
Asaduddin Owaisi addressing supporters with a backdrop of a crowded Seemanchal street, reflecting Bihar’s changing political atmosphere.
सीमांचल का फैसला AIMIM की ओर झुका तो RJD ,कांग्रेस की पकड़ क्यों ढीली पड़ गई
📍पटना 🗓️ 5 नवंबर 2025✍️Asif Khan
बिहार चुनाव में AIMIM ने सीमांचल में अपना प्रभाव दोहराया। मुस्लिम वोटर ने RJD और कांग्रेस को किनारे रखकर ओवैसी की पार्टी को मजबूत प्रतिनिधित्व दिया। यह बदलाव बिहार की सियासत में एक नई दिशा दिखाता है जहां पहचान, विकास और स्थानीय आवाज की मांग पहले से कहीं ज़्यादा साफ़ हुई है।
बिहार की राजनीति में सीमांचल हमेशा से थोड़ा अलग रहा है। यहां की आबोहवा, यहां का समाज, यहां की तहरीकें और यहां की तक़सीम सब कुछ बिहार के मुख्यधारा इलाकों से अलग मिज़ाज रखती हैं। इसीलिए जब 2025 के नतीजे सामने आए तो सबसे पहले नजर सीमांचल पर ही गई। लोग सोच रहे थे कि क्या 2020 का AIMIM वाला उभार सिर्फ एक इत्तेफाक था या उसका असर वक़्त के साथ कम हो जाएगा। लेकिन नतीजों ने साफ दिखा दिया कि यह कोई अल्पकालिक चमक नहीं थी बल्कि एक चलती हुई सियासी लहर थी जो अब स्थिर हो चुकी है।
मतलब यह कि सीमांचल सिर्फ किसी रैली का शोर नहीं सुन रहा बल्कि अपने राजनीतिक भविष्य को नए ढंग से परिभाषित कर रहा है। जहां पहले मुस्लिम वोटर बीते कई दशकों तक RJD और कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़े थे, वहीं अब उनकी प्राथमिकताएं बदल रही हैं। यही वह बदलाव है जिसे 2025 की राजनीति सबसे गहराई से दर्ज करती है।
मुसलमानों की नज़र में AIMIM एक अलग पहचान
यहां से तस्वीर कुछ यूं बनती है कि सीमांचल के मुसलमान अब representation को symbolic नहीं बल्कि practical रूप में देखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी आवाज़ को पटना और दिल्ली तक पहुंचने के लिए एक ऐसा सियासी प्लेटफॉर्म चाहिए जो सीधे उन्हीं की बात करे, उनके मसलों को बहस का हिस्सा बनाए और उन्हें यह यकीन दिलाए कि वे सिर्फ वोट बैंक नहीं हैं बल्कि राजनीतिक ताकत भी हैं।
मुस्लिम इलाकों में अक्सर यह जुमला सुनाई देता है कि अपना नुमाइंदा वही है जो हमारी जुबान, हमारा दर्द और हमारा मसला खुद समझ कर उठाए। AIMIM ने यही जगह खाली देखी और उसे भर दिया। यही वजह है कि ऊंचे भाषणों या सेकुलर दावों से आगे बढ़कर मतदाता ने इस चुनाव में अपना झुकाव साफ कर दिया।
अंग्रेज़ी में कहें तो They wanted direct representation and not a borrowed voice.
