
Anmol Bishnoi, who was deported to India, is being escorted to court by the NIA team under tight security.
अमेरिका से डिपोर्ट अनमोल बिश्नोई और NIA की गहन जांच
📍नई दिल्ली 🗓️ 20 नवम्बर 2025✍️ Asif Khan
अमेरिका से डिपोर्ट होकर भारत पहुँचे अनमोल बिश्नोई को NIA ने 11 दिन की कस्टडी में लिया। उस पर हत्याओं, फिरौती, इंटरनेशनल लिंक और फर्जी पासपोर्ट जैसे गंभीर आरोप हैं। यह गिरफ्तारी एक गैंगस्टर की कहानी से ज़्यादा, भारत के क्रिमिनल इकोसिस्टम के असली ढांचे को उजागर करती है।
भारत ने हाल के सालों में जितने हाई-प्रोफाइल गैंगस्टरों के नेटवर्क को तोड़ा, उनमें अनमोल बिश्नोई की गिरफ्तारी सबसे जटिल परतें खोलने वाली साबित हो सकती है। अमेरिका में डिटेंशन के बाद उसके सीधे ट्रांजिट डिपोर्टेशन ने पूरे कानून-व्यवस्था ढांचे को एक नए सवाल के सामने खड़ा किया—क्या भारत अब उन अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क्स को समझने की स्थिति में पहुँच चुका है, जो सालों से डिजिटल पर्दों के पीछे काम कर रहे थे?
यहाँ सिर्फ़ एक फरार गैंगस्टर की धरपकड़ की कहानी नहीं है। यह उस इकोसिस्टम की परतें उघाड़ने का मौका है जहाँ अपराध, वित्त, टेक्नोलॉजी और अंतरराष्ट्रीय ठिकाने एक-दूसरे में ऐसे जुड़े हैं कि एक केस कई देशों की सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बन जाता है।
अनमोल को IGI एयरपोर्ट पर उतारते समय जो सिक्योरिटी कॉर्डन था, वह किसी हाई-वैल्यू टेरर ट्रांसफर जैसा दिख रहा था। वजह साफ है—उसके खिलाफ 35 से ज़्यादा हत्याकांड, दर्जनों अपहरण, फिरौती, क्रॉस-बॉर्डर नेटवर्क और डिजिटल ऑपरेशन के सबूत मौजूद हैं। अदालत ने NIA को 11 दिन की कस्टडी इसलिए दी, क्योंकि यह पहला मौका है जब एजेंसी को पूरा अवसर मिल रहा है कि इस सिलसिले की असली जड़ें पकड़ सके।
क्राइम मॉडल की तर्कशीलता: क्या यह महज गैंगस्टरिज़्म है?
अनमोल और लॉरेंस बिश्नोई के नेटवर्क को सिर्फ़ “गैंग” कह देना आसान है, लेकिन हक़ीक़त इससे कहीं गहरी है। पिछले पाँच–छह वर्षों में इस नेटवर्क का ऑपरेशन किसी कारपोरेट स्ट्रक्चर जैसा हो गया है—
कमांड, सब-कमांड, डिजिटल कवर, फाइनेंस चैनल, इंटरनेशनल हैंडलर्स, और वर्चुअल नंबरों पर आधारित हज़ारों कनेक्शन।
यह मॉडल सिर्फ़ हिंसा पर नहीं चलता। यह रूटीन एडमिन, लॉजिस्टिक्स, ऑपरेशंस, टारगेटिंग और लोयल्टी मैनेजमेंट पर आधारित है। यही वजह है कि पंजाब से लेकर मुंबई और जयपुर तक, हर केस में इनकी पकड़ वही दिखाई देती है—परतदार और शातिर।
जवाबी राय: क्या राज्य एजेंसियाँ अब इस मॉडल को पूरी तरह समझ चुकी हैं?
यहीं पर एक बड़ा सवाल उठता है।
अगर राज्य एजेंसियाँ इस नेटवर्क को पूरी तरह समझ चुकी होतीं, तो क्या अनमोल जैसे व्यक्ति को फर्जी पासपोर्ट पर अमेरिका तक पहुँचने का मौका मिलता?
क्या कोई व्यक्ति 2021 में जोधपुर जेल से निकलकर सीधा इंटरनेशनल सर्किट में गायब हो सकता है, अगर स्थानीय जांचों और इंटेलिजेंस की परतों में कहीं न कहीं कमज़ोरी न हो?
यह सिर्फ़ सिस्टम की ताकत की कहानी नहीं है। यह सिस्टम की कमज़ोरियों की भी कहानी है। और यही वह जगह है जहाँ मिडिया को सवाल उठाने चाहिए।
डिजिटल ऑपरेशन: छिपा हुआ मगर सबसे मजबूत मोर्चा
बिश्नोई नेटवर्क का सबसे खतरनाक हिस्सा इसका डिजिटल ऑपरेशन है। सिग्नल-आधारित चैट, वर्चुअल नंबर, डार्क वेब पर आधारित लॉजिस्टिक्स, और सात–आठ लेयर वाला हिट मॉडल—
यह पारंपरिक पुलिसिंग से कई कदम आगे चलता है।
हर सदस्य सिर्फ अपने अगले व्यक्ति को जानता है—यह सेल स्ट्रक्चर उग्रवादी संगठनों का पुराना तरीका है, लेकिन इस गैंग ने इसे क्रिमिनल बिजनेस मॉडल में बदल दिया। पुलिस जब भी किसी लेयर पर हाथ डालती है, अगली लेयर धुंध में गुम हो जाती है।
अनमोल की गिरफ्तारी के बाद असली परीक्षा शुरू होती है
गिरफ्तारी खबर है।
लेकिन जाँच—असल कहानी।
NIA को उससे यह समझना है कि
फाइनेंस कहाँ से आता था,
कौन-से देश लॉजिस्टिक हब बने हुए थे,
कौन लोग इन नेटवर्क्स के “नो-वॉइस पार्टनर” हैं,
और कब से बॉलीवुड से लेकर राजनीति तक यह नेटवर्क अपनी पहुँच बढ़ा चुका है।
यहाँ एक अहम प्रश्न जन्म लेता है—क्या भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ इस बात की गारंटी दे सकती हैं कि अनमोल जैसे ऑपरेटिव सिर्फ़ “अपराधियों” की कैटेगरी में आते हैं?
