
ट्रेड वॉर की आहट: अमेरिकी दबाव के बीच भारत की रणनीति
50% अमेरिकी टैरिफ से भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर और विकल्प
पूर्व RBI गवर्नर डॉ. रघुराम राजन ने अमेरिका के 50% टैरिफ को चेतावनी बताते हुए भारत को व्यापार व ऊर्जा साझेदारी में विविधता लाने की सलाह दी।
अमेरिकी टैरिफ पर रघुराम राजन की चेतावनी: भारत को साझेदारी में संतुलन ज़रूरी
भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर और मशहूर अर्थशास्त्री डॉ. रघुराम राजन ने अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50 फ़ीसदी टैरिफ को एक गहरी चेतावनी करार दिया। उनका कहना है कि मौजूदा दौर में व्यापार, निवेश और वित्त को हथियार बनाया जा रहा है और भारत को अपनी नीतियों में संतुलन के साथ विविधता लानी होगी।
राजन ने साफ़ कहा कि भारत को किसी एक साझेदार—चाहे वह अमेरिका हो, रूस हो या चीन—पर अत्यधिक निर्भरता से बचना चाहिए। यह केवल आर्थिक नहीं बल्कि भू-राजनीतिक चुनौती भी है।
अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव और वैश्विक पृष्ठभूमि
अमेरिका ने हाल ही में भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया, जिससे कुल आयात शुल्क 50% तक पहुँच गया। यह टैरिफ मुख्यतः भारत के रूसी तेल आयात से जुड़ा है। अमेरिका का आरोप है कि भारत रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदकर रिफाइनिंग और निर्यात से मुनाफा कमा रहा है।
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विश्लेषण
यह टैरिफ सीधे तौर पर भारतीय निर्यातकों—विशेषकर झींगा किसान, टेक्सटाइल उद्योग और छोटे व्यापारियों—को प्रभावित करेगा।
अमेरिकी उपभोक्ताओं पर भी इसका असर होगा, क्योंकि अब उन्हें भारतीय सामान महँगा खरीदना पड़ेगा।
राजन का मानना है कि यह निर्णय निष्पक्ष व्यापार का सवाल नहीं बल्कि शक्ति-प्रदर्शन की राजनीति है।
राजन की राय: रूसी तेल नीति पर पुनर्विचार
डॉ. राजन ने कहा कि भारत को रूसी तेल आयात नीति का मूल्यांकन करना चाहिए।
मुख्य बिंदु
रिफाइनर कंपनियाँ भारी मुनाफा कमा रही हैं।
निर्यातक अतिरिक्त टैरिफ का बोझ उठा रहे हैं।
यदि शुद्ध लाभ सीमित है, तो नीति पर पुनर्विचार होना चाहिए।
यहाँ उनकी बात केवल आर्थिक गणना नहीं बल्कि कूटनीतिक संतुलन पर भी है।
निर्यात बाज़ारों और आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता
राजन ने चेताया कि भारत को अपने व्यापार और आपूर्ति के स्रोत सीमित देशों तक नहीं रखने चाहिए।
तुलना: चीन और भारत
चीन ने विविध व्यापारिक साझेदारों के साथ मजबूत नेटवर्क खड़ा किया है।
भारत अभी भी कुछ देशों पर अत्यधिक निर्भर है।
यह स्थिति जोखिम भरी है, क्योंकि वैश्विक राजनीति कभी भी बाज़ार को बदल सकती है।
इसलिए भारत को यूरोप, अफ्रीका और एशिया के अन्य देशों की ओर झुकाव बढ़ाना होगा।
संकट को अवसर में बदलने का सुझाव
राजन का स्पष्ट संदेश है कि भारत इस टैरिफ संकट को अवसर में बदल सकता है।
उनके तर्क
आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम तेज़ करने होंगे।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत को और गहराई से एकीकृत होना चाहिए।
घरेलू उद्योगों में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए संरचनात्मक सुधार अनिवार्य हैं।
अमेरिकी नीतियों पर राजन की टिप्पणी
डॉ. राजन ने ट्रंप की टैरिफ नीतियों के पीछे तीन मुख्य कारण बताए:
व्यापार घाटे को विदेशी शोषण मानने की पुरानी सोच।
टैरिफ को आसान राजस्व स्रोत समझने की भ्रांति।
विदेश नीति में दंडात्मक उपकरण के रूप में टैरिफ का इस्तेमाल।
उन्होंने कहा कि यह सब शक्ति-प्रदर्शन है, न कि निष्पक्ष व्यापार का मामला।
भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव
ट्रंप प्रशासन द्वारा टैरिफ बढ़ाने के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव बढ़ा है।
भारत ने अमेरिका पर भेदभावपूर्ण रवैये का आरोप लगाया।
चीन और यूरोपीय देशों को रूस से ऊर्जा खरीदने की छूट है, लेकिन भारत को निशाना बनाया जा रहा है।
मोदी सरकार ने साफ़ कहा है कि वह दबाव में झुकने वाली नहीं है और भारतीय हित सर्वोपरि हैं।
प्रतिवाद और वैकल्पिक दृष्टिकोण
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका का कदम केवल भारत को रूस से दूरी बनाने के लिए मजबूर करने की रणनीति है।
उनका तर्क है कि अमेरिका अपने भू-राजनीतिक हितों की रक्षा कर रहा है।
भारत को भी अपनी ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए संतुलन साधना होगा।
ऐसे हालात में “रणनीतिक स्वायत्तता” भारत का सबसे अहम हथियार है।
निष्कर्ष
डॉ. रघुराम राजन की चेतावनी केवल आर्थिक गणना नहीं बल्कि रणनीतिक मार्गदर्शन है। भारत को एक ओर आत्मनिर्भरता बढ़ानी है और दूसरी ओर वैश्विक साझेदारियों में संतुलन बनाए रखना है।
भारत के लिए यह समय है कि वह संकट को अवसर में बदले—निर्यात बाजारों को विविध बनाए, घरेलू सुधारों को तेज़ करे और किसी भी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता से बचे।
अमेरिकी टैरिफ भले ही अल्पकालिक झटका हो, लेकिन लंबी अवधि में यह भारत को आत्मनिर्भरता और रणनीतिक संतुलन की दिशा में आगे बढ़ा सकता है।