
मोदी-नीतीश की साझी पहल: बिहार की बेटियों के नाम नई सियासी कहानी
महिला रोज़गार योजना: सशक्तिकरण या राजनीतिक रणनीति?
📍पटना | 26 सितम्बर 2025
| Asif Khan
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार की महिलाओं के लिए बड़ी योजना शुरू की। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह वास्तव में सामाजिक बदलाव की दिशा है या आने वाले चुनावों को ध्यान में रखकर बनाई गई राजनीतिक रणनीति।
बिहार की महिलाएँ, सत्ता का समीकरण और नया राजनीतिक संदेश
बिहार की ज़मीन हमेशा से सियासी चालों और सामाजिक समीकरणों का केंद्र रही है। आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना का शुभारंभ किया और एक झटके में 75 लाख महिलाओं के खाते में 10-10 हज़ार रुपये पहुँचा दिए, तो यह सिर्फ़ आर्थिक पहल नहीं थी। यह एक राजनीतिक संदेश भी था।
नवरात्रि और राजनीति का संगम
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन की शुरुआत नवरात्रि के शुभ अवसर से की। यह धार्मिक-सांस्कृतिक संदर्भ था, जो बिहार की भावनात्मक ज़मीन को सीधे छूता है। हिंदू त्यौहारों का उल्लेख और उसके साथ महिला सशक्तिकरण का एजेंडा — दोनों का मेल राजनीति की बारीक समझ को दिखाता है। एक तरफ़ धार्मिक आस्था, दूसरी तरफ़ रोज़गार और सम्मान।
महिला सशक्तिकरण या वोट बैंक?
प्रधानमंत्री ने कहा कि “एक भाई की खुशी तब है जब उसकी बहन सुरक्षित और समृद्ध हो।” यह भावनात्मक भाषा थी, मगर इसके पीछे राजनीति का गहरा रंग है। बिहार की राजनीति में महिलाओं की भूमिका तेज़ी से बढ़ी है। पंचायत चुनावों में 50% आरक्षण ने गाँव-गाँव में महिलाओं की नई पहचान बनाई है। अब जब 75 लाख महिलाओं को सीधे वित्तीय मदद मिल रही है, तो इसका असर चुनावी गणित पर पड़ना तय है।
नीतीश-मोदी की साझेदारी
प्रधानमंत्री ने साफ़ कहा कि “आज दो भाई, मैं और नीतीश कुमार, बिहार की बहनों के लिए साथ खड़े हैं।” यह बयान किसी साधारण भाषण का हिस्सा नहीं था। यह एक राजनीतिक गठजोड़ का सार्वजनिक संदेश था। नीतीश कुमार, जिन्होंने पिछले दशक में कई बार पाला बदला, आज मोदी के साथ मंच पर खड़े दिखाई दिए। यह भाजपा-जेडीयू के रिश्ते को मज़बूती देने और विपक्ष को स्पष्ट संकेत देने का तरीका भी है।
आर्थिक ढाँचा और जन-धन योजना का महत्व
प्रधानमंत्री ने सही कहा कि अगर जन-धन खाते, आधार और मोबाइल से जुड़ा ढाँचा न होता तो इतने बड़े पैमाने पर DBT संभव नहीं था। यह एक प्रशासनिक सफलता है। मगर साथ ही यह सवाल भी उठता है — क्या सिर्फ़ पैसे बाँटना महिलाओं को सचमुच आत्मनिर्भर बना देता है?
