
पवन सिंह
धर्म (Religion) के पास केवल एकमात्र सबसे शक्तिशाली हथियार है और वह है भय…….ईश्वर का डर दिखाकर पाखंड, मोक्ष, नरक, जन्नत, दोजख़, हेवेन (HEAVEN) की नुमाइश सजाकर जिस तरह से ठगी का यह धंधा बिना किसी टैक्स के चल रहा है, वह हमारी मूर्खताओं की पराकाष्ठा है….धर्म और धर्म के ठेकेदार सबसे पहले आपकी बुद्धि और आपके विवेक का अपहरण करके आपको मूर्खों की मजबूत जमात में शामिल करा देते हैं और फिर आप और आप के बाद आपकी अगली पीढ़ी पूरी जिदंगी इससे कभी बाहर नहीं निकल पाती है। लेख में दो पिक्चर हैं और दोनों हमारी मूर्खताओं के जीवंत उदाहरण हैं
(1) एक फोटो है अमेरिका (America) के न्यूयॉर्क (New York) में चेस्टनट रिज काउंटी पार्क (Chestnut Ridge County Park) की यहां एक प्राकृतिक गुफा है जिसके नीचे बराबर आग जलती रहती है यह स्थान किसी देवी, देवता, ईसा और मूसा का स्थान नहीं है इसे ‘इटरनल फ्लेम फॉल्स’ (Eternal Flame Falls) कहा जाता है अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी (Indiana University of America) के वैज्ञानिकों ने शोध किया तो पता चला कि धरती के भीतर मौजूद मीथेन गैस लगातार बाहर निकल रही है और वह ज्वाला जल रही है यही नहीं, पूरी दुनियां में अनेक ऐसे स्थल हैं जहां धरती के अंदर प्राकृतिक गैस की मौजूदगी के कारण वहां ज्वाला जलती रहती है।
(2) दूसरी पिक्चर है जिसमें एक पत्थर है जो जमीन के नीचे गई हाई प्रेशर गैस पाइप लाइन के ऊपर लगा है इसकी भी पूजा-अर्चना शुरू कर दी गई है
एशियाई देशों (Asian countries) में कुछ देश ऐसे हैं जहां विज्ञान और शोधार्थियों से पहले पाखंडियों की जमात पहुंचकर मजबूत घेराबंदी कर चुकी होती है और सत्ताएं अगर इसी घेराबंदी को संरक्षण और संवर्धन देने लगें तो फिर “धार्मिक वायरस” का मानसिक सोच पर हमला इतना तेज और सशक्त होता है कि आदमी इससे इतर न सोच पाता है और न ही देख पाता है।
विश्व के कई यूरोपीय देशों में तापमान में गिरावट के बाद प्राकृतिक रूप से लिंगाकार आकृतियां बनती रहती हैं। उदाहरण स्वरुप ऑस्ट्रिया (Austria) के आइसरिजनवेल्ट (Iserienwelt) इलाके में एक विशाल गुफा है जिसमें बर्फ से बहुत ही बड़ी लिंगाकार आकृति बनती है। इसके साथ इस आकृति के अलावा अनेक छोटे-छोटे और भी कई लिंगाकार आकृतियां बनती हैं। इन आकृतियों का र्निमाण मई के महीने से शुरू हो कर अक्टूबर तक चलता है और इसके बाद ये पिघल जाती हैं। इसी तरह से स्लोवाकिया में दोबसीना में भी लिंगाकार आकृतियां बनती हैं। इस लिंगाकार आकृति को वर्ष, 1870 में रुफीनी नाम के इंजीनियर ने स्लोवाकिया के दोबसीना की एक गुफा में खोज था जो कि आज एक यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में दर्ज है। इस गुफा का नाम दोबसिंस्का है और यहां भी बर्फ से लिंगाकार आकृति बनती है।
इसी तरह से स्विट्जरलैंड (Switzerland) में मिटेलालालिनना का एक इलाका है। यहां बर्फ की खूबसूरत लंबी गुफा है जिसके एक छोर पर बर्फ की लिंगाकार आकृतियां आकृति र्निमित होती हैं। यह गुफा करीब 70 फुट लंबी है और यहां एक विशाल लिंगाकार आकृति बनती है। इसे फेयरी ग्लेशियर (fairy glacier) कहा जाता हैं।इसी तरह से अलास्का में मेंडेनहॉल में भी बर्फ सें लिंगाकार आकृति बनती है। अलास्का बेहद ठंडा इलाका है और यहां साल भर बर्फ जमी रहती हैं। यहां पर अनेक लिंगाकार आकृतियां बनती रहती हैं इसमें से किसी भी देश में धार्मिक पागलपन का उन्माद नहीं है वहां बच्चे बच्चे को पता है कि ये आकृतियां स्वत: ही मौसम द्वारा निर्मित होती हैं और मौसम के बदलते ही गायब हो जाती हैं न जनता ने कभी पाखंड को ओढ़ा और न सरकार ने ओढ़ने दिया…….
