
Bihar Election 2025 political analysis with parties, ECI reforms, alliances
बिहार चुनाव 2025: गठबंधन समीकरण और जनता का रुख
जनादेश की लड़ाई: नीतिगत वादे, विवाद और बदलाव की उम्मीद
चुनावी रणभूमि: आरक्षण बनाम विकास का नया विमर्श
📍 पटना, 📅 6 अक्टूबर 2025
✍️ आसिफ़ ख़ान
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की अधिसूचना जारी होते ही राज्य की सियासत तेज़ हो गई है। 243 सीटों पर दो चरणों में मतदान होगा और परिणाम 14 नवंबर को आएंगे। यह चुनाव सिर्फ़ सत्ता बदलने का नहीं बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता का भी बड़ा इम्तिहान है। निर्वाचन आयोग ने 17 नए सुधार लागू किए हैं, जिससे पारदर्शिता और विश्वास की कसौटी पर चुनावी प्रक्रिया को परखा जाएगा।
चुनावी कार्यक्रम और ढांचा
बिहार की 243 सीटों के लिए चुनावी कार्यक्रम सघन है। पहले चरण का मतदान 6 नवंबर और दूसरे चरण का मतदान 11 नवंबर को होगा। नतीजे 14 नवंबर को घोषित होंगे। इस बार 7.43 करोड़ मतदाता लोकतंत्र की इस सबसे बड़ी परीक्षा में शामिल होंगे। महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों के लगभग बराबर है, जो दोनों प्रमुख गठबंधनों को महिला-केंद्रित नीतियों पर ध्यान देने के लिए मजबूर करती है।
निर्वाचन आयोग ने हर बूथ पर औसतन 818 वोटरों का प्रबंध किया है, जो राष्ट्रीय औसत से कम है। इसका मक़सद भीड़ प्रबंधन और सुरक्षित मतदान सुनिश्चित करना है। इस चुनाव में 8.5 लाख से अधिक अधिकारियों की तैनाती की जाएगी।
निर्वाचन आयोग के सुधार और नवाचार
इस बार बिहार चुनाव आयोग के लिए प्रयोगशाला बन गया है।
पहली बार सभी बूथों पर शत-प्रतिशत लाइव वेबकास्टिंग होगी।
फॉर्म 17C और ईवीएम में अंतर दिखने पर वीवीपैट गिनती अनिवार्य होगी।
80 साल से अधिक उम्र के मतदाताओं को घर से मतदान की सुविधा मिलेगी।
नए ईपिक कार्ड 15 दिन के भीतर वितरित होंगे।
ये सुधार केवल प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए नहीं हैं बल्कि मतदाता के विश्वास को पुनर्जीवित करने की कोशिश भी हैं।
मतदाता सूची विवाद और राजनीतिक प्रतिक्रिया
चुनाव से पहले मतदाता सूची में विशेष संशोधन प्रक्रिया विवाद का कारण बनी। विपक्ष ने आरोप लगाया कि लाखों गरीब और वंचित तबकों के नाम सूची से हटाए गए। सत्ता पक्ष पर “संस्थागत लाभ” लेने का आरोप लगा। आयोग ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि सभी बदलाव पारदर्शी और कानूनी प्रक्रिया के तहत किए गए।
यह विवाद चुनाव की वैधता पर अविश्वास को दर्शाता है। अगर परिणाम नज़दीकी आए, तो यही मुद्दा सबसे बड़ी चुनौती बन सकता है।
राजनीतिक परिदृश्य और गठबंधन गतिकी
(a) सत्ताधारी गठबंधन
एनडीए में भाजपा और जदयू मुख्य घटक हैं। इनके साथ लोजपा (रामविलास), हम और उपेंद्र कुशवाहा का दल भी जुड़ा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व पर एंटी-इनकंबेंसी सबसे बड़ा खतरा है। छोटे सहयोगियों के असंतोष से सीटों पर असर पड़ सकता है।
(b) विपक्षी महागठबंधन
राजद, कांग्रेस, वामपंथी दल और वीआईपी इसके प्रमुख घटक हैं। तेजस्वी यादव को सीएम उम्मीदवार घोषित किया गया है। आंतरिक सीट बंटवारे की चुनौतियाँ ज़रूर हैं, लेकिन गठबंधन का एजेंडा स्पष्ट है—सामाजिक न्याय और आरक्षण।
(c) नई ताक़त
प्रशांत किशोर का “जन सुराज” आंदोलन तीसरा विकल्प बनकर उभरा है। पीके का जोर जाति और धर्म से परे विकास आधारित राजनीति पर है।
नीतिगत विमर्श और घोषणापत्र
महागठबंधन का वादा
आरक्षण सीमा को 70% तक बढ़ाने का प्रस्ताव
निजी शिक्षा संस्थानों में आरक्षण लागू करना
भूमिहीन परिवारों को ज़मीन देना
सरकारी ठेकों में पिछड़े वर्गों के लिए 50% हिस्सेदारी
एनडीए का एजेंडा
रोजगार और शिक्षा को केंद्र में रखना
हर ज़िले में फूड प्रोसेसिंग यूनिट
महिलाओं और युवाओं को विशेष योजना
“बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” विज़न
दोनों गठबंधनों ने अपने-अपने पत्ते खोल दिए हैं। एक ओर विकास और गवर्नेंस, दूसरी ओर सामाजिक न्याय और हिस्सेदारी। यही टकराव असली जनादेश तय करेगा।
जनता के मुद्दे और भावनाएँ
बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून-व्यवस्था इस चुनाव के मूल मुद्दे हैं। लेकिन जाति समीकरण और आरक्षण जैसे भावनात्मक विषय भी उतने ही निर्णायक होंगे। सीमांचल इलाक़े में ओवैसी की पार्टी का प्रभाव, दलित और पिछड़े वर्गों में बढ़ती उम्मीदें, और युवाओं की नाराज़गी इस चुनाव को और पेचीदा बना रही हैं।
संभावित नतीजे और निहितार्थ
243 सीटों में बहुमत का आंकड़ा 122 है। पिछली विधानसभा में दोनों गठबंधनों के बीच का अंतर बहुत कम था। इस बार छोटे दल और स्वतंत्र उम्मीदवार भी किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं।
यदि निर्वाचन आयोग के सुधार सफल होते हैं, तो यह चुनाव पूरे देश में चुनावी प्रक्रिया के नए मानक स्थापित करेगा। नतीजों से यह भी तय होगा कि बिहार स्थिर शासन की ओर बढ़ेगा या फिर से अस्थिर गठबंधनों की राजनीति में उलझा रहेगा।
नज़रिया
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 केवल राजनीतिक शक्ति परिवर्तन की लड़ाई नहीं है। यह लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता, सामाजिक न्याय की परिभाषा और विकास की दिशा को तय करने वाला जनादेश है।