
A student leader campaigning during Delhi University Students Union (DUSU) Election 2025, with ABVP scarf and massive student crowd in support.
NSUI से छिनी सत्ता, ABVP के आर्यन मान अध्यक्ष बने
छात्र राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति तक: DUSU ने दिए बड़े नेता
फीस वृद्धि से महिला सुरक्षा तक: DUSU चुनाव में गूंजे मुद्दे
दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव 2025 में ABVP ने NSUI का गढ़ तोड़ दिया। अध्यक्ष पद पर आर्यन मान की ऐतिहासिक जीत, जानिए इसका राजनीतिक असर।
New Delhi ,(Shah Times)। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (DUSU) चुनाव हमेशा से छात्र राजनीति का दर्पण रहे हैं। इस बार का मुकाबला बेहद दिलचस्प और ऐतिहासिक साबित हुआ। NSUI, जिसे डीयू की पारंपरिक सत्ता माना जाता था, उसके हाथ से कमान निकल गई और ABVP के उम्मीदवार आर्यन मान ने अध्यक्ष पद पर कब्ज़ा कर लिया। यह सिर्फ़ एक चुनावी नतीजा नहीं, बल्कि भारतीय छात्र राजनीति और राष्ट्रीय राजनीति के आने वाले दौर का संकेत भी है।
आर्यन मान की धमाकेदार एंट्री
इस चुनाव में ABVP के उम्मीदवार आर्यन मान की जीत ने सबको चौंका दिया।
आर्यन मान को मिले 12,532 वोट
NSUI की जोसलीन नंदिता चौधरी को मिले 6,132 वोट
उपाध्यक्ष पद NSUI के राहुल झांसला यादव ने जीता (13,636 वोट)
सचिव और सह सचिव पद पर भी कड़ा मुकाबला रहा
शुरुआत से ही आर्यन मान ने बढ़त बनाए रखी और अंत तक अपने प्रतिद्वंदी को बड़े अंतर से पछाड़ दिया।
कौन हैं आर्यन मान?
आर्यन मान का बैकग्राउंड इस चुनाव को और दिलचस्प बनाता है।
हरियाणा के एक प्रभावशाली बिज़नेस फैमिली से ताल्लुक रखते हैं।
पिता सिकंदर मान शराब कारोबार से जुड़े बड़े नाम हैं।
दादा और ताया स्थानीय राजनीति और कांग्रेस नेता भूपेंद्र हुड्डा से निकट संबंध रखते रहे हैं।
शिक्षा: हंसराज कॉलेज से ग्रेजुएशन, फिलहाल एमए कर रहे हैं।
खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय।
फुटबॉल के जुनूनी खिलाड़ी।
चुनाव प्रचार में सबसे बड़ी हलचल तब मची, जब बॉलीवुड एक्टर संजय दत्त ने उनके समर्थन में अपील की।
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ABVP का कैंपेन और वादे
ABVP ने इस बार कैंपेनिंग में तकनीक और सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया। आर्यन मान ने छात्रों से ये वादे किए:
कैंपस में मुफ्त वाई-फाई
दिव्यांग छात्रों के लिए एक्सेसिबिलिटी ऑडिट
रिसर्च स्कॉलर्स को फाइनेंशियल सपोर्ट
खेल सुविधाओं का विस्तार
स्टूडेंट्स के लिए मेट्रो पास सस्ता करना
इन मुद्दों ने सीधे छात्र हितों को छुआ और वोटरों पर असर डाला।
NSUI की हार: क्या है कारण?
NSUI के लिए यह हार बड़ा झटका है।
NSUI लंबे समय से डीयू की राजनीति में मज़बूत रही है।
लेकिन इस बार संगठनात्मक स्तर पर कमजोरी दिखी।
सोशल मीडिया रणनीति ABVP से पीछे रह गई।
NSUI की जोसलीन नंदिता चौधरी, अपनी लोकप्रियता के बावजूद, मुद्दों को पर्याप्त रूप से हाईलाइट नहीं कर पाईं।
DUSU का ऐतिहासिक महत्व
स्थापना: 1954
उद्देश्य: छात्रों की आवाज़ को मंच देना
प्रमुख नेता जो यहाँ से निकले:
अरुण जेटली
सुषमा स्वराज
अजय माकन
अलका लांबा
विजय गोयल
प्रवेश वर्मा
यानी, DUSU चुनाव सिर्फ़ छात्र राजनीति नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की नर्सरी भी है।
लिंगदोह समिति और सुधार
2006 में लिंगदोह समिति की सिफारिशों ने डीयू चुनाव को नई दिशा दी।
खर्च सीमा ₹5,000 तय
आयु सीमा और शैक्षणिक योग्यता शर्तें
पोस्टरबाज़ी पर पाबंदी
सोशल मीडिया और मुद्दा-आधारित चुनाव को बढ़ावा
छात्र राजनीति और राष्ट्रीय राजनीति का रिश्ता
DUSU चुनावों से निकले नेता अक्सर संसद और विधानसभा तक पहुंचे हैं। यही वजह है कि हर बड़ी पार्टी यहाँ अपने युवा चेहरे उतारती है।
ABVP की जीत का असर 2025 और 2029 के आम चुनावों तक जा सकता है।
NSUI की हार कांग्रेस की युवा राजनीति की कमजोरी का संकेत है।
SFI और AISA गठबंधन को अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
छात्रों के मुद्दे: चुनाव से बड़ा सवाल
छात्रों ने इस बार किन मुद्दों को अहमियत दी?