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हमारे यहां आजादी के बाद से आज तक कभी साइंटिफिक टेंपरामेंट (scientific temperament) ही डेवलप नहीं होने दिया गया मूर्खताओं के नित नये नये रिकार्ड बन रहे हैं जमीन में एक 200 वाट का बल्ब दबा दिखा तो लोग उसे ही ईश्वर समझकर लगे चढ़ावा चढ़ाने झांसी के एक इलाके में एक लाल” साहेब रहते हैं लाल साहू साहेब की बीबी और दो बच्चे हैं चतुर्थश्रेणी कर्मचारी हैं इनके फ्रिज में कुछ सालों से लिंगाकार आकृति बनने लगी तो साहेब को साक्षात दर्शन होने लगे मोहल्ले के लोगों ने फ्रिज ही पूज डाला बीबी अपने बच्चों को लेकर घंटा-घंटी बजाने लगी बेचारा फ्रिज ही धर्म स्थल हो गया अब इस मानसिक स्तर से आप क्या खाक लड़ेंगे फ्रिज और फ्रिजर ठहरा साइंस का आविष्कार लेकिन बुद्धि में जब धर्म का जहर प्रवेश कर जाए तो क्या क्या नहीं करा सकता है इसका “फ्रिजात्मक भक्ति” एक जीवंत उदाहरण है……
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एक आंटी जी हैं, यूट्यूब पर बर्फ से लिंगाकार आकृति बनाना सिखाती हैं एक बड़ी कटोरी, एक छोटी कटोरी, एक ग्लास में पानी भरा फ्रीजर में जमाया छोटी कटोरी की बर्फ को पलट कर रखा उसके ऊपर बड़ी कटोरी की बर्फ रखी और फिर ग्लास से बर्फ निकाली और ऊपर धर दी लगे लोग जय-जयकार करने…अब कौन “माई का तर्कवादी लाल” आएगा मैदान में लड़ने?!!!……फ़िलहाल गुफाओं में बर्फीले पानी की बूंदें लगातार टपकती रहती हैं और एक जगह पर एकत्र होती रहती हैं। इन्हीं बूंदों से धीरे-धीरे बर्फ की लिंगाकार आकृति बन जाती है अब आप इसे जो भी मान लें क्या फर्क पड़ता है।
एक देश है अज़रबैजान। यहां के एक इलाके यानरदाग में विगत 4000 सालों से लगातार आग जल रही है। यानर दाग में आग जलने का कारण पृथ्वी की सतह के नीचे से निकलने वाली हाइड्रोकार्बन गैसें हैं। भू-गर्भ वैज्ञानिक के अनुसार अजरबैजान में काफी मात्रा में प्राकृतिक गैस मौजूद है। गैस का जब अधिक दबाव होता है तो वह सतह पर लीक हो जाती है और उनमें आग लग जाती है। ऐसा अजरबैजान के कई इलाकों में होता रहता है। यही वजह है कि अजरबैजान को लैंड ऑफ फायर भी कहा जाता है।
इस आग को लोग बुझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह नहीं बुझती है। हालांकि, सतह पर रिसी गैस जब समाप्त हो जाती है, तब लगी आग अपने-आप बुझ भी जाती है। हालांकि, यानरदाग में ऐसा अब तक नहीं हुआ है और यहां आग 4000 सालों से जल रही है…
खैर, लब्बोलुआब यही है कि जिन देशों में धार्मिक पागलपन नहीं है वो और जिन देशों में धार्मिक पागलपन और पाखंड है, वहां की प्रगति का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।