
मदीना के पास उमरा यात्रियों की भीषण बस दुर्घटना
ओवैसी ने केंद्र और दूतावास से त्वरित कार्रवाई की मांग
📍नई दिल्ली🗓️ 18 नवम्बर 2025✍️असिफ़ ख़ान
मदीना के पास हुए बस हादसे में हैदराबाद के कई उमरा ज़ायरिन की मौत ने भारत और सऊदी अरब की ट्रांसपोर्ट सेफ़्टी पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। यह एडिटोरियल उन सवालों और जमीनी हालात की परतें खोलता है।
भारतीय समुदाय सदमे में, सहायता के इंतज़ार में परिवार
सऊदी अरब के मदीना रूट पर हुआ यह बस हादसा सिर्फ एक दर्दनाक ख़बर नहीं, बल्कि एक ऐसी दरार है जो दोनों मुल्कों की सिस्टमिक तैयारी को सामने लेकर आती है। हैदराबाद से निकले ये ज़ायरिन उमरा की नीयत से गए थे—एक रूहानी सफ़र, जहाँ इंसान अपने रब के करीब जाने की उम्मीद करता है। किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि यह सफ़र उनकी ज़िंदगी का आख़िरी पड़ाव बन जाएगा।
रिपोर्ट्स के मुताबिक़, बस की टक्कर एक डीज़ल टैंकर से हुई और पल भर में आग फैल गई। 42 लोगों की मौत की पुष्टि होते ही पूरा तेलंगाना, ख़ास तौर पर हैदराबाद का पुराना शहर, सदमे में चला गया। सोशल मीडिया पर मैसेज घूमने लगे, लोग अपने रिश्तेदारों के नाम तलाशने लगे, और कई घरों में सन्नाटा फैल गया।
यहाँ से हमारी कहानी शुरू होती है—कैसे एक देश से दूसरे देश पहुँचे ये लोग, और कैसे दोनों देशों के सिस्टम ने इस हादसे के हर पल को प्रभावित किया।
हैदराबाद से मदीना तक का सफ़र: उम्मीदें और हक़ीक़त
उमरा के लिए ट्रैवल करने वाले ज़्यादातर लोग मिडिल क्लास से आते हैं। यह सफ़र उनके लिए सिर्फ धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक भावनात्मक सफ़र भी होता है। हैदराबाद में ऐसी सैकड़ों ट्रैवल एजेंसियाँ हैं जो उमरा पैकेज बेचती हैं। कई लोग बारीक़ी से नियम नहीं समझते। उन्हें बस इतना पता होता है कि फ्लाइट, होटल और ट्रांसपोर्ट का बंदोबस्त हो गया है।
लेकिन यहाँ एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है:
क्या ये ट्रैवल एजेंसियाँ बारीक़ी से यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके ज़ायरिन किन बसों में सफ़र करेंगे, ड्राइवर कितना ट्रेनिंग प्राप्त है, रात के सफ़र की क्या गाइडलाइंस हैं?
