
Women and children trapped in Gaza’s devastation, battling hunger and war — Shah Times
संयुक्त राष्ट्र ने गाज़ा में अकाल की पुष्टि की, हालात भयावह
गाज़ा में अकाल और हमले: बढ़ती तबाही पर दुनिया की नज़र
गाज़ा में इस्राइली हमलों और अकाल की स्थिति भयावह हो चुकी है। महिलाएं-बच्चे भूख और हिंसा का शिकार, संयुक्त राष्ट्र ने चेताया।
गाज़ा की ज़मीन आज फिर खून और आँसुओं से भीग रही है। इस्राइली हमलों की आग और भूख की तड़प में फंसे लाखों फलस्तीनी अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक रूप से अकाल की स्थिति घोषित कर दी है, जबकि इस्राइल इसे झूठा प्रचार बता रहा है। सवाल यह है कि जब बच्चे भूख से मर रहे हों, औरतें अपने परिवार के लिए एक रोटी तक तलाश न कर पा रही हों, तो क्या यह महज़ राजनीतिक बहस है या इंसानियत का सबसे बड़ा इम्तिहान।
गाज़ा में बढ़ता युद्ध और मौत का आँकड़ा
गाज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़ अब तक 62,622 से ज़्यादा फलस्तीनी इस संघर्ष में जान गंवा चुके हैं। इन मृतकों में बड़ी संख्या में औरतें और बच्चे हैं। हाल ही के हमले में खान यूनिस में विस्थापित परिवारों के तंबुओं पर बमबारी हुई, जिसमें 17 से अधिक लोगों की मौत हो गई।
सबरा इलाक़े में इजरायली टैंक की घुसपैठ के फुटेज अल-जज़ीरा ने दिखाए।
अल-अहली अस्पताल ने पुष्टि की कि हालिया बमबारी में एक बच्चा मारा गया।
खान यूनिस में एक ही दिन में छह बच्चों सहित 16 लोग मारे गए।
युद्ध अब गाज़ा शहर के भीतर गहराई तक पहुँच चुका है, जिससे विस्थापितों की संख्या बढ़ती जा रही है और ज़िंदगियाँ और असुरक्षित हो रही हैं।
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अकाल और भुखमरी की दहशत
संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि गाज़ा के पाँच लाख से अधिक लोग भुखमरी की कगार पर हैं। अब तक 281 मौतें सिर्फ भूख और कुपोषण से हो चुकी हैं, जिनमें 114 बच्चे शामिल हैं।
अस्पतालों में दवा की कमी
राहत सामग्री पर प्रतिबंध
संयुक्त राष्ट्र ट्रकों को सीमित प्रवेश
गाज़ा के लोग कहते हैं कि उनके लिए मौत अब केवल बम से नहीं, बल्कि भूख से भी आ रही है।
इस्राइल का रुख और उसका बचाव
इस्राइल सरकार का कहना है कि उसने पर्याप्त मानवीय मदद पहुँचाई है। विदेश मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को ‘फर्जी अभियान’ बताया। उनका तर्क है कि IPC (Integrated Food Security Phase Classification) ने सिर्फ गाज़ा रिपोर्ट के लिए वैश्विक मानक बदल दिए।
इस्राइल का दावा है कि यह सब हमास के प्रोपेगैंडा का हिस्सा है, ताकि अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाया जा सके।
संयुक्त राष्ट्र और दुनिया की प्रतिक्रिया
यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि गाज़ा अब “जीवित नरक” से भी आगे निकल चुका है। उनके मुताबिक अकाल और भुखमरी के हालात इंसानियत की सबसे बड़ी हार को दर्शाते हैं।
यूरोपीय संघ ने तत्काल युद्धविराम की अपील की।
अमरीका ने मानवीय कॉरिडोर खोलने की आवश्यकता जताई।
अरब लीग ने कहा कि इस संघर्ष से पूरी मध्य पूर्व की स्थिरता खतरे में है।
विश्लेषण: युद्ध बनाम इंसानियत
यह संघर्ष अब सिर्फ़ सीमा या सुरक्षा का मामला नहीं रह गया है, बल्कि इंसानियत का सबसे बड़ा इम्तिहान है। एक ओर इस्राइल सुरक्षा और आतंकवाद रोकने की दलील देता है, तो दूसरी ओर लाखों निर्दोष फलस्तीनी हर दिन मौत के साए में जी रहे हैं।
भुखमरी की स्थिति किसी भी सिविलाइज़्ड दुनिया के लिए शर्मनाक है। सवाल यह है कि क्या आधुनिक सभ्यता और अंतरराष्ट्रीय कानून ऐसे हालात को बर्दाश्त कर सकते हैं।
प्रतिवाद और जटिलताएँ
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इस्राइल को हमास के ख़िलाफ़ सख़्त सैन्य कार्रवाई करनी ही होगी, क्योंकि आतंकवाद का ख़ात्मा किए बिना शांति संभव नहीं। वहीं, कुछ लोग यह दलील देते हैं कि हमास की छाया में पूरे गाज़ा को सामूहिक सज़ा देना अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का उल्लंघन है।
यही वह जटिलता है, जहाँ राजनीति और इंसानियत टकराती है।
निष्कर्ष: एक वैश्विक ज़िम्मेदारी
गाज़ा का संकट केवल फलस्तीन या इस्राइल का मसला नहीं है। यह पूरी इंसानियत का इम्तिहान है। अकाल, भूख और लगातार हो रहे हमले दिखाते हैं कि वैश्विक तंत्र कितना नाकाम साबित हो रहा है।
जरूरत है कि संयुक्त राष्ट्र और बड़ी शक्तियाँ मिलकर न केवल युद्धविराम सुनिश्चित करें बल्कि राहत सामग्री और चिकित्सा सहायता को प्राथमिकता दें।
अगर दुनिया ने गाज़ा की चीखें नहीं सुनीं, तो आने वाली पीढ़ियाँ इसे हमारी इंसानियत की सबसे बड़ी नाकामी कहेंगी।