फीस वृद्धि
महिला सुरक्षा
नई शिक्षा नीति (NEP)
हॉस्टल और लाइब्रेरी सुविधाएँ
रोजगार और इंटर्नशिप अवसर
आर्यन मान की जीत इस बात का सबूत है कि छात्र अब सिर्फ़ नारेबाज़ी नहीं, बल्कि ठोस नीतियों और सुविधाओं पर वोट करते हैं।
सोशल मीडिया की भूमिका
इस बार का चुनाव ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप पर लड़ा गया।
मीम वॉर
लाइव डिबेट
इंस्टा रील्स पर वादे
यूट्यूब इंटरव्यू
ABVP की डिजिटल स्ट्रैटेजी ज़्यादा असरदार रही।
भविष्य की राजनीति का संकेत
ABVP के मज़बूत संगठन ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में अपनी जड़ें और गहरी कर लीं।
NSUI को अपनी रणनीति नए सिरे से बनाने की ज़रूरत है।
छात्र राजनीति का केंद्र अब क्लासरूम से सोशल मीडिया और पॉलिसी-आधारित डिबेट में शिफ्ट हो चुका है।
डीयू छात्रसंघ (DUSU) चुनाव: अहम तथ्य और ताज़ा परिप्रेक्ष्य
दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ (DUSU) चुनाव की शुरुआत वर्ष 1954 में हुई थी। तब से यह राजधानी की सियासत में छात्रों की आवाज़ और राष्ट्रीय राजनीति की नर्सरी के रूप में पहचाना जाता रहा है।
कितने पदों के लिए होता है चुनाव?
डीयू में छात्रसंघ चुनाव चार प्रमुख पदों पर होता है — अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और सह सचिव।
कौन डाल सकता है वोट?
इस चुनाव में केवल दिल्ली यूनिवर्सिटी के नियमित स्नातक और स्नातकोत्तर छात्र ही मतदान करने के पात्र होते हैं।
प्रमुख छात्र संगठन
हर साल चुनावी जंग में प्रमुख छात्र संगठनों की भूमिका रहती है। इनमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI), ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) सबसे सक्रिय माने जाते हैं।
खर्च सीमा और नियम
लिंगदोह समिति की सिफारिशों के आधार पर चुनाव में अधिकतम खर्च सीमा ₹5,000 तय की गई है।
राष्ट्रीय नेता भी निकले हैं यहाँ से
DUSU से कई दिग्गज राष्ट्रीय नेता निकले हैं। इनमें पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जैसे नाम शामिल हैं।
मतदान प्रतिशत
औसतन 35 से 45 प्रतिशत छात्र इस चुनाव में अपना वोट डालते हैं।
हालिया मुद्दे
इस बार भी चुनावी बहसों और घोषणापत्रों में फीस वृद्धि, महिला सुरक्षा और नई शिक्षा नीति (NEP) जैसे मुद्दे प्रमुखता से छाए हुए हैं।
निष्कर्ष
दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव 2025 के नतीजे सिर्फ़ डीयू के छात्रों की आवाज़ नहीं हैं, बल्कि आने वाली भारतीय राजनीति के रुझानों का भी आईना हैं। आर्यन मान की जीत NSUI के पारंपरिक क़िले में सेंध है और ABVP की रणनीतिक सफलता। यह साफ़ है कि छात्र राजनीति अब और परिपक्व हो रही है—जहाँ जाति या विचारधारा से अधिक, सुविधाएँ, नीतियाँ और पारदर्शिता अहम हो गई है।




