
इज़रायल इंटेलीजेंस एजेंसी, मोसाद में बड़ा बदलाव: अरबी जबान और इस्लाम पर जोर
इज़रायली इंटेलीजेंस एजेंसी में सांस्कृतिक क्रांति: अब सभी अफसर पढ़ेंगे अरबी और इस्लाम
इज़रायल इंटेलीजेंस एजेंसी और मोसाद के सभी खुफिया अफसरों को अब अरबी भाषा और इस्लामी संस्कृति पढ़नी होगी। जानिए इज़रायल का यह नया रणनीतिक बदलाव।
एक खुफिया एजेंसी का आत्मावलोकन
इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के नेतृत्व में सरकार ने एक ऐतिहासिक और रणनीतिक निर्णय लिया है। देश की प्रतिष्ठित खुफिया एजेंसी ‘मोसाद’ और सैन्य खुफिया निदेशालय ‘अमन’ (AMAN) के लिए अब अरबी भाषा और इस्लामी संस्कृति की शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया है। यह फैसला केवल शैक्षणिक नहीं, बल्कि रणनीतिक, सांस्कृतिक और खुफिया सुधारों की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
क्यों लिया गया यह फैसला?
2023 में हमास के हमले के बाद हुई खुफिया विफलताओं ने इज़रायली खुफिया तंत्र की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए। चाहे वह गाज़ा पट्टी में हमास का हमला हो या यमन के हूती विद्रोहियों की गतिविधियां—अरबी भाषा और इस्लामी सांस्कृतिक ज्ञान की कमी ने खुफिया अधिकारियों की विश्लेषणात्मक क्षमता को सीमित किया।
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ज़रूसलम पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पहल “अमन” के प्रमुख मेजर जनरल श्लोमी बाइंडर की अगुवाई में हो रही व्यापक संरचनात्मक बदलावों का हिस्सा है।
क्या होगा बदलाव में?
अरबी भाषा का प्रशिक्षण:
हर खुफिया अधिकारी को अरबी बोलने, समझने और विश्लेषण करने में दक्ष होना जरूरी होगा।
लक्ष्य: 50% स्टाफ को अरबी में पारंगत बनाना।
इस्लामी अध्ययन:
सभी खुफिया कर्मियों को इस्लाम, कुरान और संबंधित धार्मिक-सांस्कृतिक पहलुओं की शिक्षा दी जाएगी।
लक्ष्य: 100% स्टाफ को इस्लामी अध्ययन में प्रशिक्षित करना।
नई इकाई की स्थापना:
अमन विशेष तौर पर हूती और इराकी बोलियों में विशेषज्ञता देने के लिए एक नया डिपार्टमेंट शुरू कर रहा है।
टेलीम (TELEM) प्रोग्राम की वापसी
छह साल पहले बजट कटौती के चलते बंद किया गया TELEM प्रोग्राम, जो स्कूल स्तर पर अरबी और मध्य पूर्वी अध्ययन को बढ़ावा देता था, अब दोबारा शुरू होगा। इससे देश में भविष्य के खुफिया अधिकारियों के लिए भाषाई आधार मजबूत होगा।
यूनिट 8200: साइबर इंटेलिजेंस में क्रांति
इज़रायल की साइबर खुफिया इकाई यूनिट 8200 के विशेषज्ञ भी अब इस सांस्कृतिक और भाषाई प्रशिक्षण का हिस्सा होंगे।
इससे साइबर कम्युनिकेशन में आने वाली भाषा और संदर्भ की बाधाएं दूर होंगी। खासकर हूती और ईरानी प्रॉक्सी नेटवर्क के संचार को समझना आसान होगा।
हूती संचार की जटिलताएं
इजरायली खुफिया विभाग को हूती विद्रोहियों की भाषा, बोली और संचार शैली समझने में मुश्किल आती रही है। उदाहरण के तौर पर, जून 2025 में एक हूती सैन्य प्रमुख की हत्या का प्रयास कथित तौर पर असफल हो गया क्योंकि उसकी संवाद शैली में “कत” (Qat) नामक नशीली पत्तियों के सेवन के कारण स्पष्टता नहीं थी। इस चुनौती को देखते हुए भाषा प्रशिक्षण को प्राथमिकता दी जा रही है।
सांस्कृतिक प्रशिक्षकों की नियुक्ति
खास बात यह है कि इज़रायल अब अरबी भाषी समुदायों से विशेषज्ञ प्रशिक्षकों को नियुक्त कर रहा है, ताकि अधिकारी केवल भाषा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक प्रतीकों, इशारों और बोलियों को भी बेहतर समझ सकें।
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार:
“हम अपने सैनिकों को अरब गाँवों में पले-बढ़े बच्चों में नहीं बदल सकते, लेकिन हम उन्हें ऐसे स्तर पर प्रशिक्षित कर सकते हैं कि वे गहराई से समाज को देख और समझ सकें।”
दीर्घकालिक रणनीति: हर ब्रिगेड अफसर को बनाना “कल्चरल एक्सपर्ट”
इजरायली डिफेंस फोर्स का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर ब्रिगेड और डिवीजन स्तर का खुफिया अफसर:
अरबी में धाराप्रवाह हो।
इस्लामी मान्यताओं, रीति-रिवाजों और स्थानीय बोली का विश्लेषण कर सके।
वैश्विक संदर्भ और रणनीतिक बढ़त
इस पहल का महत्व केवल इज़रायल तक सीमित नहीं है। यह एक वैश्विक ट्रेंड का संकेत है कि अब खुफिया युद्ध सिर्फ तकनीक या हथियारों से नहीं लड़े जाएंगे, बल्कि भाषा, संस्कृति और मनोविज्ञान जैसी सॉफ्ट स्किल्स के माध्यम से जीते जाएंगे।
🔹 भारत, अमेरिका, ब्रिटेन जैसी शक्तियां पहले से ही सांस्कृतिक खुफिया को अपने ऑपरेशनल स्ट्रक्चर में जगह दे रही हैं।
सामने आने वाली संभावित चुनौतियां
सांस्कृतिक सेंसेटिविटी:
इस्लाम और अरबी संस्कृति के अध्ययन को संतुलित और सम्मानजनक तरीके से प्रस्तुत करना जरूरी है।
राजनीतिक विरोध:
इज़रायल में यह कदम कुछ दक्षिणपंथी समूहों के विरोध का कारण बन सकता है।
बजट और संसाधन:
TELEM जैसे प्रोग्राम को दोबारा शुरू करना और बड़े पैमाने पर प्रशिक्षकों की नियुक्ति में भारी लागत आएगी।
खुफिया एजेंसियों का नया युग
इज़रायल की यह रणनीति दर्शाती है कि खुफिया क्षेत्र में जीत केवल तकनीकी श्रेष्ठता से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक समझ और भाषाई कौशल से भी हासिल की जाती है। यह निर्णय न केवल इज़रायल की सुरक्षा को मजबूती देगा, बल्कि भविष्य के खुफिया संचालन की परिभाषा को भी पुनर्परिभाषित करेगा।