AIMIM की पांच सीटें और फिर वही भरोसा
जोकिहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन, आमौर और बायसी ये पांच नाम अब किसी भी राजनीतिक विश्लेषण में बार बार लिए जाएंगे। AIMIM ने दोबारा वही पांच सीटें जीतकर यह संदेश स्पष्ट कर दिया कि सीमांचल में उसका असर स्थायी है। लोग इसे साफ़ तौर पर एक सियासी endorsement की तरह देख रहे हैं।
लोगों से बात करने पर यह समझ आता है कि उनकी प्राथमिकताएं काफी व्यावहारिक हैं। सड़क, स्कूल, दवा, बाढ़ राहत, प्रशासनिक पहुंच, और सबसे ज़्यादा सामाजिक सुरक्षा। इन मसलों को AIMIM ने चुनाव से पहले लगातार उठाया। उर्दू भाषणों में जज़्बा था, हिंदी addressing में सादगी थी और English प्रेस कॉन्फ़्रेंस में clarity थी। इस मिश्रण ने उस वर्ग को प्रभावित किया जो लंबे वक्त से किसी ऐसी आवाज़ का इंतज़ार कर रहा था जो सारे प्लेटफॉर्म पर समान ताक़त से खड़ी हो।
RJD और कांग्रेस की मुश्किल
यहां एक अहम बात सामने आती है। अगर AIMIM सिर्फ वोट काटती, तो उसका वोट सीमांचल में इतना स्थिर और केंद्रित नहीं होता। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि वोट काटने की कहानी हमेशा तब कही जाती है जब कोई नई शक्ति पुरानी पकड़ को कमज़ोर करती है। सीमांचल इसमें textbook example बन गया है।
जिन सीटों पर AIMIM जीती, वहां RJD और कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार हार गए। यह बात जितनी राजनीतिक है उतनी ही सामाजिक भी। मुसलमानों ने साफ तौर पर एक संदेश दिया कि अब वे अपनी आवाज़ सीधे चुनना चाहते हैं, न कि किसी गठबंधन की झोली में रखा हुआ symbolic प्रतिनिधि।
जब कोई समुदाय किसी पार्टी को repeated trust देता है तो वह trust सरल भावनात्मक फैसले से नहीं आता, वह ऐतिहासिक अनुभव से आता है। चुनौतियां, शिकायतें और उम्मीदें मिलकर जो समझ बनाती हैं, वही आखिरकार वोट बनती है।
सीमांचल का दर्द AIMIM की राजनीति में कैसे आया
यह इलाका सालों से बाढ़, पलायन, गरीबी और अनदेखी से जूझता रहा है। सरकारें बदलती रहीं, मंत्री बदलते रहे, लेकिन इस क्षेत्र की मुश्किलें अक्सर चुनावी भाषणों में ही घुलकर रह गईं। मुसलमानों में यह एहसास गहरा था कि उनके नाम पर वादे बहुत हुए, लेकिन उनकी ज़िंदगी में बदलाव कम आए।
यही जगह AIMIM ने पकड़ ली।
उन्होंने कहा कि representation सिर्फ legislature में चेहरा होने से नहीं मिलता, बल्कि उस आवाज़ के ज़रिये मिलता है जो कठोर सवाल पूछ सके और अपने समुदाय के मसलों पर खुलकर बात कर सके।
यह वह representation है जो दिल की बात को सियासत की मेज़ तक ले जाता है।
हिंदी में कुछ लोग इसे अपनी सत्ता कहते हैं।
और English में इसे politically assertive identity कहा जाता है।
तीनों ही अहसास एक ही दिशा दिखाते हैं कि सीमांचल AIMIM को सिर्फ पार्टी नहीं, एक possibility की तरह देख रहा है।
ओवैसी की शैली क्यों असरदार रही
ओवैसी की भाषा का मिज़ाज अलग है। कभी जोश, कभी सवाल, कभी तर्क, कभी तंज़। और यह स्टाइल सीमांचल की जमीन से मेल खाता है जहां लोग साफ बात पसंद करते हैं।
उदाहरण के लिए, जब उन्होंने अखिलेश यादव पर तंज़ करते हुए पूछा कि आखिर आप बीजेपी को रोक क्यों नहीं पा रहे, तो यह सिर्फ राजनीतिक हमला नहीं था बल्कि उस frustration की आवाज़ थी जो मुसलमानों में धीरे धीरे बढ़ती गई थी।
मतलब यह कि AIMIM का उभार हवा में पैदा नहीं हुआ, बल्कि सामाजिक ज़रूरतों और राजनीतिक बेचारगी के बाद बना हुआ विकल्प था। ओवैसी ने उसे shape दिया और मतदाता ने उसे स्वीकार कर लिया।
कांग्रेस और RJD की रणनीति क्यों कमजोर पड़ी
इन दोनों दलों ने लंबे वक्त तक मुस्लिम वोट को अपनी स्थाई पूंजी मान लिया था। यह assumption 2025 की राजनीति में दरक चुका है।
मतदाता अब सिर्फ सभाओं में दिखाई गई तसवीरों या घोषणापत्र की लाइनों से प्रभावित नहीं होता।
English में कहें तो the voter is reading the ground, not the slogans.