या फिर इनके संपर्क उन हलकों तक भी जाते हैं जहाँ अपराध और राजनीति की सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं?
मामला “सिर्फ़ ज़िंदान का क़ैदी” नहीं
यह कहानी एक शख्स की गिरफ्तारी पर खत्म नहीं होती।
यह उस फ़लसफ़े की कहानी है जहाँ एक नेटवर्क ने अपनी मज़बूती को “लोयल्टी” की बुनियाद पर बनाया।
जब किसी सदस्य पर मुश्किल आती, गैंग उसकी मदद करता।
यही वह जगह है जहाँ यह मॉडल टूटता नहीं।
जेल में बैठा लॉरेंस लगातार वित्तीय मदद पहुँचाता रहा—यही वजह है कि भगोड़े टूटे नहीं।
यह “मुफ़्त की वफ़ादारी” नहीं, बल्कि “संरचना आधारित वफ़ादारी” है।
इसीलिए यह गैंग देश की 13 स्टेट्स और 9 देशों में फैला रहा।
क्या सिर्फ़ लोयल्टी ही इसकी रीढ़ है?
बिल्कुल नहीं।
लॉयल्टी तंत्र है, रीढ़ नहीं।
रीढ़ है—गैंग का आर्थिक ढांचा।
जब तक यह ढांचा सुरक्षित है, तब तक कोई नेटवर्क नहीं टूटता।
इसलिए NIA की असली चुनौती है—फाइनेंसरों की पहचान, चैनल्स की मैपिंग और क्रॉस-बॉर्डर कनेक्शनों की पड़ताल।
2023–2025 की घटनाएँ: केस एक-दूसरे से जुड़े हैं
मूसेवाला की हत्या,
सलमान खान के घर फायरिंग,
बाबा सिद्दीकी की हत्या की साजिश—
ये घटनाएँ अलग-अलग लगती हैं, लेकिन इनकी जड़ें एक ही नेटवर्क में मिलती हैं।
अनमोल ने 2020 से 2023 तक कनाडा स्थित गोल्डी बराड़ और लॉरेंस के साथ मिलकर कई वारदातें संचालित कीं।
अमेरिका में पकड़े जाने के बाद भी उसने इनकार नहीं किया—उसके डिजिटल फुटप्रिंट्स ने हक़ीक़त बयान कर दी।
क्या यह गिरफ्तारी भारत में गैंगस्टरिज़्म के चक्र को तोड़ देगी?
यहाँ ईमानदार जवाब जरूरी है—
नहीं।
सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ्तारी चक्र नहीं तोड़ती।
इकोसिस्टम से लड़ाई इकोसिस्टम से ही होती है।
अनमोल की गिरफ्तारी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पहली बार है जब भारत को इस नेटवर्क का “ब्लूप्रिंट” पढ़ने का मौका मिलेगा।
लेकिन यह तभी होगा, जब पूछताछ सिर्फ़ बयान जुटाने तक सीमित न रहे, बल्कि उन आर्थिक और लॉजिस्टिक चैनलों तक पहुँचे जो इस गैंग को ऑक्सीजन देते रहे।
जेल सुरक्षा: एक नया सिरदर्द
जहाँ अनमोल को रखा जाएगा, वही अगला तनाव है।
तिहाड़, साबरमती, राजस्थान और पंजाब की जेलों में पहले से विरोधी गैंग मौजूद हैं।
दुबई में हाल ही में बिश्नोई गैंग के एक फाइनेंसर की हत्या ने गैंगवार को और भड़का दिया है।
इसलिए अनमोल की सुरक्षा सिर्फ़ कानून का मसला नहीं, बल्कि इंटेलिजेंस का मामला बन चुकी है।
आख़री सवाल: क्या राज्य अब इस इकोसिस्टम को चुनौती देने के लिए तैयार है?
यहाँ एक सच्ची, कड़वी और जरूरी बात कहनी पड़ेगी—
भारतीय एजेंसियाँ अब पहले से ज़्यादा सक्षम हैं, लेकिन यह नेटवर्क उनसे कई साल तेज़ भाग चुका है।
अगर इस मामले से राज्य सीखता है,
तो यह गिरफ्तारी एक बदलाव की शुरुआत होगी।
अगर नहीं—
तो यह महज एक और हाई-प्रोफाइल केस फाइल में बदल जाएगी।
कहानी यहाँ खत्म नहीं होती।
यह तो बस शुरुआत है।




