
Afghanistan earthquake destruction with Indian tents and relief aid delivery
भारत ने अफ़ग़ानिस्तान भूकंप पीड़ितों को भेजी तात्कालिक मदद
विदेश मंत्री जयशंकर ने जताई संवेदना बोले– इस मुश्किल वक़्त में भारत अफ़ग़ानिस्तान के साथ
अफ़ग़ानिस्तान भूकंप में 800 से अधिक मौतें। भारत ने भेजे 1000 तंबू और 15 टन खाद्य सामग्री। विदेश मंत्री जयशंकर ने जताई संवेदना।
New Delhi (Shah Times)। अफ़ग़ानिस्तान के कुनार और नांगरहार सूबे में आया 6.0 तीव्रता का भूकंप एक बार फिर इस जर्जर होते मुल्क को गहरे ज़ख्म दे गया। करीब 800 से ज़्यादा लोग अपनी जान गंवा बैठे और हज़ारों घायल हुए। नष्ट घर, टूटी ज़िंदगी और बेघर हुए लोग इस तबाही की गवाही देते हैं। इसी हालात में भारत ने मानवीय हमदर्दी का हाथ बढ़ाते हुए काबुल को 1000 तंबू और 15 टन खाद्य सामग्री भेजी है। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अफ़ग़ान विदेश मंत्री मौलवी अमीर ख़ान मुत्तक़ी से बात कर संवेदना व्यक्त की और कहा कि भारत इस मुश्किल वक़्त में अफ़ग़ानिस्तान के साथ खड़ा है।
आपदा की तस्वीर
रविवार रात 11:47 बजे ज़मीन हिली और पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में तबाही का मंजर फैल गया। मज़ार दारा गाँव पूरा तबाह हो गया। कई ज़िले – चौके, वातपुर, मनोगी और चापा दारा – मलबे में तब्दील हो गए। ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि सरकार ने विशेष समिति बनाकर राहत कार्य शुरू कर दिए हैं। मगर पहाड़ी रास्ते, मिट्टी-पत्थर के घर और टूटी सड़कें बचाव कार्य को धीमा कर रही हैं।
इस भूकंप ने एक बार फिर दिखाया कि अफ़ग़ानिस्तान प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज़ से कितना नाज़ुक है। अक्टूबर 2024 का हेरात भूकंप अभी भूला भी नहीं था कि फिर से मौत और मलबे की ख़बर आई।
भारत का त्वरित मानवीय कदम
भारत की विदेश नीति भले ही कूटनीति और सुरक्षा से जुड़ी हो, लेकिन आपदा की घड़ी में उसने हमेशा इंसानियत को तरजीह दी है। काबुल को भेजे गए 1000 तंबू और 15 टन खाद्य सामग्री न केवल राहत का सामान हैं बल्कि यह संदेश भी है कि भारत सीमाओं और राजनीति से परे मानवीय संवेदनाओं में यक़ीन रखता है।
डॉ. जयशंकर ने सोशल मीडिया पर साफ़ कहा – “इस कठिन समय में भारत अफ़ग़ानिस्तान के साथ है।”
राहत से रिश्तों की मजबूती
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार को लेकर वैश्विक संदेह भले ही बना हो, लेकिन मानवीय मदद का रिश्ता राजनीति से ऊपर होता है। भारत की यह पहल अफ़ग़ान जनता के दिलों में भरोसा जगाती है कि पड़ोसी होने के नाते वह मुसीबत में साथ है।
मानवीय सहायता का यह कदम भारत-अफ़ग़ान रिश्तों में ‘पुल’ का काम करता है। यह सही है कि तालिबान राज के साथ औपचारिक संबंध अभी जटिल हैं, मगर ऐसी आपदा भारत को यह अवसर देती है कि वह सीधे जनता तक मदद पहुंचाकर goodwill बनाए।
प्रतिवाद और चुनौतियाँ
फिर भी कुछ सवाल उठते हैं –
क्या यह मदद लंबे समय तक असर डाल पाएगी या यह सिर्फ़ एक प्रतीकात्मक कदम है?
तालिबान सरकार पर भरोसा कितना सुरक्षित है कि मदद सही हाथों तक पहुँचेगी?
अफ़ग़ानिस्तान में लगातार आती प्राकृतिक आपदाएँ क्या राहत से ज़्यादा सतत विकास की ज़रूरत नहीं दर्शातीं?
विशेषज्ञ मानते हैं कि केवल तत्काल राहत नहीं, बल्कि पुनर्वास और मज़बूत इन्फ्रास्ट्रक्चर ही भविष्य की तबाही रोक सकते हैं। भारत चाहे तो तकनीकी और स्वास्थ्य सहयोग देकर भी अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण में योगदान दे सकता है।
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संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र की टीमें पहले ही प्रभावित इलाकों में पहुँच चुकी हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा – “हमारी टीमें आपातकालीन जीवन रक्षक सहायता पहुँचा रही हैं।” मगर चुनौती यह है कि दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों तक पहुँचना बेहद कठिन है।
अंतरराष्ट्रीय एजेंसियाँ तभी सफल होंगी जब स्थानीय प्रशासन, पड़ोसी मुल्क और NGO साथ मिलकर काम करेंगे।
नतीजा
अफ़ग़ानिस्तान का दर्द सिर्फ़ उसकी जनता का नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत का है। भूकंप ने दिखा दिया कि सरहदें ज़मीन को बाँट सकती हैं, मगर इंसानियत को नहीं। भारत की ओर से भेजी गई मदद यह संदेश देती है कि मुश्किल वक़्त में पड़ोसी सिर्फ़ राजनीति नहीं, बल्कि दिल से भी जुड़ते हैं।
लंबे समय में ज़रूरी है कि अफ़ग़ानिस्तान मज़बूत ढाँचागत विकास, भूकंप-रोधी मकान और आपदा प्रबंधन पर काम करे। भारत और वैश्विक समुदाय को केवल राहत नहीं, बल्कि स्थायी समाधान की ओर ध्यान देना होगा। तभी इस तरह की आपदाओं में इंसानी जानें बच सकेंगी और मुल्क बार-बार मलबे से उठने पर मजबूर नहीं होगा।