
Israel’s Gaza City takeover sparks global outrage; Germany halts arms exports as humanitarian crisis fears grow – Shah Times
इजरायल का ग़ज़ा पर कब्ज़ा: जर्मनी का हथियार निर्यात रोकना और वैश्विक प्रतिक्रिया
इजरायल के फैसले से भड़का अरब जगत, जर्मनी ने हथियार रोके
इजरायल की सुरक्षा कैबिनेट द्वारा ग़ज़ा सिटी पर कब्ज़े की मंज़ूरी से यूरोप, अरब और मुस्लिम देशों में गुस्सा। जर्मनी ने हथियार निर्यात रोका, अंतरराष्ट्रीय आलोचना तेज।
इज़रायली सिक्योरिटी कैबिनेट के ग़ज़ा पर कब्ज़े की मंज़ूरी: वैश्विक सियासत में बढ़ता तनाजा और इंसानी संकट
मिडिल-ईस्ट की सियासत एक बार फिर उबाल पर है। इज़रायल की सिक्योरिटी कैबिनेट ने ग़ज़ा सिटी पर कब्ज़ा करने का फ़ैसला मंज़ूर किया, जिससे यूरोप और अरब देशों में ग़ुस्से की लहर दौड़ गई। इस कदम ने न सिर्फ़ रीजनल स्थिरता को चैलेंज किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक तनाज़ को भी बढ़ा दिया। ख़ास तौर पर, इज़रायल के करीबी दोस्त जर्मनी ने हथियार सप्लाई रोकने का फ़ैसला करके मसले को और गंभीर बना दिया।
जर्मनी का क़ड़ा रुख़ और इंटरनेशनल रिएक्शन
इज़रायल के फ़ैसले के तुरंत बाद, जर्मनी ने ऐलान किया कि वह उन हथियारों की सेल रोक देगा जो ग़ज़ा में इस्तेमाल हो सकते हैं। ये स्टेप बताता है कि यूरोप में भी इज़रायल की नीतियों पर असहमति गहराने लगी है। संयुक्त राष्ट्र ने वार्निंग दी कि ग़ज़ा पर कब्ज़ा ज़बरदस्त जबरन विस्थापन और सिविलियन हत्याओं का कारण बन सकता है। चीन, रूस, ब्रिटेन समेत कई मुल्कों ने इस क़दम की निंदा की। अमेरिका का रुख़ मिला-जुला है — राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे इज़रायल का आंतरिक मामला बताया, जबकि उपराष्ट्रपति जे डी वेंस ने वार एक्सपैंशन पर असहमति जताई, लेकिन इज़रायल के मकसद से सहमति भी ज़ाहिर की।
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अरब और मुस्लिम मुल्कों का तीखा विरोध
पर कब्ज़े की योजना पर मुस्लिम दुनिया में ग़ुस्सा साफ़ नज़र आ रहा है। सऊदी अरब ने इसे इंटरनेशनल क़ानून का उल्लंघन और ‘जातीय सफ़ाए’ की पॉलिसी कहा। क़तर ने वार्निंग दी कि ये क़दम ह्यूमेनिटेरियन क्राइसिस को गहरा करेगा और संघर्ष विराम की कोशिशों को कमजोर करेगा। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने इसे शांति की उम्मींदों के लिए खतरा बताया और इंटरनेशनल कम्युनिटी से दख़ल की मांग की। कुवैत ने इसे दो-राष्ट्र सुलह में बड़ी रुकावट बताया और ग़ज़ा में तुरंत ह्यूमेनिटेरियन मदद भेजने की अपील की। इस्लामिक कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (OIC) ने भी एक संयुक्त बयान जारी किया कि ये फ़ैसला मौजूदा ह्यूमेनिटेरियन संकट को और बढ़ा देगा।
मानवीय संकट की गहराई
ग़ज़ा पट्टी दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले इलाक़ों में से एक है। युद्ध से पहले भी यहाँ लाखों लोग गरीबी और बेरोज़गारी से जूझ रहे थे। इज़रायल की नई प्लानिंग से ज़बरदस्त जबरन विस्थापन की आशंका है। खाना और दवाइयों की कमी पहले से ही गंभीर है, जिसे अंतरराष्ट्रीय संगठन वार्निंग के तौर पर सामने ला चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र के ह्यूमन राइट्स चीफ़ वोल्कर टर्क ने कहा कि हालात बिगड़ने पर “नरसंहार और तबाही” जैसे नतीजे आ सकते हैं।
वेस्टर्न मुल्कों का बदलता रुख़
जहाँ अमेरिका अभी भी इज़रायल का साथ दे रहा है, वहीं ब्रिटेन, फ्रांस जैसे पुराने दोस्त इस फ़ैसले की आलोचना कर रहे हैं। ब्रिटेन ने ग़ज़ा में ह्यूमेनिटेरियन मदद बढ़ाने की मांग की है। फ्रांस ने कहा कि ये कदम दो-राष्ट्र समाधान को नामुमकिन बना देगा। कनाडा ने भी इज़रायल से संयम बरतने की गुज़ारिश की है। जर्मनी का हथियार निर्यात रोकना एक बड़ा संकेत है कि पश्चिमी मुल्कों में भी इज़रायल की पॉलिसीज़ पर असहमति बढ़ रही है।
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इज़रायल की स्ट्रैटेजी: सिर्फ़ ग़ज़ा सिटी पर कंट्रोल या पूरी पट्टी पर?
