
Top leaders of US and China holding bilateral talks in Busan South Korea
Busan Summit :साझेदारी की नयी शुरुआत या रणनीतिक सौदेबाज़ी का मंच
छह साल बाद अमेरिका और चीन के राष्ट्रपति आमने-सामने मिले। दक्षिण कोरिया के बुसान शहर में हुई यह मुलाकात सिर्फ एक औपचारिक वार्ता नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का इशारा थी। दोनों नेताओं ने व्यापारिक मतभेदों, तकनीकी प्रतिबंधों, और रणनीतिक साझेदारी पर गहन चर्चा की। ट्रंप ने “सफल डील” की उम्मीद जताई, वहीं शी जिनपिंग ने “दोस्ताना सहयोग” की बात कही। सवाल यही है — क्या यह मुलाकात नई शुरुआत का संकेत है या सिर्फ राजनीतिक प्रतीकवाद?
📍South Korea 🗓️ 30 अक्टूबर 2025 ✍️ Asif Khan
शक्ति-संतुलन के खेल में उम्मीद और अविश्वास का संगम
बुसान की हवा में ठंडक थी, लेकिन दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच जो गर्माहट दिखी, उसने हर विश्लेषक को चौकन्ना कर दिया।
डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग की यह बैठक, साल 2019 के बाद पहली आमने-सामने बातचीत थी — और ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की सबसे बड़ी डिप्लोमैटिक घटना मानी जा रही है।
दोनों नेताओं ने दक्षिण कोरिया के गिम्हे एयर बेस पर हाथ मिलाया। यह वही पल था जिसने वैश्विक मीडिया के कैमरों को रोक दिया — क्योंकि इसके मायने सिर्फ तस्वीर से कहीं गहरे थे।
बेसिक कंसेंसस — पर कितना ठोस?
ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि “हमने कुछ बेसिक एग्रीमेंट्स पर सहमति बनाई है, और उम्मीद है कि आज ही ट्रेड डील पर हस्ताक्षर होंगे।”
शी जिनपिंग ने इसका जवाब दिया, “हम हर बात पर सहमत नहीं होते, और यह सामान्य है। बड़ी आर्थिक ताक़तों में टकराव स्वाभाविक है, लेकिन हमें पार्टनर और दोस्त रहना चाहिए।”
यह बयान सुनने में भले ही नरम लगे, लेकिन इसकी तह में वही पुराना “सावधानीभरा विश्वास” झलकता है — यानी दोनों देश यह समझ चुके हैं कि पूरी दूरी भी संभव नहीं और पूरी नज़दीकी भी नहीं।
ट्रेड डील के पीछे की कहानी
अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध ने 2020 से अब तक वैश्विक बाजार को बार-बार हिलाया है।
अमेरिका ने जहां चीनी तकनीकी कंपनियों पर निर्यात प्रतिबंध लगाए, वहीं चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स और चिप-ग्रेड धातुओं के निर्यात पर नियंत्रण लगाया।
इन दोनों कदमों ने टेक सेक्टर को जकड़कर रख दिया।
इस मीटिंग में “रेयर अर्थ” पर विशेष चर्चा हुई और चीन ने संकेत दिया कि वह निर्यात पर लगे नियंत्रण को चरणबद्ध तरीके से कम कर सकता है — अगर अमेरिका तकनीकी ट्रांसफर से जुड़े प्रतिबंधों में नरमी दिखाए।
दूसरे शब्दों में, यह डील सिर्फ “ट्रेड” की नहीं, बल्कि “टेक्नोलॉजिकल पॉवर” के एक्सचेंज की भी है।
कूटनीति का असली मोर्चा — भरोसे का संकट
दोनों देशों के बीच रिश्ते उस जोड़े की तरह हैं जो तकरार के बावजूद साथ रहना चाहता है, क्योंकि अलग होने की कीमत बहुत भारी है।
ट्रंप ने कहा, “शी एक कठिन वार्ताकार हैं, लेकिन हमारे बीच रिश्ता अच्छा है।”
शी ने जवाब में कहा, “हमारे बीच मतभेद हैं, मगर यही रिश्तों को मज़बूत बनाता है।”
कूटनीति में इसे “Constructive Rivalry” कहा जाता है — यानी प्रतिस्पर्धा भी जारी रहे, और सहयोग भी बना रहे।
दरअसल यही “21वीं सदी की नई ठंडी जंग” की परिभाषा बन चुकी है — बिना गोलियों के, सिर्फ चिप्स और टैरिफ़ से लड़ी जाने वाली जंग।
दुनिया की नज़र क्यों इस मीटिंग पर थी?
