
Indian national Nimisha Priya, sentenced to death in Yemen, receives temporary relief as diplomatic efforts continue – Shah Times
निमिषा प्रिया की फांसी टली, क्या कूटनीति दिलाएगी राहत?
ब्लड मनी ठुकराई गई, लेकिन प्रिया की फांसी पर अब भी टिकी हैं उम्मीदें
Shah Times Editorial
यमन में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को फांसी की सजा से बचाने की उम्मीदें अब भी कायम हैं, जानिए भारत के प्रयास और प्रिया के पास बचे 5 विकल्प।
भारतीय नर्स निमिषा प्रिया के मामले ने एक बार फिर वैश्विक मानवीय कूटनीति, शरिया कानून और अंतरराष्ट्रीय न्याय के संबंधों को चुनौतीपूर्ण स्थिति में ला खड़ा किया है। यमन में 2017 में हुई हत्या के इस मामले में पीड़ित परिवार द्वारा ब्लड मनी ठुकरा देना, न केवल कानूनी मोर्चे पर झटका है, बल्कि भारतीय कूटनीतिक प्रयासों के लिए भी गंभीर चुनौती बन चुका है।
ब्लड मनी का इनकार: क्यों महत्वपूर्ण है?
यमन में शरिया आधारित न्याय प्रणाली के अंतर्गत हत्या के मामलों में ब्लड मनी यानी ‘दीया’ एक स्वीकार्य समझौता होता है, जो मृतक के परिजनों और अभियुक्त के बीच सुलह का माध्यम बन सकता है। लेकिन जब मृतक तलाल अब्दो महदी के भाई अब्देलफत्ताह महदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे “न माफी स्वीकार करेंगे, न मुआवज़ा” – तो यह संकेत था कि वह किसी भी कीमत पर ‘खून का बदला खून’ के सिद्धांत पर अडिग हैं।
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प्रिया की सजा और प्रक्रिया का संक्षेप
निमिषा प्रिया को 2017 में यमन के एक नागरिक की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायिक परिषद तक, सभी न्यायिक स्तरों ने उसे मृत्युदंड की सजा सुनाई है। उसे 16 जुलाई 2025 को फांसी दी जानी थी, जिसे फिलहाल भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद स्थगित किया गया है।
क्या हैं निमिषा प्रिया के बचाव के विकल्प?
1. राष्ट्रपति की विशेष माफी
यमन के हौथी नियंत्रण वाली सरकार के अधीन राष्ट्रपति को ऐसे मामलों में विशेषाधिकार प्राप्त हैं कि वह मानवीय आधार पर माफी दे सकें। हालांकि, ये माफी अत्यंत दुर्लभ मामलों में ही मिलती है और इसके लिए धार्मिक, राजनीतिक तथा मानवीय दलीलों की मजबूत ज़रूरत होती है। भारत सरकार इस दिशा में सक्रियता से कूटनीतिक प्रयास कर रही है।
2. पुनर्विचार याचिका या कानूनी प्रक्रिया में त्रुटि
यदि कानूनी प्रक्रिया में कोई तकनीकी खामी पाई जाती है या नए प्रमाण सामने आते हैं, तो पुनर्विचार याचिका के जरिए अपील की जा सकती है। यदि यह साबित हो जाए कि निमिषा ने आत्मरक्षा में यह कदम उठाया था, तो मामले की दिशा बदल सकती है। यह दृष्टिकोण उसके मानसिक उत्पीड़न और स्थानीय सहयोगी द्वारा प्रताड़ना की घटनाओं पर केंद्रित हो सकता है।
3. अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप और मानवीय दबाव
संयुक्त राष्ट्र, रेड क्रॉस और अन्य मानवाधिकार संगठन यदि सक्रिय हो जाएं, तो यमन सरकार पर मानवीय दृष्टिकोण से पुनर्विचार करने का दबाव बन सकता है। भारत, ईरान के माध्यम से हौथियों से बात करने की कोशिश कर सकता है, क्योंकि हौथी विद्रोही गुट ईरान समर्थित हैं।
4. जनता और मीडिया का दबाव
अगर यह मामला अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ज़ोर पकड़ता है और वैश्विक समुदाय इसके प्रति सक्रिय होता है, तो पीड़ित परिवार पर भी दबाव बन सकता है। अतीत में ऐसे उदाहरण रहे हैं जहां जनदबाव के चलते कठोर फैसलों में नरमी लाई गई।
