
सांप्रदायिकता जिनका सियासी हथियार हो तो फिर उनसे क्या और क्यों उम्मीद की जा सकती है हिन्दू मुस्लिम के चक्कर में फंस बेरोजगारी और महंगाई को भूल जाती हैं जनता
लखनऊ,(Shah Times) । सांप्रदायिकता जिनका सियासी हथियार हो तो फिर उनसे क्या और क्यों उम्मीद की जा सकती है या है हमने यह महसूस एक बार नहीं इनकी सियासत में हमेशा किया है कि यह बिना सांप्रदायिकता फैलाए सियासत के शीर्ष पर पहुँच ही नहीं सकते इस लिए यह बार-बार यही टोटके करते रहते है जनता को चाहिए कि इनको पूरी तरह से नकार दे जब देश में अमन चैन शांति व भाईचारा मोहब्बत कायम रह सकती है लगभग सौ साल से झूठ और सांप्रदायिकता का जहरीला विष पिला रहे है उस सांप्रदायिक जहरीले विष के परिणाम बेरोजगारी व बढ़ती महंगाई से झुजना पड़ रहा है।
हिन्दू मुस्लिम के चक्कर में फंस बेरोजगारी और महंगाई को भूल जाती हैं जनता इस लिए मोदी की भाजपा यह प्रयास करती रहती हैं। कितने टन फल-फूल मंडियों से आए और भगवान का प्रसाद बन गए। कितने बागों से, कितने फल, कितने फूल, किस-किस हाथ, किस-किस साँस से गुजरे और मंदिरों में चढ़ा दिए गए। भगवान के भोग लगे, भक्तों ने प्रसाद लिए। अनगिनत मंदिर, पुजारी, असंख्य भक्त…. यह तो रोज के हिंदुस्तान में होता आया है। सदियों से इसी तरह चल रहा है और ऐसे ही चलता रहेगा।
आज क्या बदल गया है ? क्या भगवान ने फल ग्रहण करने से इनकार किया ? नहीं। भगवान तो आजतक नहीं बोले कि हटाओ ये आम, इसे मलीहाबादी मुसलमान ने उगाया है। मैं नहीं स्वीकार करूंगा। हटाओ इस केले को, बेचने वाला मुसलमान था।
क्या फर्क पड़ता है कि मलीहाबाद और लखनऊ का आम हिंदू ने उगाया है या मुसलमान ने ? क्या फर्क पड़ता है कि बाजार में आपने जो फल खरीदा, सब्जी खरीदी या पानी खरीदा, उसे बेचने वाला किस धर्म का है ? किस जाति का है उसे उगाने वाला ? उसे ढोने वाले की जाति-धर्म क्या है ? क्या इस बात से आपको फर्क पड़ता है ?
मोदी की भाजपा चाहती है कि हम बाजार में अपने बच्चों के लिए सब्जी या फल खरीदने निकलें, तो भी हमारे दिमाग में नफरत हावी रहे। हिंदू लौकी, मुसलमान लौकी, हिंदू सेब, मुसलमान सेब, हिंदू टमाटर, मुसलमान टमाटर…. यह कहां ले जाएगा ?
लखनऊ से दिल्ली तक कुर्सी के लिए आपस में लड़ रहे हम दो हमारे दो,अमीरों को और अमीर और गरीबों और गरीब अपने मित्रों का 16 लाख करोड़ लोन माफ़ कर उन्हें राहत देने वाले,किसानों का कर्ज माफ़ करने की बात आते ही पसीने पसीन हो जाने वाले, भ्रष्टाचारियों को अपने साथ शामिल करने वाले सांप्रदायिक भाजपाइयों को यकीन है कि वे जनता को लड़ाकर आजीवन कुर्सी पर बने रहेंगे। सांप्रदायिकता इनका आखिरी हथियार है।
भारत की जनता के लिए यह नया नहीं है। वह क्रूर शासकों से निपटी है। संविधान बदलने निकले थे भाजपाई और संघ मंडली लेकिन दलितों और पिछड़ों ने यह गेम समझ सांप्रदायिक अफीम का अपना नशा उतार सांप्रदायिकता का चौला पहने लोगों का चौला उतार दिया, वह फिरकापरस्तों से एवं अंग्रेजों से निपटी। वह सांप्रदायिक जिन्ना सावरकार की जुगलबंदी से निपटी।अब संविधान बदलने का नारा लगाने वालों ने सीधा संविधान पर हमला बोला है। भारत की जनता जल्दी ही इनसे भी निपटेगी।इस बार बस रपटाया है, अगली बार निपटा देगी।







