
US imposes 50% tariff on India, tensions escalate over oil trade with Russia
America vs India: 50% Tariff से Global Politics में नया मोड़
अमेरिकी 50% टैरिफ: भारत-रूस तेल व्यापार पर नया भू-राजनीतिक दबाव
अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लागू किया। रूस से तेल खरीद पर दबाव बढ़ा। मोदी सरकार ने रणनीतिक स्वायत्तता का ऐलान किया।
New Delhi, (Shah Times) । संयुक्त राज्य अमेरिका ने हाल ही में भारत से आयातित वस्तुओं पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाकर कुल सीमा शुल्क 50% तक पहुँचा दिया है। ये फ़ैसला महज़ एक व्यापारिक नीति नहीं बल्कि गहरे भू-राजनीतिक संदेश का हिस्सा है। वाशिंगटन का दावा है कि भारत द्वारा रूस से तेल खरीदना यूक्रेन युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से फंड करता है। दूसरी ओर, नई दिल्ली का कहना है कि यह कदम “अन्यायपूर्ण” है और भारत अपने रणनीतिक हितों से कोई समझौता नहीं करेगा।
अमेरिका की रणनीति: दबाव और पॉलिटिकल मैसेजिंग
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का यह फ़ैसला केवल भारत के खिलाफ दंडात्मक नीति नहीं, बल्कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर दबाव बनाने का एक ज़रिया है।
वॉशिंगटन की सोच है कि यदि भारत जैसे बड़े खरीदार पर दबाव डाला जाए, तो रूस की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा।
अमेरिका ने चीन और यूरोपीय संघ को अपेक्षाकृत बख्शा है, जबकि भारत को टार्गेट किया गया।
ये डबल स्टैंडर्ड्स भारत को खटक रहे हैं और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसे साफ शब्दों में “सेलेक्टिव क्रिटिसिज़्म” बताया।

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भारत का जवाब: रणनीतिक स्वायत्तता का ऐलान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर दोनों ने अमेरिका के इस फ़ैसले को स्पष्ट शब्दों में चुनौती दी।
मोदी ने अहमदाबाद में कहा कि “किसानों और छोटे कारोबारियों के हित सर्वोपरि हैं। भारत किसी दबाव के सामने नहीं झुकेगा।”
जयशंकर ने रूस से ऊर्जा आयात को भारत की “राष्ट्रीय आवश्यकता” बताया और कहा कि “भारत का एनर्जी सिक्योरिटी मॉडल किसी और देश की पॉलिटिक्स से निर्धारित नहीं होगा।”
भारत का यह रुख बताता है कि नई दिल्ली वॉशिंगटन के साथ रिश्ते बिगाड़े बिना भी अपनी स्वायत्त नीति पर अडिग रहना चाहती है।
रूस-भारत-चीन त्रिकोण की संभावना
अमेरिका के इस टैरिफ वॉर ने एक पुरानी बहस को फिर से जिंदा कर दिया है — रूस-भारत-चीन (RIC) गठबंधन।
1990 के दशक में प्रिमाकोव डॉक्ट्रिन के तहत RIC का विचार रखा गया था।
आज की परिस्थितियों में अमेरिका के खिलाफ “स्ट्रेटेजिक कन्वर्जेंस” की चर्चा फिर से तेज़ हो गई है।
हालाँकि हकीकत यह है कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और अविश्वास इस गठबंधन को मज़बूत नहीं होने देंगे।
चीन-भारत विरोधाभास
2020 में गलवान घाटी की झड़प ने रिश्तों में गहरी खाई पैदा कर दी।
टेक्नोलॉजी, व्यापार और सुरक्षा के मामलों में नई दिल्ली बीजिंग पर भरोसा नहीं कर सकती।
पाकिस्तान-चीन की नज़दीकी भारत के लिए एक बड़ा स्ट्रेटेजिक रिस्क है।
इसलिए भारत को अमेरिका से दूरी बनाना आसान नहीं है।
अमेरिका-भारत आर्थिक वास्तविकता
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट है।
2024 में भारतीय सामान की अमेरिकी खरीद 77.5 बिलियन डॉलर रही।
रूस और चीन के बाज़ार इतने बड़े नहीं कि भारत की इस निर्भरता की भरपाई कर सकें।
अमेरिकी टेक्नोलॉजी और इन्वेस्टमेंट भारत के विकास के लिए अहम हैं।
यही कारण है कि भारत को एक संतुलित रणनीति बनानी होगी जिसमें वॉशिंगटन के साथ रिश्ते भी बने रहें और मॉस्को से ऊर्जा सप्लाई भी जारी रहे।
अमेरिकी दोहरे मानक
ट्रंप प्रशासन ने भारत पर रूस से तेल खरीदने का इल्ज़ाम लगाया, लेकिन चीन और यूरोप को छोड़ दिया।
क्या यह “सेलेक्टिव जस्टिस” नहीं है?
क्या भारत को इसलिए टार्गेट किया जा रहा है क्योंकि वह उभरती शक्ति है और अमेरिका उसकी स्ट्रेटेजिक स्वायत्तता से असहज है?
विश्लेषकों का मानना है कि यह टैरिफ अमेरिका-भारत रिश्तों को टेस्ट करेगा।
संभावित वैश्विक असर
भारत पर 50% टैरिफ का सीधा असर छोटे कारोबारियों और किसानों पर पड़ेगा।
रूस की एनर्जी स्ट्रेटेजी पर भारत का साथ देना, यूक्रेन शांति वार्ता को और जटिल कर सकता है।
SCO और BRICS जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर भारत की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाएगी।
निष्कर्ष
अमेरिका और भारत के बीच यह नया टैरिफ वॉर केवल व्यापारिक विवाद नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक स्ट्रेटेजी का हिस्सा है। वॉशिंगटन चाहता है कि भारत रूस पर दबाव डाले, जबकि नई दिल्ली अपनी स्वतंत्र नीति पर अडिग है। आने वाले समय में यह तनाव भारत की विदेश नीति की परीक्षा लेगा — क्या वह अमेरिका और रूस-चीन के बीच संतुलन साध पाएगा?
भारत के लिए रास्ता कठिन है, लेकिन मोदी सरकार का संदेश साफ़ है:
“भारत की रणनीति न तो वॉशिंगटन तय करेगा और न ही मॉस्को, बल्कि दिल्ली तय करेगी।”