
संविधान संशोधन 2025 पर हंगामा, विपक्ष में गहरी दरार सियासी संग्राम तेज
जेपीसी पर विपक्ष में फूट: 130वां संशोधन बिल ने बढ़ाया सियासी तनाव
संविधान संशोधन विधेयक 2025 पर जेपीसी गठन को लेकर विपक्षी दलों में मतभेद। तृणमूल, सपा और शिवसेना ने समिति से किनारा किया, अमित शाह ने दिया जवाब।
New Delhi,(Shah Times) । भारत की सियासत एक बार फिर गहन बहस के केंद्र में है। लोकसभा में पेश किए गए संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025 ने संसद से लेकर सड़क तक हंगामा खड़ा कर दिया है। इस बिल में प्रावधान है कि अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर अपराध के तहत 30 दिनों से ज्यादा जेल में रहता है, तो उसे स्वतः पद छोड़ना होगा। सत्ता पक्ष इसे संवैधानिक नैतिकता का कदम बता रहा है, जबकि विपक्ष इसे लोकतंत्र पर हमला करार दे रहा है। सबसे दिलचस्प मोड़ तब आया जब इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में भेजा गया और विपक्षी दलों ने ही इस पर फूट दिखानी शुरू कर दी।
विपक्ष की फूट और जेपीसी विवाद
पहले तृणमूल कांग्रेस ने जेपीसी से किनारा किया, फिर समाजवादी पार्टी और अब उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने भी इसका बहिष्कार कर दिया। शिवसेना नेता संजय राउत ने इसे “लोकतंत्र कुचलने की साज़िश” बताया और कहा कि मोदी सरकार केवल नौटंकी कर रही है।
अखिलेश यादव ने सवाल उठाया कि जब गृह मंत्री खुद मान चुके हैं कि उन पर कभी झूठे आरोप लगे, तो ऐसे कानून की प्रासंगिकता ही क्या है। वहीं डेरेक ओब्रायन ने तंज किया कि “2014 से पहले जेपीसी जवाबदेही का प्रतीक था, अब यह सरकार की राजनीति का औज़ार बन चुका है।”
इस फूट से विपक्ष का साझा मोर्चा कमजोर पड़ता दिख रहा है, जबकि सत्ता पक्ष को रणनीतिक बढ़त मिलती नजर आ रही है।
अमित शाह का पलटवार
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए बिल का मजबूती से बचाव किया। शाह का तर्क है कि यह बिल किसी पार्टी या नेता को टारगेट करने के लिए नहीं, बल्कि जनता के भरोसे और संवैधानिक नैतिकता को मजबूत करने के लिए है।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण देते हुए कहा कि “मोदी जी ने अपने पद को भी इसमें शामिल किया है। अगर वे जेल जाएंगे तो इस्तीफा देना होगा। यह पारदर्शिता और नैतिकता का संदेश है।”
शाह ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई नेता 30 दिन की जेल के बाद जमानत पर छूटता है तो वह दोबारा शपथ लेकर पद संभाल सकता है।
विश्लेषण: बिल के पक्ष में तर्क
संवैधानिक नैतिकता की मजबूती – यह प्रावधान नेताओं को जवाबदेह बनाएगा और जनता का भरोसा कायम करेगा।
समानता का सिद्धांत – प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री तक, सभी पर यह लागू होगा।
जनता का भरोसा – जेल में बैठकर सत्ता चलाने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।
विपक्षी आपत्तियाँ और शंकाएँ
राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका – विपक्ष को डर है कि झूठे केस में नेताओं को फंसाकर सत्ता बदली जा सकती है।
जेपीसी की विश्वसनीयता पर सवाल – तृणमूल और सपा का कहना है कि समिति निष्पक्ष नहीं, बल्कि सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाने का औज़ार है।
लोकतंत्र पर खतरा – विपक्ष मानता है कि यह बिल लोकतांत्रिक ढांचे में हस्तक्षेप है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1975 में आपातकाल और 39वें संशोधन का हवाला देकर विपक्ष याद दिला रहा है कि सत्ता हमेशा संवैधानिक संशोधन का इस्तेमाल अपनी मजबूती के लिए करती रही है। वहीं सत्ता पक्ष दावा कर रहा है कि मोदी सरकार ने इसके उलट अपने खिलाफ ही संशोधन लाया है।
राजनीतिक समीकरण
जेपीसी का गठन होगा, इसमें 31 सांसद शामिल होंगे। लेकिन विपक्ष का हिस्सा न लेना सरकार को फायदा पहुँचा सकता है, क्योंकि रिपोर्ट सरकार के पक्ष में झुक सकती है। इससे बिल का पास होना लगभग तय माना जा रहा है।
जनता की नजर से
आम लोगों के लिए यह बहस दो ध्रुवों में बंटी हुई है –
एक तरफ नैतिकता का सवाल है कि जेल में बैठकर सत्ता नहीं चलनी चाहिए।
दूसरी तरफ डर है कि अगर यह कानून गलत हाथों में गया तो यह विपक्ष की आवाज दबाने का हथियार बन सकता है।
निष्कर्ष
संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025 पर चल रही बहस सिर्फ एक कानूनी प्रावधान नहीं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक भविष्य का सवाल है। सत्ता पक्ष इसे नैतिकता की जीत बता रहा है, तो विपक्ष इसे लोकतंत्र पर आघात मान रहा है।
जेपीसी पर विपक्ष की फूट ने सरकार को रणनीतिक बढ़त दी है। अब असली कसौटी संसद और अदालतों की होगी, जो तय करेंगी कि यह बिल लोकतंत्र को और मजबूत करेगा या राजनीतिक हथियार बन जाएगा।