
SHO, SSP, DM summoned by Allahabad High Court in Gangster Act misuse case
गैंगस्टर एक्ट के दुरुपयोग पर हाईकोर्ट की फटकार: पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को व्यक्तिगत उपस्थिति का आदेश
न्याय की मर्यादा बनाम पुलिस की मनमानी: क्या उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर एक्ट का हो रहा है राजनीतिक दुरुपयोग?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैंगस्टर एक्ट के दुरुपयोग पर कड़ा रुख अपनाते हुए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को तलब किया। जानें इस मामले में न्यायपालिका की भूमिका, सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश और उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था पर क्या सवाल उठे हैं।
Lucknow, (Shah Times)।इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक हालिया टिप्पणी ने एक बार फिर देश के आपराधिक न्याय प्रणाली की कार्यशैली और विधि के शासन की स्थिति पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक क्रियाकलाप (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के बार-बार दुरुपयोग पर कड़ी आपत्ति जताते हुए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में तलब किया है।
इस मामले में मंशाद उर्फ सोना नामक आरोपी को लंबे समय से जेल में रखने के लिए कथित तौर पर बार-बार उसी आधार पर गैंगस्टर एक्ट लगाया गया, जिसे अदालत ने ‘कानून का सरासर दुरुपयोग’ करार दिया।
🧾 मामले की पृष्ठभूमि
मई 2025 से जेल में बंद मंशाद के वकील ने दलील दी कि गैंगस्टर एक्ट का इस्तेमाल पहले से दर्ज पुराने मामलों को आधार बनाकर किया गया। यह आरोप लगाया गया कि अभियोजन पक्ष ने जानबूझकर इस एक्ट का बार-बार प्रयोग किया ताकि अभियुक्त की जमानत को रोका जा सके और उसे जेल में बनाए रखा जाए।
जब कोर्ट ने सहायक सरकारी अधिवक्ता (AGA) से पूछा कि पुराने मामलों के आधार पर एक्ट क्यों दोहराया गया, तो संतोषजनक उत्तर नहीं दिया जा सका। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि आरोपी के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ और प्रशासनिक विवेक का अभाव रहा।
⚖️ अदालत की तीखी टिप्पणी और आदेश
कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि:
SHO का आचरण गैंगस्टर एक्ट के ‘सरासर दुरुपयोग’ को दर्शाता है।
SSP और DM ने UP Gangsters Rules, 2021 के तहत विवेकपूर्ण अनुमति देने में घोर लापरवाही की।
SHO, SSP और DM को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होकर स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया गया है।
आरोपी को न्यायिक अंतरात्मा के अनुरूप जमानत दी गई है।
🧠 संवैधानिक प्रश्न और न्यायपालिका की भूमिका
यह मामला न केवल एक व्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा है, बल्कि यह पुलिस और प्रशासनिक कार्यप्रणाली की जवाबदेही से भी जुड़ा है। संविधान का अनुच्छेद 21 – “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार” – ऐसे मामलों में सबसे बड़ा आधार बनता है।
जब राज्य का पुलिस तंत्र अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगे, और प्रशासन उसे आंख मूंद कर समर्थन दे, तो लोकतंत्र के स्तंभ हिलने लगते हैं। यह न्यायपालिका की भूमिका को और अधिक महत्वपूर्ण बना देता है।
📜 सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण और दिशानिर्देश
यह ध्यान रखना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही गैंगस्टर एक्ट के मनमाने प्रयोग पर गंभीर चिंता व्यक्त कर चुका है।
2024 में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को स्पष्ट और विवेकाधीन दिशानिर्देश बनाने के निर्देश दिए थे।
2 दिसंबर 2024 को उत्तर प्रदेश सरकार ने विस्तृत चेकलिस्ट और प्रक्रिया जारी की थी।
SHUATS यूनिवर्सिटी केस में सुप्रीम कोर्ट ने इन दिशा-निर्देशों को वैधानिक वैधता दी थी।
फिर भी, इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश से स्पष्ट है कि जमीनी स्तर पर इन निर्देशों का पालन नहीं हो रहा है।
🔍 निष्कर्ष और सुझाव
इस घटनाक्रम के तीन प्रमुख संदेश हैं:
- पुलिस प्रशासन की जवाबदेही और न्यायिक निगरानी अनिवार्य है।
- गैंगस्टर एक्ट का उद्देश्य संगठित अपराध को रोकना है, न कि राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिशोध का औजार बनाना।
- राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि दिशा-निर्देशों का पालन केवल कागजों में न रह जाए, बल्कि वास्तविक व्यवहार में उतरे।
📣 अंतिम टिप्पणी
न्यायपालिका का यह हस्तक्षेप समयोचित है और यह जनता में भरोसा बहाल करता है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है – चाहे वह SHO हो या जिला अधिकारी। उत्तर प्रदेश जैसी संवेदनशील राजनीतिक-प्रशासनिक भूमि पर जबरन कानून का इस्तेमाल लोकतंत्र को कमजोर करता है।
अब यह देखना होगा कि अगली सुनवाई में कोर्ट को क्या जवाब मिलता है और क्या राज्य सरकार अपनी नीतियों में व्यावहारिक बदलाव लाने को तैयार है?