इज़रायली प्रधानमंत्री ऑफिस के मुताबक, IDF “ग़ज़ा सिटी पर कंट्रोल की तैयारी” कर रही है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू पहले पूरे ग़ज़ा पर कब्ज़ा करने की बात कर चुके हैं, मगर अभी की योजना सिर्फ ग़ज़ा सिटी तक सीमित है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये पहला स्टेप है, आगे पूरा कब्ज़ा हो सकता है। हमास ने इसे “नया वार क्राइम” करार दिया और ज़ोरदार विरोध का ऐलान किया।
वेस्टर्न मुल्कों का बदलता रुख़
जहाँ अमेरिका अभी भी इज़रायल का साथ दे रहा है, वहीं ब्रिटेन, फ्रांस जैसे पुराने दोस्त इस फ़ैसले की आलोचना कर रहे हैं। ब्रिटेन ने ग़ज़ा में ह्यूमेनिटेरियन मदद बढ़ाने की मांग की है। फ्रांस ने कहा कि ये कदम दो-राष्ट्र समाधान को नामुमकिन बना देगा। कनाडा ने भी इज़रायल से संयम बरतने की गुज़ारिश की है। जर्मनी का हथियार निर्यात रोकना एक बड़ा संकेत है कि पश्चिमी मुल्कों में भी इज़रायल की पॉलिसीज़ पर असहमति बढ़ रही है।
जिओ पॉलिटिक्स असर
ग़ज़ा पर कब्ज़ा केवल इज़रायल-फ़िलिस्तीन का मसला नहीं, बल्कि मिडिल-ईस्ट की पूरी सियासत को प्रभावित करेगा। ईरान और उसके साथी इस मौक़े का फायदा उठाकर इज़रायल-विरोधी रुख़ को और मज़बूत कर सकते हैं। अमेरिका और यूरोप के बीच मतभेद और बढ़ सकते हैं। एनर्जी मार्केट में अस्थिरता आने की संभावना है क्योंकि मिडिल-ईस्ट की लड़ाई तेल सप्लाई को प्रभावित कर सकती है।
अंतरराष्ट्रीय कानून और दो-राष्ट्र समाधान
संयुक्त राष्ट्र और ज़्यादातर इंटरनेशनल बॉडीज़ 1967 की सीमाओं के आधार पर दो-राष्ट्र समाधान की पैरवी करती हैं। ग़ज़ा पर कब्ज़ा इस सुलह को कमजोर करेगा। अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत किसी आबाद इलाक़े पर कब्ज़ा करना और वहाँ के लोगों को जबरन हटाना वार क्राइम माना जाता है। अगर ये योजना आगे बढ़ी, तो इज़रायल के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट में क़ानूनी कार्रवाई तेज़ हो सकती है।
नतीजा: आगे का रास्ता क्या है?
ग़ज़ा सिटी पर कब्ज़ा सिर्फ़ मिलिट्री स्ट्रैटेजी नहीं, बल्कि एक राजनीतिक मैसेज भी है कि इज़रायल अपनी सुरक्षा के लिए ग्लोबल दबावों को नज़रअंदाज़ करने को तैयार है। लेकिन इसके नतीजे खतरनाक हो सकते हैं — इन्सानी संकट का बढ़ना, रीजनल अस्थिरता, और ग्लोबल पॉलीटिकल बैलेंस का बिगड़ना। इंटरनेशनल कम्युनिटी के सामने चुनौती है कि हिंसा रोकें और फिलिस्तीन-इज़रायल संघर्ष का स्थायी हल निकालें। इसके लिए तुरंत युद्धविराम, मानवीय मदद की लगातार सप्लाई, और दो-राष्ट्र समाधान की तरफ कूटनीतिक कोशिशें ज़रूरी हैं।