
Heated debate between Amit Shah and Akhilesh Yadav in Parliament on Operation Sindoor
ऑपरेशन महादेव की टाइमिंग पर अखिलेश यादव का हमला,अमित शाह ने बताया निर्णायक कार्रवाई
संसद में अमित शाह और अखिलेश यादव के दरमियान ऑपरेशन सिंदूर पर तीखी बहस
संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर गरमा-गरम बहस, अखिलेश यादव ने सरकार से उठाए कई सवाल, अमित शाह ने किया सेना की कार्रवाई का बचाव।
New Delhi, (Shah Times)। 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। 26 निर्दोष पर्यटकों की मौत ने एक बार फिर इस बात की याद दिलाई कि जम्मू-कश्मीर में शांति के तमाम दावों के बावजूद खतरे बरकरार हैं। भारत ने इस हमले का जवाब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के ज़रिए दिया, जिसने कथित रूप से पाकिस्तान और पीओजेके (पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर) में आतंकी ढांचों को ध्वस्त किया।
लेकिन संसद में इस पर बहस कुछ अलग दिशा में मुड़ गई। जहां एक ओर गृह मंत्री अमित शाह ने इसे निर्णायक कार्रवाई बताया, वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने इसकी टाइमिंग और राजनीतिक मंशा पर सवाल उठाए।
अमित शाह बनाम अखिलेश यादव: संसद में मचा घमासान
लोकसभा में हुई तीखी बहस का केंद्र रहा – ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता बनाम सियासी फायदा। गृह मंत्री ने सदन को जानकारी दी कि इस हमले में शामिल तीनों आतंकियों को मार गिराया गया है, और यह कार्रवाई ‘ऑपरेशन महादेव’ के अंतर्गत हुई। उन्होंने सेना और सुरक्षाबलों की सराहना करते हुए इसे निर्णायक कार्रवाई बताया।
लेकिन जैसे ही अमित शाह ने विपक्ष पर कटाक्ष किया, अखिलेश यादव ने पलटवार करते हुए कहा – “उनके आका पाकिस्तान में हैं।” इस पर गृह मंत्री का तंज आया – “क्या आपकी पाकिस्तान से बात होती है?” यही से बहस गरमाने लगी और विपक्ष ने सदन में विरोध जताया।
विपक्ष का बड़ा सवाल: टाइमिंग और पारदर्शिता
सपा प्रमुख ने सवाल उठाया कि आतंकी एनकाउंटर संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के ठीक अगले दिन ही क्यों हुआ? उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह एक राजनीतिक रूप से प्लांड टाइमिंग थी ताकि सत्तारूढ़ पार्टी को श्रेय मिल सके।
इसके अलावा, उन्होंने यह भी पूछा कि अगर खुफिया एजेंसियों के पास इतनी तकनीक है, तो फिर पुलवामा हमले में इस्तेमाल हुई गाड़ी का पता अब तक क्यों नहीं चला?
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की भूमिका पर कटाक्ष
अखिलेश यादव ने इस पूरी कार्रवाई के दौरान अमेरिका के कथित हस्तक्षेप पर भी प्रश्न उठाया। उन्होंने कहा कि “सरकार ने खुद युद्धविराम की घोषणा नहीं की, बल्कि अपने ‘मित्र’ डोनाल्ड ट्रंप से इसे करवाया।”
यह टिप्पणी उस दावे की ओर इशारा करती है जिसमें ट्रंप ने कहा था कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष में उन्होंने ही युद्धविराम को संभव बनाया।
भारत सरकार हालांकि इस दावे को नकार चुकी है, लेकिन विपक्ष इस पर सरकार को घेरने से पीछे नहीं हट रहा।
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मीडिया की भूमिका और ‘POK जीत’ का नैरेटिव
अखिलेश यादव ने मीडिया चैनलों द्वारा फैलाई गई ‘गलत सूचना’ पर भी हमला किया। उन्होंने कहा कि चैनलों ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर ऐसा नैरेटिव बनाया मानो भारत ने कराची और लाहौर पर कब्जा कर लिया हो! उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि “कुछ चैनलों ने तो कहा कि हमने पाकिस्तानियों को पकड़ भी लिया है।”
यह बयान भारतीय मीडिया की उग्र राष्ट्रवाद आधारित रिपोर्टिंग पर तीखा सवाल था।
सवालों की बौछार: क्या सरकार पारदर्शिता बरत रही है?
अखिलेश यादव ने संसद में कई सवाल उठाए:
सीज़फायर की घोषणा किसने की और क्यों?
अमेरिका की भूमिका कितनी अधिक है?
पाकिस्तान समर्थक देशों के नाम क्यों नहीं बताए जा रहे?
सुरक्षा में विफलता की जिम्मेदारी कौन लेगा?
इन सवालों ने सरकार को कटघरे में तो खड़ा किया, लेकिन सरकार की ओर से इनका कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया।
सेना की वीरता पर एकमत समर्थन
इस बहस के दौरान एक बात पर विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों सहमत नजर आए — भारतीय सेना की वीरता और शौर्य पर कोई सवाल नहीं है।
अखिलेश यादव ने भी सेना को सलाम करते हुए कहा कि “अगर कोई दुश्मन भारत की धरती पर आतंक फैलाने की कोशिश करेगा, तो हमारी सेना उसे सबक सिखा सकती है।”
मुद्दा सुरक्षा का या राजनीति का?
संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस ने साफ कर दिया कि देश की सुरक्षा अब सिर्फ सामरिक नहीं, राजनीतिक विमर्श का भी बड़ा हिस्सा बन चुकी है।
विपक्ष सवाल पूछता है, सत्ता पक्ष जवाब से ज्यादा आरोप लगाता है, और इस बीच असली मुद्दे — सुरक्षा में चूक, खुफिया एजेंसियों की जिम्मेदारी, अंतरराष्ट्रीय दबाव — पीछे छूट जाते हैं।
भारत जैसे लोकतंत्र में जहां संसद सबसे बड़ी जवाबदेही का मंच है, वहां अगर सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर भी राजनीतिक अंकगणित हावी हो जाए, तो यह लोकतंत्र की मजबूती नहीं, कमजोरी का संकेत है।