट सबसे बड़ा प्रश्न
राजनीति, सुरक्षा, दावे, कागज़, प्रस्ताव। सब अपनी जगह हैं। लेकिन असल तस्वीर उन लोगों की है जो रेड ज़ोन में जमीनी मुश्किलों से जूझ रहे हैं। उर्दू में कहा जाए तो यह अलाक़ा सिर्फ नक्शे में नहीं, बल्कि दर्द की असल दुनिया में मौजूद है।
अंग्रेज़ी में humanitarian credibility किसी भी peace process का असली आधार है। अगर reconstruction रुका रहा और ज़मीन पर suffering बढ़ती रही, तो कोई भी सुरक्षा योजना टिक नहीं पाएगी।
यहां मेरा तर्क यह है कि zone based planning तभी सफल होगी जब dignity को सबसे ऊपर रखा जाए।
समापन विश्लेषण
गाजा पर दो ज़ोन की योजना सिर्फ सैन्य ढांचे का सवाल नहीं, बल्कि उस narrative का हिस्सा है जिसमें शक्ति संतुलन मानवीय ज़रूरतों पर भारी पड़ जाता है। मैं यहां यह नहीं कह रहा कि कोई भी योजना पूरी तरह गलत है, लेकिन इसका आलोचनात्मक परीक्षण ज़रूरी है।
क्या यह मॉडल शांति को आगे बढ़ाएगा। या यह एक टूटे समाज को और विभाजित करेगा।
हिंदी में साफ बात यह है कि स्थायी समाधान तभी उभरेगा जब हर पक्ष अपनी प्राथमिकताओं को सुरक्षा से आगे बढ़ाकर इंसानी इज़्ज़त और आज़ादी पर रखे।
यही वह जगह है जहां असली बातचीत शुरू होनी चाहिए।
गाजा को दो ज़ोन में बांटने की अमेरिकी योजना पर विस्तार से विश्लेषण। इसमें राजनीति, सुरक्षा और मानवीय असर की पूरी तस्वीर पेश की गई है।




