
Foreign Minister of India S. Jaishankar and Donald Trump with Indian and American flags in background, representing India-US trade conflict over Russian oil – Shah Times
भारत पर अमेरिका का दबाव बढ़ा: ट्रंप का 500% टैरिफ बिल क्या लाएगा संकट?
भारत पर ट्रंप की नजर: क्या ऊर्जा जरूरतें बनेंगी अमेरिका-भारत विवाद का कारण?
डोनाल्ड ट्रंप समर्थित अमेरिकी विधेयक भारत पर 500% टैरिफ लगाने की तैयारी में है। विदेश मंत्री जयशंकर ने उठाई ऊर्जा सुरक्षा की बात। पढ़ें शाह टाइम्स का विश्लेषण।
मुख्य बिंदु:
- ट्रंप समर्थित बिल में भारत-चीन जैसे देशों पर 500% टैरिफ का प्रस्ताव
- रूस से कच्चे तेल के बढ़ते आयात को लेकर चिंता
- जयशंकर ने अमेरिकी सीनेटरों के साथ भारत के हित साझा किए
- व्यापार समझौते की उम्मीदें अभी भी ज़िंदा
🇮🇳 अमेरिका के प्रस्ताव से भारत क्यों चिंतित है?
अमेरिका में प्रस्तावित नए प्रतिबंध विधेयक ने भारत की ऊर्जा नीति और व्यापारिक रणनीति के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। यह विधेयक, जिसका समर्थन स्वयं पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किया है, उन देशों पर 500% आयात शुल्क लगाने की बात करता है जो रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं — इनमें भारत और चीन प्रमुख रूप से शामिल हैं।
भारत के लिए यह मामला केवल आर्थिक नहीं बल्कि रणनीतिक ऊर्जा सुरक्षा का भी है। रूस से कच्चे तेल की आपूर्ति भारत की ऊर्जा जरूरतों का लगभग 40-45% तक हिस्सा पूरा करती है। ऐसे में, इस टैरिफ का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर सीधा और गहरा होगा।
🗣️ एस. जयशंकर की स्पष्टवाणी
वर्तमान में अमेरिका की चार दिवसीय यात्रा पर गए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस विषय पर बेहद संतुलित लेकिन स्पष्ट रुख अपनाया है। वॉशिंगटन डीसी में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने बताया कि भारत ने अमेरिकी सीनेटरों के साथ ऊर्जा सुरक्षा को लेकर अपनी चिंता साझा की है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को इस प्रस्तावित विधेयक के प्रभावों की पूरी जानकारी है और समय आने पर उचित निर्णय लिया जाएगा।
उन्होंने कहा:
“हम अमेरिकी कांग्रेस में भारत से जुड़े घटनाक्रमों पर लगातार नजर रखते हैं। ऊर्जा सुरक्षा हमारी प्राथमिकताओं में से एक है, और हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत के हित क्या हैं।”
📜 क्या है यह प्रस्तावित विधेयक?
इस विधेयक को रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने प्रस्तुत किया है। प्रस्तावित कानून का उद्देश्य रूस पर आर्थिक दबाव बनाना है ताकि वह यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की दिशा में गंभीरता दिखाए। लेकिन इसमें खास बात यह है कि ग्राहम ने भारत और चीन का नाम लेकर कहा कि ये देश पुतिन के तेल का लगभग 70% हिस्सा खरीदते हैं।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या भारत की ऊर्जा ज़रूरतें अब अमेरिकी राजनीति के निशाने पर हैं? या फिर यह केवल एक रणनीतिक चाल है जिससे भारत को अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने को मजबूर किया जा सके।
🛢️ भारत-रूस तेल व्यापार: वास्तविकता क्या है?
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से पश्चिमी देशों ने रूस पर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिससे रूस ने सस्ती दरों पर कच्चा तेल बेचना शुरू किया। भारत और चीन ने इस अवसर को अपने हित में इस्तेमाल किया। मई 2025 में भारत ने रूस से लगभग 1.96 मिलियन बैरल प्रति दिन (BPD) कच्चे तेल का आयात किया — जो पिछले 10 महीनों का उच्चतम स्तर था।
यह आयात अब भारत के पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं जैसे सऊदी अरब और इराक को पीछे छोड़ चुका है। यह भारत की ऊर्जा नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है।
💡 ट्रंप का दबाव: कूटनीति या व्यापारिक रणनीति?
डोनाल्ड ट्रंप के बयान को सिर्फ कूटनीति नहीं माना जा सकता। अप्रैल में उन्होंने 26% पारस्परिक शुल्क की धमकी दी थी, जिससे बचने के लिए भारत ने अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को प्राथमिकता दी है। इस समझौते से उम्मीद है कि भारत पर अमेरिकी शुल्क में राहत मिल सकती है।
हालांकि, 500% टैरिफ का प्रस्ताव इस पूरी प्रक्रिया पर अनिश्चितता की चादर डाल देता है।
🤝 क्या भारत-अमेरिका समझौता होगा?
अभी तक की कूटनीतिक भाषा को देखें तो यह स्पष्ट है कि भारत और अमेरिका दोनों एक समझौते की दिशा में काम कर रहे हैं। लेकिन अमेरिका का आक्रामक रुख और भारत की रूस से निकटता इस प्रक्रिया को जटिल बना रही है।
जयशंकर ने जो बयान दिए हैं, वे भारत की ओर से एक परिपक्व और संतुलित कूटनीति का संकेत हैं। भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति और ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दों पर झुकाव नहीं दिखा रहा।
🔍 निष्कर्ष: भारत को क्या करना चाहिए?
- ऊर्जा विविधीकरण: भारत को अपने ऊर्जा स्रोतों को विविध बनाना होगा ताकि रूस पर निर्भरता कम हो।
- अमेरिका से व्यापार समझौते को तेज़ी से पूरा करना चाहिए, जिससे टैरिफ संकट से बचा जा सके।
- कूटनीतिक लॉबिंग: अमेरिका के भीतर भारत के पक्ष में लॉबिंग को मजबूत करना आवश्यक है, ताकि कांग्रेस में भारत विरोधी प्रस्तावों को रोका जा सके।