
Dharmendra's smile and memories are still alive in Bollywood.
बॉलीवुड ही-मैन धर्मेंद्र का निधन, एक सुनहरा दौर ख़त्म
📍मुंबई ✍️ Asif Khan
धर्मेंद्र का निधन सिर्फ एक अभिनेता का खो जाना नहीं, बल्कि हिन्दी सिनेमा की उस रूह का बुझना है जिसने लाखों दिलों को इज़्ज़त, मोहब्बत और सादगी के साथ छुआ था। उनके जाने ने फिल्मों के इतिहास में एक ऐसा खालीपन छोड़ दिया है जिससे उभरने में वक़्त लगेगा।
बॉलीवुड की दुनिया में आज एक ऐसा सन्नाटा उतर आया है जिसे सिर्फ ख़बर नहीं कहा जा सकता। यह वह लम्हा है जब सिनेमा का इतिहास खुद दुख में डूब जाता है, जब पर्दे पर छाया एक चमकता सितारा खामोशी में अपनी आख़िरी रोशनी छोड़कर चला जाता है। धर्मेंद्र, जिन्हें दुनिया ही-मैन कहती थी, अब दुनिया का हिस्सा नहीं रहे। और यह कहना जितना आसान है, उतना ही गहरा दर्द इस सच्चाई के पीछे छुपा है।
मीडिया ने जैसे ही यह ख़बर दी, देश के हर कोने में एक ही बात उठी कि एक युग सचमुच समाप्त हो गया। 89 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्हें पंचतत्व में विलीन किया गया। सोशल मीडिया पर उनके चाहने वाले, साथी कलाकार और राजनीतिक नेतृत्व इस दर्द को शब्द दे रहे हैं। लेकिन धर्मेंद्र की कहानी को किसी शोक संदेश में बांधा नहीं जा सकता। उनकी यात्रा इतनी लम्बी, गर्मजोशी से भरी और इन्सानियत से सराबोर थी कि उसे सिर्फ फिल्मी उपलब्धियों में नहीं मापा जा सकता।
धर्मेंद्र का व्यक्तित्व ऐसा था जिसमें एक तरफ मजबूत शरीर और जज़्बा था, तो दूसरी तरफ नर्म दिल, शर्मीला मिजाज़ और एक ऐसी सादगी थी जो आज के समय में कम दिखाई देती है। यही वजह है कि उन्हें सिर्फ परदे पर नहीं, असल ज़िंदगी में भी सम्मान और मोहब्बत मिली। लोग कहते थे कि कैमरा उन्हें प्यार करता है, लेकिन जिस तरह आम लोग उनसे जुड़ते थे, वह साबित करता था कि वह सिर्फ स्टार नहीं, आम इन्सान की तरह अपनेपन से मिलने वाले कलाकार थे।
उनके निधन पर प्रधानमंत्री ने भी गहरा दुख जाहिर किया। यह दिखाता है कि उनकी लोकप्रियता सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं थी। वह एक ऐसे शख़्स थे जिनके प्रति देश के हर वर्ग में सम्मान था। सेलेब्रिटी हो या आम आदमी, हर व्यक्ति उनसे एक अजीब सा भावनात्मक रिश्ता महसूस करता रहा है।
उनके साथी कलाकारों ने जो बातें याद की हैं, वे धर्मेंद्र की असल शख़्सियत को सामने लाती हैं। आशा पारेख ने याद किया कि वह कितने शांत, सरल और शर्मीले थे। दोस्तों के बीच बैठकर चाय पीते हुए लंबे किस्से सुनाना उन्हें पसंद था। भीड़ में भी एक-एक व्यक्ति का खयाल रखना, आउटडोर शूटिंग के दौरान लोगों से प्यार से मिलना, ये सब बातें उनकी इंसानियत की याद दिलाती हैं।
यह भी सच है कि पिछले कुछ समय से उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। परिवार के लोग लगातार उनकी देखभाल कर रहे थे। घर में मेडिकल सेटअप लगाया गया था। उनकी तबीयत को लेकर कई बार अफवाहें भी चलीं, जिससे परिवार को दुख हुआ। लेकिन असल में, उम्र ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। उनकी सेहत की लड़ाई धीरे-धीरे मुश्किल होती चली गई, और आख़िरकार वह चुपचाप दुनिया को अलविदा कह गए।
अब सवाल सिर्फ यह नहीं कि वह चले गए। सवाल यह है कि वह क्या छोड़कर गए। यह विरासत सिर्फ उनकी फिल्मों का खजाना नहीं है। वह मुस्कान, वह इन्सानियत, वह सादगी, वह जज़्बा — जो उनके हर किरदार, हर इंटरव्यू और हर तस्वीर से झलक जाता था।