उर्दू में इसे कहते हैं कि अब अवाम की नज़र तजुर्बों पर है, दावों पर नहीं।
हिंदी में समझ लें कि बयानबाज़ी अपना असर खो चुकी है।
दलित मुसलमान समीकरण भी बदला
इस बार सीमांचल के कई इलाकों में दलित मुसलमान वोट का नया संयोग देखने को मिला। यह वह वर्ग है जो खुद को दोहरी हाशियाकशी में पाता है। AIMIM ने इनके मुद्दों को भी उठाया और local level पर उनकी बात सुनने के लिए platforms बनाए। इससे एक भरोसा पैदा हुआ कि यह पार्टी सिर्फ एक समुदाय की नहीं बल्कि उन तमाम आवाज़ों की डगर खोल रही है जिन्हें बड़े दलों ने लंबे समय से साइडलाइन कर रखा था।
बिहार विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व घटा लेकिन AIMIM बढ़ी
2020 में 19 मुस्लिम विधायक थे।
2025 में यह गिरकर 11 रह गए।
इन 11 में पांच AIMIM के हैं।
मतलब यह कि जब बाकी दलों में मुस्लिम चेहरों की संख्या कम हुई, AIMIM सबसे बड़ी मुस्लिम प्रतिनिधि पार्टी बनकर उभरी।
यह बदलाव सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं बल्कि सियासी मानसिकता का संकेत है।
सीमांचल के मुसलमानों ने AIMIM को क्यों चुना
चार कारण सबसे प्रमुख दिखाई देते हैं।
पहला
Representation in real terms.
यानी सिर्फ टिकट नहीं बल्कि असरदार आवाज़।
दूसरा
Issues in clear words.
जैसे वक्फ मसले, नागरिकता कानून, हिंसा, प्रशासनिक पक्षपात।
तीसरा
Local connect.
AIMIM के उम्मीदवार कई सालों से ground पर काम कर रहे थे।
चौथा
Congress और RJD पर भरोसा टूटना।
चुनाव दर चुनाव वादे, और परिणाम बहुत कम।
इन सबने मिलकर एक narrative बनाया कि AIMIM एक बेहतर विकल्प है।
चुनाव बाद की बयानबाज़ी और AIMIM की प्रतिक्रिया
नतीजों के बाद जब कुछ नेताओं ने हार का ठीकरा ईवीएम या एसआईआर पर फोड़ा, AIMIM ने इसे चुनावी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश बताया।
ओवैसी का यह कहना कि खुद की कमज़ोरियों को पहचानो, मतदाताओं को ये बात इसलिए पसंद आई क्योंकि वे नेताओं की जवाबदेही चाहते हैं, बहाने नहीं।
सीमांचल की राजनीति अब किस ओर जाएगी
बड़ी तस्वीर में देखें तो AIMIM सीमांचल में एक स्थाई शक्ति बन चुकी है।
आने वाले चुनावों में उसकी भूमिका सिर्फ marginal नहीं बल्कि decisive होगी।
मुसलमानों का प्रतिनिधित्व अब symbolic politics पर नहीं टिकेगा।
वे ऐसे कैंडिडेट चाहते हैं जो उनकी बात को बिना झिझक उठाए।
यह उन दलों के लिए चुनौती है जो मुस्लिम वोट को inherited समझते थे।
Bottom line
बिहार चुनाव 2025 यह साबित करते हैं कि सीमांचल की राजनीति नई दिशा में जा रही है। AIMIM इस दिशा में एक मजबूत धारा बन चुकी है और यह प्रवाह आने वाले वर्षों में बिहार की सत्ता के समीकरणों को गहराई से प्रभावित करेगा।
मतलब यह कि मुस्लिम वोट अब किसी परंपरागत गठबंधन का हिस्सा नहीं, बल्कि अपने प्रतिनिधित्व के लिए जागरूक और assertive हो चुका है।
AIMIM इस बदलाव की सबसे मजबूत राजनीतिक अभिव्यक्ति बन गई है।




