
शाहनवाज राना की एंट्री और उमड़ी भीड़ ने बदल दिए सियासी संकेत
: संविधान दिवस पर मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में आजाद समाज पार्टी की रैली ने भाईचारे और वोट सुरक्षा की बात के साथ 2027 चुनाव की जमीन तैयार करनी शुरू की। पूर्व विधायक शाहनवाज राना का शामिल होना बड़ा मोड़।
संविधान मंच, मकसद राजनीति
मुजफ्फरनगर की यह रैली ऊपर से संविधान दिवस की शपथ सभा थी, लेकिन भीतर से यह पश्चिमी यूपी की बदलती सियासी जमीन का टेस्ट था। भीम आर्मी से निकली राजनीतिक धारा अब खुले तौर पर अपने विस्तार का एजेंडा लेकर मैदान में है। नारा भाईचारा और अधिकार बचाने का, संदेश 2027 चुनावी मोर्चे का।
भीड़ सिर्फ संख्या नहीं, रणनीति है। जब कोई पार्टी गांव-गांव चौपाल लगाकर एक महीने की तैयारी से हजारों लोगों को एक मैदान में खड़ा कर दे, तो वह ताकत दिखाने से ज्यादा यह परख रही होती है कि उसकी बात किन गलियारों तक पहुंच रही है और किन दिलों में टिक रही है।
जो नेता सड़क से संसद तक पहुँचा
चंद्रशेखर आज़ाद का सफर मंच की चमक से शुरू नहीं हुआ, बल्कि जमीन की लड़ाई से निकला। भीम आर्मी की पहचान लेकर वे आंदोलन की भाषा में पॉपुलर हुए, और अब संसद में नगीना से सांसद हैं। उनकी रैलियों में नारों से ज्यादा नाराजगी की ईमानदार गूंज सुनाई देती है। लोग इसलिए नहीं आते कि लाइन पर खड़ा होना है, लोग इसलिए आते हैं क्योंकि उनकी भाषा में अपनी शिकायत दिखती है।
शाहनवाज राना का दांव और आसपा का दायरा
पूर्व विधायक शाहनवाज राना का आजाद समाज पार्टी में शामिल होना साधारण ज्वाइनिंग नहीं थी। यह पश्चिमी यूपी के उस मुस्लिम-राजपूत-दलित त्रिभुज में एक नई रेखा खींचने जैसा था, जिसकी काट ढूंढने में पुरानी पार्टियां अक्सर उलझती रही हैं।
शाहनवाज राना की स्वीकृति मंच पर तालियों में दिखी, लेकिन उसका असल असर स्थानीय संगठन की ताकत और सामाजिक समीकरण की नई बुनावट में बनेगा।
आजाद समाज पार्टी(ASP) यह मानकर चल रही है कि नेतृत्व की पहचान वाली राजनीति से आगे बढ़ने के लिए स्थानीय चेहरे, भरोसे की भाषा और जमीनी शिकायतों को एक सूत्र में पिरोना होगा। रैली में राणा का स्वागत इसी रणनीति का पहला सार्वजनिक पड़ाव था।
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रैली से संदेश: संविधान ढाल, राजनीति निशाना
मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में संविधान दिवस पर आयोजित रैली खास दिन की वजह से बड़ी नहीं थी, यह बड़े सपनों की वजह से बड़ी थी। “संवैधानिक अधिकार बचाओ, भाईचारा बनाओ” नारे ने जो अलग खड़े समुदाय हैं, उनके बीच एक साझा डर और साझा उम्मीद का पुल बनाया।
ASP का असल प्रयास यही है—दलित, मुस्लिम और पिछड़े वर्ग की राजनीतिक सुनवाई को एक ही मंच पर जोड़ना। यह मोर्चा खुलकर 2027 यूपी विधानसभा की तैयारी की ओर झुक चुका है।
चंद्रशेखर की बड़ी बातें, सीधी बातें
