
डोनाल्ड ट्रंप की नई पाकिस्तान नीति, चीन की प्रतिक्रिया और भारत के लिए इसके मायने
भारत, चीन और पाकिस्तान के दरमियान डोनाल्ड ट्रंप के कूटनीतिक खेल का जायजा
पाकिस्तान के समर्थन में डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिका-चीन बैलेंसिंग खेल, चीन की प्रतिक्रिया और भारत-पाकिस्तान के परमाणु शक्ति संतुलन पर गहन विश्लेषण।
दक्षिण एशिया की बदलती रणनीतिक तस्वीर
डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में आई गर्माहट ने वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य को एक बार फिर हिला दिया है। पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर के ट्रंप के साथ गहरे रिश्ते और उनकी अमेरिका में हो रही लॉबिंग से चीन की रणनीतिक चिंताएं बढ़ गई हैं। जबकि पाकिस्तान परंपरागत रूप से चीन का “सदाबहार सहयोगी” माना जाता रहा है, अब सवाल यह उठता है कि क्या चीन इस नए समीकरण को बर्दाश्त करेगा? और क्या इस बदलाव से एशिया का शक्ति संतुलन प्रभावित होगा?
पाकिस्तान की परमाणु धमकियां: कितना दम है असल में?
पाकिस्तान की ओर से भारत के आर्थिक ठिकानों जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज की जामनगर रिफाइनरी और महत्वपूर्ण बांधों को निशाना बनाने की धमकी ने क्षेत्रीय तनाव बढ़ा दिया है। खास बात यह है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने अमेरिका की जमीन से ‘परमाणु संपन्न देश’ होने का हवाला देते हुए आधी दुनिया को धमकी दी है।
लेकिन अगर आंकड़ों पर गौर करें तो भारत और पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की संख्या में अब फर्क काफी कम रह गया है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, भारत के पास 180 परमाणु वारहेड हैं जबकि पाकिस्तान के पास 170।
भारत के परमाणु हथियारों की ताकत
एयरक्राफ्ट-बेस्ड वारहेड: 48
लैंड-बेस्ड वारहेड: 80
सी-बेस्ड वारहेड: 24
स्टोर किए हुए वारहेड: 28
भारत की अग्नि-V मिसाइल 5,000 किमी से अधिक की मारक क्षमता रखती है, और अग्नि-VI पर काम चल रहा है, जो 6,000 किमी से ज्यादा रेंज की है।
पाकिस्तान की परमाणु स्थिति
एयरक्राफ्ट-बेस्ड वारहेड: 35
लैंड-बेस्ड वारहेड: 126
स्टोर किए हुए वारहेड: 8
कोई सी-बेस्ड हथियार नहीं
पाकिस्तान बाबर-3 SLCM जैसे मिसाइल पर काम कर रहा है, जो सी-बेस्ड परमाणु हथियार होंगे, पर अभी तक वे सक्रिय नहीं हैं।
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24 सालों का परमाणु विकास: भारत ने पीछे छोड़ा पाकिस्तान
2000 में भारत के पास 35 परमाणु वारहेड थे, जो 2024 तक बढ़कर 172 हो गए। वहीं पाकिस्तान के वारहेड 48 से 170 हुए। साल 2000 में पाकिस्तान के पास भारत से ज्यादा परमाणु वारहेड थे, लेकिन अब भारत ने इसे पीछे छोड़ दिया है।
इस बढ़त के बावजूद पाकिस्तान की धमकियां, खासकर अमेरिका की जमीन से, रणनीतिक तौर पर कमजोर और अपरिपक्व नजर आती हैं। एक पूर्व पेंटागन अधिकारी ने पाक आर्मी चीफ की तुलना “सूट में ओसामा बिन लादेन” से की है, जो पाकिस्तान के सामरिक और राजनीतिक नेतृत्व की गंभीर आलोचना है।
ट्रंप का पाकिस्तानी प्रेम और चीन की चिंता
डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ अमेरिकी संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। उनकी नीतियों ने पाकिस्तान को अप्रत्याशित रणनीतिक सहयोगी के रूप में उभारा है। ट्रंप ने पाकिस्तानी वस्तुओं पर टैरिफ 29% से घटाकर 19% किया और तेल खनन को बढ़ावा दिया।
यह बदलाव, जो ट्रंप की पहली पारी की नीतियों से विपरीत है, चीन के लिए चिंता का विषय बन गया है। पाकिस्तान की अमेरिका के साथ बढ़ती दोस्ती चीन के लिए सीधे तौर पर चुनौती है, खासकर जब चीन ने CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) और BRI (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) में भारी निवेश किया है।
चीन की सधी हुई प्रतिक्रिया
बीजिंग में पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर का हालिया दौरा कुछ खास प्रभावित नहीं कर पाया। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उनसे मुलाकात नहीं की, जो चीन की सतर्कता को दर्शाता है।
चीन के रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के ‘राजनीतिक नॉइस’ के बावजूद पाकिस्तान अपनी आर्थिक और सैन्य निर्भरता के कारण चीन से दूर नहीं हो सकता। परन्तु अगर पाकिस्तान अमेरिका के साथ स्थायी सैन्य गठजोड़ करता है, तो यह चीन के लिए अस्वीकार्य होगा।
आर्थिक दबाव और रणनीतिक दांव
चीन पाकिस्तान पर आर्थिक दबाव बनाए रखने के लिए अपने कर्ज का उपयोग कर सकता है। पाकिस्तान पहले ही भारी कर्ज के बोझ तले दबा है, जिसमें चीन का हिस्सा सबसे बड़ा है। ग्वादर बंदरगाह जैसे रणनीतिक परियोजनाओं पर चीन की पकड़ मजबूत बनी हुई है।
यदि पाकिस्तान अमेरिका के पक्ष में खड़ा होता है, तो यह न केवल चीन-पाकिस्तान संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को भी नया रूप देगा।
दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन: क्या आएगा बड़ा बदलाव?
ट्रंप के इशारे पर चल रहे पाकिस्तानी हुक्मरानों को चीन तब तक बर्दाश्त करेगा जब तक वे अपने अमेरिका-समर्थक कदमों से चीनी राष्ट्रीय हितों को नुकसान नहीं पहुंचाते।
पाकिस्तान की दोहरी नीति ने चीन को सतर्क कर दिया है, पर फिलहाल चीन इस संतुलन को कायम रखने का प्रयास करेगा। यदि ट्रंप अमेरिका के लिए पाकिस्तान में स्थायी सैन्य अड्डा स्थापित कर पाते हैं, तो यह चीन के लिए ‘आयरन ब्रदर’ का नया बॉस स्वीकार करने जैसा होगा, जिसे वह आसानी से बर्दाश्त नहीं करेगा।
भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच जटिल समीकरण
दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन बहुत नाजुक हो गया है। भारत की परमाणु ताकत में इजाफा और पाकिस्तान की परमाणु धमकियों के दरमियान, चीन और अमेरिका के दरमियान पाकिस्तान को लेकर कूटनीतिक खेल चल रहा है।
चीन पाकिस्तान को अपने ऑर्बिट में रखने के लिए आर्थिक और सैन्य दबाव बनाए रखेगा, वहीं अमेरिका पाकिस्तान को चीन की चुनौती देने के लिए रणनीतिक सहयोगी के रूप में देखता है। इस जटिल समीकरण में एशिया का पावर बैलेंस डगमगाने के कगार पर है।