जवाब अक्सर धुंधला ही मिलता है।
कई बार लोग एजेंसी के भरोसे चलते हैं, मगर एजेंसी स्थानीय अरबी ऑपरेटर के भरोसे। और जब ज़िम्मेदारी कई हिस्सों में बँट जाती है, तब हादसा किसी एक बिंदु की नहीं बल्कि पूरे सिस्टम की नाकामी की तस्वीर बन जाता है।
मदीना रूट की हक़ीक़त: ट्रैफ़िक और थकान की जंग
मक्का–मदीना के हाईवे पर लगातार ट्रैफ़िक चलता है। दुनिया भर के मुसलमान साल भर आते हैं। ड्राइवरों पर दबाव बढ़ता है। कई बार लगातार शिफ़्ट में काम करवाया जाता है।
एक सऊदी ड्राइवर ने कुछ साल पहले एक इंटरव्यू में कहा था:
“हज और उमरा के मौसम में हम सोते कम हैं, चलाते ज़्यादा हैं।”
यह लाइन अपने आप में पूरी कहानी खोल देती है।
थकान, लंबा रूट, रात का समय और तेज़ रफ़्तार—ये चारों मिलकर हादसे का रिस्क बढ़ा देते हैं।
इस बार वही हुआ।
सऊदी रिपोर्ट्स यह संकेत करती हैं कि टैंकर ने अचानक लेन बदली। अगर यह सच है तो यहाँ दो सिस्टम फेल हुए—
एक, टैंकर ड्राइवर की निगरानी
दूसरा, बस की ब्रेकिंग और सुरक्षा व्यवस्था
यही वह जगह है जहाँ भारत और सऊदी दोनों देशों को इसी तरह की यात्राओं के लिए जॉइंट सेफ़्टी प्रोटोकॉल बनाने की ज़रूरत है।
हादसे के बाद की भागदौड़: इंसानी पीड़ा का सबसे कठिन दौर
ज़्यादातर लोग जब विदेश में किसी दुर्घटना में फँसते हैं तो सबसे बड़ी मुश्किल सूचना की होती है।
कौन ज़िंदा है
कौन घायल है
कौन नहीं रहा
भारत में बैठे परिवार बस कॉल और वॉट्सऐप मैसेज पर टकटकी लगाए रहते हैं। इस हादसे में भी यही हुआ।
तेलंगाना सरकार ने तुरंत कंट्रोल रूम बनाया।
भारतीय दूतावास ने 24×7 हेल्पलाइन जारी की।
राज्य अधिकारी दिल्ली में सक्रिय हुए।
लेकिन यह सच भी सामने आया कि विदेशी दुर्घटनाओं में भारतीयों की पहचान, दस्तावेज़ और शवों के प्रबंधन में भारी देरी होती है।
लोगों का दर्द दोहरी हो जाता है—
एक हादसा
दूसरा इंतज़ार
ओवैसी ने भी दो ट्रैवल एजेंसियों से जानकारी जुटाई और रियाद दूतावास के साथ साझा की। यह अच्छा कदम था, लेकिन यह ज़िम्मेदारी सिर्फ एक सांसद पर नहीं रहनी चाहिए।
यह एक सिस्टम की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए।
क्या यह टाला जा सकता था?—सवाल जो सबसे भारी है
जब 42 लोग एक साथ मरते हैं, तो सवाल उठना ज़रूरी है।
क्या बस की सर्विसिंग ठीक थी?
क्या ड्राइवर ज़्यादा थक चुका था?
क्या रात के रूट पर स्पीड गाइडलाइंस फॉलो हुईं?
क्या टैंकर की लेन चेंजिंग का रिकॉर्ड है?
क्या जीपीएस लॉग उपलब्ध हैं?
ये कोई तकनीकी सवाल नहीं, बल्कि इंसानी ज़िंदगी से जुड़े सवाल हैं।
दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहाँ लंबी दूरी की बसें बिना डबल ड्राइवर के नहीं चलतीं।
क्या सऊदी में उमरा रूट्स पर ऐसा लागू है?
अगर नहीं, तो होना चाहिए।
भारत की तरफ से भी यह मांग उठनी चाहिए।
क्योंकि हर साल लाखों भारतीय हज और उमरा के लिए वहाँ जाते हैं।
हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस हादसे पर गहरी तकलीफ़ जताई। उन्होंने यात्रियों की जानकारी दो ट्रैवल एजेंसियों से लेकर भारतीय दूतावास को भेजी और आगे के स्टेप्स पर बात की। उन्होंने विदेश मंत्री से शवों की जल्द वापसी और घायलों के लिए स्पेशल मेडिकल सुविधा की मांग उठाई। ऐसी बात इसलिए अहम है क्योंकि भारत सरकार कई बार इस तरह की परिस्थितियों में तेज़ी दिखाती रही है, और इस मामले में भी परिवारों को उम्मीद है कि प्रक्रिया में देरी नहीं होगी।