वोट सुरक्षा: S.I.R के जरिए वोट चोरी हर हालत में रोकने की कसम
आंदोलन: 1 जनवरी से रोजगार और EVM बंद कराने के लिए पूरे UP में आंदोलन
किसान: गन्ना मूल्य 500₹ प्रति क्विंटल का वादा
क्षेत्रीय न्याय: वेस्ट यूपी में हाईकोर्ट बेंच स्थापित कराने का भरोसा
ये घोषणाएँ नए मुद्दे नहीं, लेकिन इन्हें रखने का अंदाज तेज़, आक्रमक और बिना झिझक वाला है। चंद्रशेखर की ताकत यही है—वे जो कहते हैं, साफ कहते हैं। “यह यूपी है, बिहार नहीं” जैसी लाइनें उनकी राजनीति को क्षेत्रीय गर्व और सीधी चुनौती से भर देती हैं।
अधिकार, आंदोलन और वादों की सियासत
चंद्रशेखर की भाषा: तीखी, क्षेत्रीय, सीधी
मंच से जो बातें आईं, वे राष्ट्रीय दस्तावेज से ज्यादा स्थानीय चोटों का पुल थीं:
S.I.R (Special Intensive Revision) के जरिए वोट चोरी रोकने का संकल्प
1 जनवरी से रोजगार और EVM बंद कराने के लिए राज्यव्यापी आंदोलन का ऐलान
किसानों के लिए गन्ना मूल्य 500 रुपये प्रति क्विंटल का वादा
वेस्ट यूपी में हाईकोर्ट बेंच बनाने की मांग का आश्वासन
ये मुद्दे लोकप्रिय हैं, बड़े हैं, और सीधे उन समुदायों से जुड़े हैं जिनका भरोसा चुनावी राजनीति में बार-बार परखा और तोड़ा गया है। यह राजनीति का नया शब्दकोश नहीं, बल्कि पुरानी नाराजगी का रीमिक्स है—लेकिन इसे पेश करने वाला चेहरा युवा है और भाषा लड़ाकू।
प्रशासन, डायवर्जन और सुरक्षा—शहर ने बदला अपना रूट
पार्किंग: कूकड़ा मंडी, भोपा रोड → विश्वकर्मा चौक रूट
डायवर्जन: राणा चौक पर दिल्ली-मेरठ-शामली-बड़ौत-कांधला की बसों पर रोक
वन-वे: सरकुलर रोड पर एकतरफा ट्रैफिक
बंद संचालन: महावीर चौक → सुजडू चुंगी की ओर बस संचालन बंद
कड़ी सुरक्षा, बहु-मंडलीय पुलिस बल, चौराहों पर बैरिकेडिंग—यह सिर्फ भीड़ प्रबंधन नहीं है। यह बताता है कि जमीन पर ASP का उभार प्रशासन की तैयारी में भी जगह पाने लगा है। जो पार्टी सत्ता में नहीं, उसकी रैली को लेकर इतनी संरचना बदली जाए, तो कहानी सिर्फ मंच पर नहीं, सड़क पर भी लिखी जा रही होती है।
क्या यह मायावती की विरासत में सेंध है?
मायावती का पश्चिमी यूपी में दलित-मुस्लिम समीकरण कभी जीत का सबसे मजबूत फॉर्मूला था। ASP उसी गणित को हाथ में लेकर नया दावा कर रही है। फर्क इतना है कि यह गणित अब पहचान की कठोर दीवारों से ज्यादा भाईचारे के मुलायम दावे में लपेटकर पेश किया जा रहा है।
ASP खुद को उस खाली जगह में फिट करना चाहती है, जहां दलित वोट नया नेतृत्व खोज रहा है और मुस्लिम वोट नई राजनीतिक सुनवाई। यह देखना अभी बाकी है कि यह जगह ASP को राजा बनाती है या सिर्फ खिलाड़ी।
मंच बड़ा, मुकाम दूर
यह रैली ASP का आगाज थी, अंजाम नहीं। यह वह क्षण था जब पार्टी ने संविधान की किताब उठाकर राजनीति का नया अध्याय खोलने का दावा किया।
Bottom line: भाईचारे का नारा भरोसे की गली से गुजरता है, लेकिन 2027 का रास्ता संगठन, धैर्य और वोट-राजनीति की असल मशीनरी तय करेगी।




