
कश्मीर में धारा 370 प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सबसे बड़ी देन
370 पर धीमी सुनवाई से समझा जा सकता है कि मोदी सरकार ने कितना बड़ा ब्लंडर किया है
अमित शाह बताएं कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 370 का समर्थन क्यों किया था
लखनऊ । अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम (Shahnawaz Alam) ने गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) के नेहरू पर बयान को देश को गुमराह करने वाला और अपनी नाकामी को छुपाने की कोशिश बताया है। उन्होंने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) और पटेल द्वारा लाए गए 370 के प्रावधान के कारण ही कश्मीर भारत का हिस्सा बना पाया था। नेहरू की यह इतनी बड़ी उपलब्धि थी कि सारे सदन ने इसका समर्थन किया जिसमें जनसंघ नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी शामिल थे।
कांग्रेस मुख्यालय से जारी बयान में शाहनवाज़ आलम (Shahnawaz Alam) ने कहा कि कश्मीर (Kashmir) से धारा 370 खत्म करने का वैध तरीका यह था कि पहले राज्य विधान सभा इसके लिए एक तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करती और उसे लोकसभा को भेजती। क्योंकि आर्टिकल 3 भी संसद को यह शक्ति नहीं देता है कि वह किसी संघात्मक और लोकतांत्रिक राज्य को केंद्र शासित राज्य जैसे
कम प्रतिनिधित्व वाली इकाई जैसी व्यवस्था में बदल सके। इसलिए 370 की समाप्ति असंवैधानिक है।
शाहनवाज़ आलम (Shahnawaz Alam) ने कहा कि इसीलिए हम पाते हैं कि सत्ता पक्ष संसद और उसके बाहर तो 370 पर बहुत सक्रिय दिखता है लेकिन आचार्यजनक रूप से 370 के मुद्दे पर 2019 में दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट हद से ज़्यादा सुस्ती से सुनवाई कर रहा है। उसके इस रुख से मोदी सरकार द्वारा कश्मीर में किये गए ‘ब्लंडर’ को समझा जा सकता है।
व्हाट्सएप पर शाह टाइम्स चैनल को फॉलो करें
शाहनवाज़ आलम (Shahnawaz Alam) ने कहा कि आरएसएस और भाजपा (RSS and BJP) जम्मू कश्मीर को सांप्रदायिक आधार पर तीन हिस्सों- जम्मू, कश्मीर (Jammu-Kashmir) और लद्दाख (Ladakh) में बांटना चाहते हैं। ऐसा करके भाजपा जम्मू के 6 में से 3 मुस्लिम बहुल ज़िलों डोडा, पुंच और राजौरी में फिर से 1947 जैसे जनसंहार का माहौल बनाना चाहती है। जब डोगरा शासन समर्थित प्रजा परिषद और आरएसएस ने मुस्लिमों का जनसंहार करके जम्मू की डेमोग्राफी को बदला था।
उन्होंने कहा कि यह कश्मीर का दुर्भाग्य होगा कि 1947 में तो उसने धर्म के आधार पर हुए बंटवारे को नकार दिया लेकिन 75 साल बाद उसे सांप्रदायिक आधार पर दिल्ली की सरकार ही बाँटने पर उतारू है।