धर्मेंद्र ऐसे कलाकार थे जिन्होंने फ़िल्मों के हर दौर में अपने आप को साबित किया। एक तरफ उनकी “शोले”, “धरमवीर”, “सीता और गीता” जैसी ब्लॉकबस्टर थीं, तो दूसरी तरफ “चुपके चुपके” जैसी हल्की-फुल्की, दिल को छूने वाली कॉमेडी। वह सिर्फ एक्शन हीरो नहीं थे; वह दिल का हीरो थे। उनकी आंखें, आवाज़ और उर्दू-हिन्दी की नरम मिठास उनके संवादों में एक कविता पैदा करती थी।
उनकी फिल्मों में दिखने वाली ताक़त असल में उनके जीवन की ताक़त से निकलती थी। पंजाब के एक साधारण गाँव से उठकर मुंबई की चमक तक पहुँचना कोई आसानी से नहीं कर पाता। लेकिन उन्होंने यह सफ़र न सिर्फ तय किया बल्कि अपनी शर्तों पर किया। वह अपनी रगों में इन्सानियत और ज़मीन से जुड़ाव बनाए रखते थे। यही वजह है कि इतनी बड़ी सफलता के बावजूद उनमें कभी घमंड नहीं आया।
उनकी निजी ज़िंदगी और रिश्तों की गर्माहट भी अद्वितीय थी। परिवार के प्रति उनका प्यार, दोस्तों के प्रति वफ़ादारी और प्रशंसकों के प्रति सम्मान — ये सब बातें धर्मेंद्र को अनोखा बनाती थीं। एक ऐसा शख्स जो नाम और शोहरत के बीच भी इंसान बना रहा।
आज जब हम उनके करियर को देखते हैं, तो यह महसूस होता है कि बॉलीवुड में उनके जैसा कोई दूसरा नहीं आया। नई पीढ़ी उन्हें एक आइकन की तरह देखती है, पुरानी पीढ़ी उन्हें यादों का खजाना मानती है, और समकालीन उन्हें इंसानियत का प्रतीक कहती है।
उनके जाने के बाद यह भी सोचना होगा कि बॉलीवुड में वह कौन सा स्थान था जिसे वह अपने ढंग से भरते थे। वह एक सेतु थे — पुराने दौर की नज़ाकत और नए दौर की ऊर्जा के बीच। जब वह पर्दे पर आते थे, तो एक अलग किस्म की गर्माहट छा जाती थी। आज यह गर्माहट अचानक गायब हो गई है।
लेकिन हर शख्स के न रहने के बावजूद उसकी कहानी जिंदा रहती है। धर्मेंद्र की कहानी ऐसी है जिसमें संघर्ष है, प्यार है, दर्द है, हँसी है, और सबसे बढ़कर, इंसानियत है। वह सिर्फ एक ही-मैन नहीं थे। वह वह नदी थे जो सिनेमा की ज़मीन को सिंचती रही।
उनके निधन के बाद लोग कह रहे हैं कि एक युग खत्म हो गया। लेकिन सच यह है कि ऐसे लोग कभी खत्म नहीं होते। वे सिर्फ दुनिया से जा कर इतिहास में बदल जाते हैं। इतिहास, जो आने वाली पीढ़ियों को बता सके कि कभी एक ऐसा इंसान था जो मुस्कुराते हुए लड़ाइयाँ जीतता था और अपनेपन से दिल जीतता था।
आज के इस शोक में एक सच्चाई छिपी है। दुनिया जिस तेज़ी से बदल रही है, उसमें धर्मेंद्र जैसी शख़्सियतों की कद्र और भी बढ़ जाती है। वह हमें दिखाते हैं कि स्टार बनना आसान है, इंसान बनना मुश्किल। और यही गुण उन्हें अमर बनाता है।
बॉलीवुड हमेशा बदलता रहेगा, नई फिल्में आएँगी, नए सितारे आएँगे। मगर धर्मेंद्र की जगह भरी नहीं जा सकती। क्योंकि कुछ शख्सियतें जन्म ही इसलिए लेती हैं कि वो युग तय कर दें। वह ऐसे ही युग निर्माता थे। उनके नाम के साथ सिर्फ फिल्मों की लिस्ट नहीं जुड़ी रहेगी, बल्कि वह एहसास भी जुड़ा रहेगा जो उन्होंने अपने चाहने वालों के दिल में छोड़ा है।
आज जब मुंबई की हवा थोड़ी भारी लग रही है, जब फ़िल्मी दुनिया का आसमान फीका है, तब यह एहसास और भी गहरा हो जाता है कि वह सिर्फ एक स्टार नहीं थे, बल्कि उम्मीद का वो दीया थे जिसकी रोशनी बहुत दूर तक जाती है।
उनका अंत हो गया, लेकिन उनकी कहानी नहीं। एक अभिनेता गया है, लेकिन एक युग की रूह अब भी घूमती रहेगी।
धर्मेंद्र अब भी वहीं हैं — पर्दे पर, दिलों में, यादों में, और उस सिनेमा की धड़कन में जिसने उन्हें अपना सबसे चमकता सितारा कहा।




