
"Indian PM Modi and US President Trump handshake with flags, oil barrels, shipping containers, and Putin shadow in background – Shah Times"
डेमोक्रेटिक नेताओं का आरोप: ट्रंप ने भारत को रूस-चीन की ओर धकेला
रूसी तेल पर टैरिफ के बाद भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता क्यों अहम?
अमेरिकी सांसदों ने ट्रंप पर आरोप लगाया कि भारत पर टैरिफ लगाकर उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा कमज़ोर की और रूस-चीन को मज़बूत किया
भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते केवल सामरिक साझेदारी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के भविष्य को भी तय करते हैं। जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 27 अगस्त से रूसी तेल खरीद पर टैरिफ लगाने का फ़ैसला किया, तो इसका असर सिर्फ़ मास्को या नई दिल्ली तक सीमित नहीं रहा बल्कि पूरे वैश्विक बाज़ार पर पड़ा। अब, अमेरिकी व्यापार अधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली पहुँच रहा है, जिसकी अगुवाई ब्रेंडन लिंच करेंगे। सवाल यह है कि इस बैठक में क्या केवल व्यापारिक मसले सुलझेंगे या यह वार्ता एक नए भू-राजनीतिक समीकरण की ओर इशारा करती है?
व्यापार वार्ता की ज़रूरत क्यों?
भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है और तेल की सप्लाई उसकी आर्थिक धड़कन को तय करती है। अमेरिका ने जब रूस से तेल आयात पर टैरिफ लगाया, तो भारत के लिए सस्ता रूसी तेल खरीदना महंगा पड़ गया। ऐसे में दोनों देशों के बीच तनाव स्वाभाविक था।
भारत को सस्ती ऊर्जा की ज़रूरत है।
अमेरिका चाहता है कि भारत रूस पर निर्भरता घटाए।
चीन लगातार एशिया में अपना आर्थिक वर्चस्व बढ़ा रहा है।
वैश्विक सप्लाई चेन पहले ही कोविड और यूक्रेन युद्ध से प्रभावित है।
इन परिस्थितियों में, भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता केवल एक द्विपक्षीय बातचीत नहीं बल्कि वैश्विक आर्थिक स्थिरता का हिस्सा है।
अमेरिकी राजनीति और भारत पर असर
ट्रंप की विदेश और व्यापार नीति पर अमेरिका के भीतर ही आलोचना हो रही है। तीन सीनियर डेमोक्रेटिक सांसद—ग्रेगरी डब्ल्यू. मीक्स, एडम स्मिथ और जिम हिम्स—ने खुलकर कहा कि ट्रंप ने भारत जैसे अहम सहयोगी को रूस और चीन की ओर धकेलकर अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को कमज़ोर किया है।
उनके मुताबिक़:
ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन संकट को गलत हैंडल किया।
सहयोगियों पर भारी टैरिफ लगाकर रिश्तों में खटास डाली।
authoritarian leaders (सत्तावादी नेताओं) को हौसला मिला।
यह बयान सिर्फ़ भारत-अमेरिका रिश्तों का नहीं बल्कि अमेरिका की credibility पर भी सवाल उठाता है।
पुतिन और ट्रंप: भू-राजनीतिक समीकरण
डेमोक्रेट सांसदों ने कहा कि ट्रंप प्रशासन पुतिन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर legitimacy देता रहा है। रेड कार्पेट समिट और रूस पर नरम रवैया, अमेरिकी सहयोगियों के लिए चिंता का सबब है।
भारत इस पूरे परिदृश्य में कहाँ खड़ा है?
भारत रूस से energy imports करता है।
अमेरिका चाहता है कि भारत अपनी energy policy पश्चिमी प्रतिबंधों के हिसाब से ढाले।
लेकिन भारत अपनी strategic autonomy (रणनीतिक स्वतंत्रता) खोने के मूड में नहीं है।
भारत की रणनीति: संतुलन और अवसर
भारत जानता है कि वह न तो पूरी तरह रूस छोड़ सकता है और न ही अमेरिका को नाराज़ कर सकता है।
रूस से energy और defense imports जारी रखना भारत के लिए compulsion है।
अमेरिका के साथ तकनीकी, defense, और व्यापारिक साझेदारी opportunity है।
चीन की आक्रामकता दोनों देशों को एक common ground पर ला रही है।
यही वजह है कि नई दिल्ली की कूटनीति “multi-alignment” की राह पर है, जहां वह हर बड़े शक्ति केंद्र से रिश्ते बनाए रखती है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर
ट्रंप की टैरिफ नीति और भारत-अमेरिका वार्ता से कई महत्वपूर्ण नतीजे निकल सकते हैं:
Energy Market Volatility – टैरिफ के कारण तेल की कीमतों में अस्थिरता।
Global Supply Chains – भारत और अमेरिका के बीच अगर समझौता होता है तो नए निवेश और व्यापार मार्ग खुल सकते हैं।
Emerging Markets – भारत को नए व्यापार अवसर मिल सकते हैं, खासकर टेक्नोलॉजी और defense सेक्टर में।
Dollar Dependency – अगर भारत रूस से energy trade को local currencies या rupee-ruble mechanism से जारी रखता है, तो dollar dominance को चुनौती मिलेगी।
भारत-अमेरिका वार्ता: संभावित एजेंडा
ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security)
defense deals और technology transfer
supply chain resilience
digital trade regulations
tariffs on goods and services
इस बैठक में औपचारिक “bilateral trade agreement” पर चर्चा नहीं होगी, लेकिन groundwork ज़रूर तैयार किया जाएगा।
क्या भारत अमेरिका से दूर हो रहा है?
ट्रंप की पॉलिसी पर सवाल उठाने वाले डेमोक्रेट्स का मानना है कि भारत रूस और चीन की ओर झुक सकता है। लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि भारत का रुख़ pragmatic (व्यावहारिक) है।
रूस energy और defense partner है।
अमेरिका technology और investment partner है।
चीन strategic challenge है।
भारत की विदेश नीति “एक ध्रुवीय नहीं बल्कि बहु-ध्रुवीय दुनिया” के सिद्धांत पर चल रही है।
नतीजा: साझेदारी या टकराव?
नई दिल्ली की बातचीत से साफ़ है कि भारत किसी एक ब्लॉक का हिस्सा बनने के बजाय “issue-based partnerships” को आगे बढ़ा रहा है। ट्रंप की नीतियों से अमेरिका की credibility भले ही सवालों में है, लेकिन भारत अमेरिका से संबंध तोड़ने की स्थिति में नहीं है।
बड़ा सवाल यही है:
क्या अमेरिका अपनी टैरिफ-नीति बदलकर भारत के साथ संतुलित रिश्ता कायम कर पाएगा, या फिर उसकी rigid approach भारत को रूस-चीन की ओर और धकेल देगी?
नतीजा
भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता केवल दो देशों का मसला नहीं बल्कि global economic stability का सवाल है। ट्रंप प्रशासन की नीतियां अमेरिका की global leadership पर प्रश्नचिह्न लगा रही हैं। भारत अपनी strategic autonomy बनाए रखते हुए दोनों ध्रुवों के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है।
अगर यह वार्ता सफल होती है, तो यह न सिर्फ़ भारत और अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को राहत पहुँचा सकती है। लेकिन अगर यह असफल होती है, तो energy market, global trade और geopolitical alignments में और अधिक अस्थिरता आ सकती है।