5. सजा में परिवर्तन: मृत्यु दंड से आजीवन कारावास
यदि ब्लड मनी स्वीकार नहीं होती, और माफी असंभव लगती है, तब एकमात्र मानवीय समाधान यह हो सकता है कि प्रिया की सजा को मृत्युदंड से घटाकर उम्रकैद में बदल दिया जाए। इसके लिए भारत सरकार की राजनयिक सक्रियता निर्णायक हो सकती है।
भारत सरकार की भूमिका और रणनीति
भारत सरकार इस मामले में अब अधिक सक्रिय दिखाई दे रही है। विदेश मंत्रालय और यमन स्थित भारतीय दूतावास कानूनी सहायता, कांसुलर विजिट और स्थानीय संपर्कों के जरिए प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा, भारत एक विशेषज्ञ टीम यमन भेजने की योजना में है, जिसमें शरिया विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक और कानूनी सलाहकार शामिल होंगे।
हौथी विद्रोहियों पर भारत का प्रभाव
यह एक यथार्थ है कि भारत का हौथी विद्रोही सरकार पर सीधा प्रभाव नहीं है। लेकिन कूटनीतिक मंचों पर भारत की स्वीकार्यता और मध्यस्थता की क्षमता को नकारा नहीं जा सकता। भारत-ईरान संबंध यहां निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
क्या ईरान बना सकता है सेतु?
ईरान, हौथी विद्रोहियों का सबसे बड़ा समर्थनकर्ता है। भारत यदि कूटनीतिक रूप से ईरान को इस मामले में शामिल करता है, तो हौथियों पर दबाव डलवाया जा सकता है। हालांकि, यह तभी संभव है जब ईरान इस मुद्दे को अपनी प्राथमिकता में शामिल करे।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का रुख
हाल ही में भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यमन में प्रिया को बचाने के प्रयास उसके परिवार तक सीमित रहने चाहिए। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने स्पष्ट किया कि ‘पावर ऑफ अटॉर्नी’ परिवार ने लिया है और बाहरी संगठनों को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। हालांकि यह बयान कई सामाजिक संगठनों को असहज कर गया है, जो मानवीय आधार पर प्रयासरत थे।
ग्रैंड मुफ्ती की भूमिका और विवाद
कंथापुरम के ग्रैंड मुफ्ती अबूबकर मुसलियार ने दावा किया कि उनके हस्तक्षेप के बाद फांसी टली है और ब्लड मनी की बातचीत पुनः शुरू हुई है। उन्होंने इस्लाम में “दीया” यानी मुआवज़े की परंपरा का हवाला देते हुए राहत की अपील की थी। हालांकि, विदेश मंत्रालय ने इस पहल पर कोई टिप्पणी नहीं दी।
केंद्रीय राजनीति और न्यायपालिका पर बयान
इस बीच, केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर कड़ी टिप्पणी दी और जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि यह पहल सरकार की नहीं, बल्कि विभिन्न दलों के सांसदों की है। हालांकि यह मुद्दा अलग है, लेकिन यह दिखाता है कि भारत सरकार अब कानून और न्याय को लेकर सजग रवैया अपना रही है।
निमिषा प्रिया का मामला एक ऐसे नाज़ुक मोड़ पर है, जहां इंसाफ़, कूटनीति, धर्म और राजनीति की रेखाएं एक-दूसरे से उलझी हुई हैं। ब्लड मनी का ठुकराया जाना निश्चित रूप से एक बड़ा झटका है, लेकिन इससे प्रिया के बचाव के सभी रास्ते बंद नहीं हुए हैं। भारत सरकार की सक्रियता, अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप, कानूनी पुनरावलोकन और मानवीय अपील – ये सभी मिलकर अब भी एक नया रास्ता खोल सकते हैं।
मामला यही बताता है कि कभी-कभी एक जीवन को बचाने के लिए सिर्फ कानून नहीं, बल्कि संवेदना, संवाद और संकल्प की भी आवश्यकता होती है।