
Flags of the United States, India, and Pakistan reflecting global geopolitical tensions.
अमेरिका की Global Diplomacy और भारत–पाक रिश्तों पर नया इशारा
अमेरिका,भारत–पाक तनाव और नई जियोपॉलिटिक्स की तस्वीर
मार्को रूबियो के बयान से साफ है कि अमेरिका भारत–पाक रिश्तों और वैश्विक संकटों पर बारीकी से नज़र रख रहा है, जबकि भारत बाहरी दख़ल को खारिज करता है।
दुनिया की जियोपॉलिटिक्स इस वक़्त कई मोर्चों पर उलझी हुई है। एक तरफ़ रूस–यूक्रेन जंग तीसरे साल में दाख़िल हो चुकी है, वहीं एशिया में भारत–पाकिस्तान का रिश्ता हमेशा से ही एक नाज़ुक बिंदु रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने एनबीसी न्यूज़ के शो में जो बातें कहीं, उसने वाशिंगटन की नीतियों और उसकी प्राथमिकताओं पर नई रोशनी डाली है।
भारत–पाकिस्तान पर अमेरिकी निगरानी
रूबियो का कहना था कि अमेरिका हर रोज़ देखता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच क्या हो रहा है। इस बयान से दो बातें साफ़ होती हैं।
South Asia की स्ट्रैटेजिक अहमियत: अमेरिका जानता है कि भारत और पाकिस्तान सिर्फ़ पड़ोसी नहीं, बल्कि न्यूक्लियर पॉवर्स हैं। दोनों के बीच कोई भी टकराव पूरी दुनिया को असर डाल सकता है।
US balancing act: वाशिंगटन कोशिश करता है कि दोनों मुल्कों के बीच किसी बड़े टकराव को रोक सके, लेकिन उसके पास सीधे हस्तक्षेप की सीमाएँ हैं।
यह रवैया एक तरह का “निगरानी वाला तवाज़ुन” है। यानी वो हालात पर नज़र रखता है, बयान देता है, मगर किसी एक पक्ष का खुलकर साथ नहीं लेता।
ट्रंप के दावे और भारत की सख़्त प्रतिक्रिया
डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार कहा कि भारत–पाकिस्तान के बीच सीज़फायर उन्हीं की कोशिशों से हुआ। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले के बाद यह श्रेय खुद को देने की कोशिश की। मगर दिल्ली ने इन दावों को बार–बार नकार दिया।
भारत की पॉलिसी क्लियर है: No third party mediation। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, किसी भी बाहरी दबाव ने भारत के फैसलों को प्रभावित नहीं किया।
दिल्ली का यह स्टैंड दरअसल “ख़ुदमुख़्ताराना पालिसी” की बुनियाद है। भारत हमेशा से यह जताता रहा है कि पाकिस्तान के साथ उसके मसाइल सिर्फ़ bilateral level पर हल होंगे।
यूक्रेन जंग और अमेरिका–रूस डायलॉग
रूबियो का बयान सिर्फ़ साउथ एशिया तक सीमित नहीं था। उन्होंने यूक्रेन जंग के बारे में भी कहा कि सीज़फायर तभी मुमकिन है जब दोनों तरफ़ से गोलियां रुकें। लेकिन रूस ने अब तक ऐसी किसी बात को मंज़ूरी नहीं दी।
अलास्का में डोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन की मुलाक़ात इसी backdrop में हुई। तीन घंटे चली इस मीटिंग का फ़ोकस रूस–यूक्रेन जंग था।
यहां पर interesting point यह है कि अमेरिका एक तरफ़ रूस के साथ सीधी वार्ता करता है, वहीं दूसरी तरफ़ South Asia को सिर्फ़ monitoring तक सीमित रखता है। यह dual approach अमेरिका की foreign policy को define करता है।
भारत–अमेरिका रिश्ते और वैश्विक सिग्नल
भारत की foreign policy पिछले एक दशक में और मज़बूत हुई है। दिल्ली वाशिंगटन से strategic partnership रखता है, मगर पाकिस्तान वाले equation में किसी दख़ल को स्वीकार नहीं करता।
,India wants partnership, not patronage। यही वजह है कि अमेरिका के ministers चाहे monitoring की बात करें, दिल्ली उसका political weight कम कर देती है।
इस पूरे मसले को समझने के लिए यह कहना ज़रूरी है कि अमरीका की कोशिश एक “तवाज़ुन” बनाए रखने की है। वो नहीं चाहता कि साउथ एशिया में tension बढ़े, क्यूंकि इसका असर अफ़ग़ानिस्तान से लेकर ईरान और चीन तक पड़ेगा। लेकिन असल challenge यह है कि भारत किसी भी बाहरी mediation को “ग़ैर-ज़रूरी” और “ग़ैर-क़ाबिले-क़बूल” समझता है।
दूसरी जानिब पाकिस्तान की strategy हमेशा से यही रही है कि किसी न किसी global power को mediator बनाया जाए। यही वजह है कि इस मसले पर इंडिया और पाकिस्तान की narrative बिलकुल उल्टी है।
जियोपॉलिटिकल इम्पैक्ट
South Asia Stability: इंडिया–पाक tensions अगर escalate होते हैं तो इसका असर global markets और regional security पर पड़ेगा।
US Global Image: वाशिंगटन को यह दिखाना है कि वो हर hot spot पर नज़र रख रहा है, लेकिन ground reality में उसकी leverage सीमित है।
Multipolar World Order: रूस–यूक्रेन, चाइना–ताइवान और इंडिया–पाक जैसे मामलों में अमेरिका का influence पहले जितना strong नहीं रहा। दुनिया multi-polar हो रही है और इंडिया इसमें एक अहम प्लेयर के तौर पर उभर रहा है।
भविष्य की दिशा
अमेरिका की कोशिश होगी कि इंडिया–पाक tensions को control में दिखाए, ताकि उसकी diplomacy credible लगे।
पाकिस्तान आगे भी बाहरी mediation की मांग करता रहेगा, मगर इंडिया का स्टैंड नहीं बदलेगा।
यूक्रेन जंग की तरह, South Asia में भी अमेरिका सिर्फ़ appeals और statements तक सीमित रह सकता है।
नतीजा
मार्को रूबियो का बयान इस बात की याद दिलाता है कि अमेरिका हर रोज़ इंडिया–पाक हालात पर नज़र रखता है, लेकिन यह निगरानी political optics से ज्यादा कुछ नहीं। इंडिया अपने फैसले खुद लेता है और पाकिस्तान के साथ उसका मसला strictly bilateral है।
यह निगरानी एक “सियासी बयान” तो हो सकती है, मगर इसका असल असर जमीनी सियासत पर बहुत कम है।