क्योंकि जब अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ता है, तो दुनिया की पूरी आर्थिक धारा बदल जाती है।
2023-24 के दौरान दोनों देशों की व्यापारिक नीतियों ने वैश्विक महंगाई बढ़ाई। Rare Earth पर नियंत्रण से इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स की लागत बढ़ी, और अमेरिकी प्रतिबंधों से सेमीकंडक्टर कंपनियाँ जूझती रहीं।
ऐसे में अगर बुसान समिट किसी सकारात्मक नतीजे पर पहुँचती है, तो इसका असर भारत से लेकर यूरोप तक महसूस होगा।
भारत जैसे देश, जो वैश्विक सप्लाई चेन के बीच से रास्ता बनाना चाहते हैं, इस समझौते से सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे।
राजनीतिक प्रतीक या असली साझेदारी?
ट्रंप की शैली हमेशा से “Negotiation-Through-Drama” रही है। यानी बड़े बयान, और फिर सौदे की पेशकश।
उनका यह कहना कि “ट्रेड डील आज ही साइन हो सकती है” — एक संदेश भी है और दबाव भी।
वहीं शी जिनपिंग ने इसे धैर्य से संतुलित किया। उन्होंने कहा कि “सहमति बन चुकी है, पर सहयोग निरंतर प्रक्रिया है।”
यह बयान चीन की परंपरागत रणनीति से मेल खाता है — धीरे चलो, मगर दिशा तय रखो।
इसलिए, यह मीटिंग ज़्यादा “रियलिटी चेक” थी न कि “मैजिक सॉल्यूशन।”
अर्थव्यवस्था के स्तर पर क्या असर पड़ेगा?
अगर यह डील आगे बढ़ती है तो —
ग्लोबल मार्केट्स को राहत मिलेगी। बुसान की मीटिंग के बाद ही एशियाई शेयर बाज़ारों में हल्की तेजी देखी गई।
Rare Earth सप्लाई स्थिर हो सकती है। इससे EV, मोबाइल, और रक्षा उपकरण उद्योग को राहत मिलेगी।
डॉलर-युआन संतुलन सुधर सकता है। इससे वैश्विक व्यापार घाटे पर भी असर पड़ेगा।
पर अगर डील विफल हुई, तो फिर वही पुराना सिलसिला शुरू होगा — टैरिफ वॉर, सॉफ्टवेयर ब्लॉकेज, और डिप्लोमैटिक तनाव।
इंडो-पैसिफिक और भारत की स्थिति
यह मुलाकात सिर्फ अमेरिका और चीन की नहीं, बल्कि पूरे इंडो-पैसिफिक रणनीतिक ढांचे का हिस्सा है।
भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका का क्वाड (QUAD) गठबंधन पहले ही चीन की नीतियों को काउंटर करने की कोशिश में है।
अगर वॉशिंगटन और बीजिंग के बीच तालमेल बनता है, तो क्वाड के संतुलन पर असर पड़ेगा।
भारत के लिए यह अवसर भी है और चुनौती भी — क्योंकि अमेरिका-चीन सहयोग से क्षेत्रीय फोकस बदल सकता है।
सॉफ्ट-पावर और राजनीतिक लाभ
ट्रंप के लिए यह मीटिंग घरेलू राजनीति में भी फायदेमंद है। उनका यह दिखाना कि वे “ग्लोबल डील-मेकर” हैं, अमेरिकी मतदाताओं को संदेश देता है कि वे अब भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रभावी हैं।
वहीं शी जिनपिंग के लिए यह एक “संतुलित पुनरागमन” है — महामारी और आर्थिक मंदी के बाद चीन को सहयोगी छवि की जरूरत थी।
दोनों नेताओं ने अपने-अपने दर्शकों को यह दिखाया कि वे संवाद के लिए खुले हैं, पर अपने हितों से पीछे नहीं हटेंगे।
शाह टाइम्स के दृष्टिकोण से निष्कर्ष
अगर मैं इस मुलाकात को एक पंक्ति में बयान करूँ तो कहूँगा —
“यह वार्ता उम्मीद की खिड़की खोलती है, लेकिन अंदर अभी भी धुंध है।”
अमेरिका और चीन के रिश्ते हमेशा “Love-Hate Equation” रहे हैं — प्रतिस्पर्धा में सहयोग, और सहयोग में संशय।
बुसान समिट इस रिश्ते की नई परत है, जहाँ दोनों देशों ने यह मान लिया है कि लड़ाई की बजाय समझौता ज़्यादा फ़ायदेमंद है — कम से कम अभी के लिए।