रूहानी सफ़र और ट्रांसपोर्ट सेफ़्टी का रिश्ता
उमरा या हज सिर्फ एक यात्रा नहीं।
यह एक रूहानी अनुभव है।
लोग अल्लाह से रिश्ता मज़बूत करने जाते हैं।
दिल हल्का करने जाते हैं।
अपनी दुआओं को मुकम्मल करने जाते हैं।
लेकिन जब इस सफ़र में असुरक्षा की परछाई पड़ जाए, तो यह सिर्फ ट्रांसपोर्ट का मुद्दा नहीं रह जाता।
यह एक समुदाय की भावना का मुद्दा बन जाता है।
कई ज़ायरिन पहली बार विदेश जाते हैं।
कई पासपोर्ट भी सिर्फ इसी सफ़र के लिए बनवाते हैं।
उनके परिवार कई महीनों तक पैसे जोड़कर उमरा पैकेज खरीदते हैं।
दुख तो तब और बढ़ जाता है जब लोग वापस ज़िंदा नहीं लौटते।
भारत के लिए यह किस तरह की चेतावनी है
भारत हर साल सबसे ज़्यादा उमरा और हज यात्रियों को भेजने वाले देशों में से एक है।
लेकिन भारत में
पूर्व प्रशिक्षण
सेफ़्टी ब्रीफिंग
इमरजेंसी गाइडलाइंस
ट्रैवल एजेंसी रेगुलेशन
इन सब पर गहरी कमी है।
अधिकांश एजेंसियाँ बस एक पैकेज बेचती हैं—
ऊपर से चमकदार
अंदर से अनगढ़
सरकार को चाहिए कि—
उमरा और हज यात्रियों के लिए
एक अनिवार्य सुरक्षा मॉड्यूल शुरू किया जाए,
जहाँ उन्हें बताया जाए कि
ट्रांसपोर्ट कैसे काम करता है,
आपात स्थिति में क्या करना है,
और किन नंबरों पर संपर्क करना है।
यह कदम बहुत सा दर्द कम कर सकता है।
सऊदी अरब को भी अपनी व्यवस्था दुरुस्त करनी होगी
सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ पर्यटन गंतव्य है।
लेकिन इसके बावजूद—
ट्रैफ़िक सेफ़्टी
ड्राइवर प्रोटोकॉल
हाईवे मॉनिटरिंग
बस कंपनियों की जांच
इन सभी क्षेत्रों में सुधार की ज़रूरत है।
हर साल कई हादसे होते हैं।
कभी छोटे
कभी बड़े
कभी इतने बड़े कि दुनिया हिल जाए
इस बार वही हुआ।
अगर सऊदी अरब हज और उमरा को
एक सुरक्षित यात्रा बनाना चाहता है
तो उसे सड़क सुरक्षा को
एयरपोर्ट सुरक्षा जितनी प्राथमिकता देनी होगी।
आगे का रास्ता: मिलकर हल बन सकता है
दोनों देशों को गठजोड़ कर
एक जॉइंट सेफ़्टी फ्रेमवर्क तैयार करना चाहिए—
जिसमें शामिल हों:
• बसों की अनिवार्य सेफ़्टी ऑडिट
• डबल ड्राइवर सिस्टम
• रात के रूट पर स्पीड कंट्रोल
• डिजिटल GPS मॉनिटरिंग
• ट्रैवल एजेंसियों की लाइसेंसिंग मानक
• दुर्घटना के बाद रैपिड रिस्पॉन्स प्रोटोकॉल
यह कोई असंभव काम नहीं है।
बस नीयत और प्राथमिकता की ज़रूरत है।
आख़िरी सवाल: क्या हम सीखेंगे?
हादसे आते रहते हैं।
ख़बरें बनती रहती हैं।
मगर असल सवाल यही है—
क्या हम हर हादसे से सीखते हैं
या सिर्फ आँकड़े गिनकर आगे बढ़ जाते हैं?
हैदराबाद के ये 42 लोग
सिर्फ नंबर नहीं थे।
वे किसी के अब्बू थे
किसी की अम्मी
किसी का भाई
किसी की बहन
किसी का बच्चा
उनकी मौत हमें याद दिलाती है कि
इबादत का सफ़र
इतना असुरक्षित नहीं होना चाहिए।
यह हादसा
भारत
सऊदी अरब
और ट्रैवल इंडस्ट्री
तीनों से जवाब मांगता है।
अगर हमने इस बार भी न सीखा
तो अगली त्रासदी सिर्फ वक्त का इंतज़ार होगी।