योजना के वादे और संभावनाएँ
10 हज़ार रुपये की शुरुआती सहायता से लेकर 2 लाख तक का वादा सुनने में बड़ा आकर्षक है। महिलाएँ दुकानें खोल सकती हैं, पशुपालन कर सकती हैं, छोटे कारोबार कर सकती हैं। प्रशिक्षण और स्वयं सहायता समूहों का सहारा भी मिलेगा। यह मॉडल वाक़ई कारगर हो सकता है, बशर्ते भ्रष्टाचार और बिचौलियों की दखल न हो।
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लखपति दीदी और नए नारे
प्रधानमंत्री ने “लखपति दीदी” अभियान को भी जोड़ा। उन्होंने कहा कि जल्द ही बिहार देश का नंबर वन राज्य होगा जहाँ सबसे ज़्यादा महिलाएँ लखपति दीदी बनेंगी। ये नारे सुनने में अच्छे लगते हैं, मगर सवाल यह है कि क्या जमीनी हक़ीक़त इतनी आसान है? गाँव की महिलाएँ जब बैंक जाती हैं तो उन्हें अभी भी कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, यह किसी से छुपा नहीं।
विकास बनाम यादों की राजनीति
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में “लालटेन युग” यानी राजद शासन का ज़िक्र किया। टूटी सड़कें, बाढ़, अपराध और नक्सली हिंसा — यह सब उन्होंने याद दिलाया। यह सीधा हमला विपक्ष पर था। यानी एक तरफ़ नई योजनाओं का वादा, दूसरी तरफ़ अतीत की अराजकता का स्मरण। यह भविष्य बनाम अतीत की सियासत का खेल था।
उज्ज्वला योजना और रसोई का दर्द
प्रधानमंत्री ने महिलाओं की ज़िंदगी में उज्ज्वला योजना का बदलाव याद किया। उन्होंने कहा कि अब महिलाएँ धुएँ से मुक्त होकर खाना बना रही हैं। यह सही है कि उज्ज्वला ने एक बड़ा बदलाव किया, लेकिन साथ ही यह भी हक़ीक़त है कि रीफ़िल सिलेंडर की बढ़ती क़ीमतें ग्रामीण परिवारों के लिए चुनौती बनी हुई हैं।
मुफ़्त राशन और चुनावी असर
कोविड के दौरान शुरू हुई मुफ़्त राशन योजना अब भी जारी है। बिहार जैसे ग़रीब राज्य में इसका सीधा असर जनता की निष्ठा पर पड़ता है। अरवा और उसना चावल का उदाहरण देकर प्रधानमंत्री ने जनता की नब्ज़ पकड़ी। लेकिन आलोचक कहते हैं कि फ्री राशन जनता को आत्मनिर्भर नहीं, निर्भर बना रहा है।
स्वास्थ्य पर ध्यान
आयुष्मान भारत, मातृत्व योजनाएँ और अब “स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार अभियान”। ये सब महिलाएँ केंद्रित नीतियाँ हैं। प्रधानमंत्री ने आँकड़े दिए कि एक करोड़ से ज़्यादा महिलाओं की जाँच हो चुकी है। मगर यहाँ भी सवाल है — क्या बिहार का स्वास्थ्य तंत्र इतना सक्षम है कि इतनी बड़ी आबादी को लगातार सेवा दे सके?
जीएसटी में राहत और त्यौहार का मौसम
प्रधानमंत्री ने हाल में घटाए गए GST का ज़िक्र किया। साबुन, शैम्पू, घी और कपड़े सस्ते हुए हैं। त्योहारों के मौसम में यह राहत महिलाओं को लुभाने का एक और प्रयास है। यह सीधा इलेक्शन मूड पॉलिटिक्स लगता है।
सियासी निहितार्थ
अब असली सवाल — क्या यह सब बिहार के विकास का हिस्सा है या फिर चुनावी गणित का?
महिलाएँ आज बिहार की सबसे बड़ी सियासी ताक़त बन चुकी हैं।
पिछले विधानसभा चुनावों में महिलाओं की वोटिंग टर्नआउट पुरुषों से ज़्यादा रही।
अगर 75 लाख महिलाओं को सीधा आर्थिक लाभ मिलता है, तो इसका असर कम से कम 2-3 करोड़ वोटों तक पहुँच सकता है।
विपक्ष इसे चुनावी रेवड़ी कह रहा है, लेकिन भाजपा-जेडीयू गठबंधन इसे “सशक्तिकरण” बताकर आगे बढ़ा रहा है।
निष्कर्ष
बिहार की राजनीति में महिलाएँ अब सिर्फ़ दर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक बन चुकी हैं। प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश कुमार की यह साझी पहल सिर्फ़ एक योजना नहीं, बल्कि सत्ता समीकरण का भविष्य तय करने वाला कदम है। सवाल यही रहेगा — क्या यह योजना सचमुच महिलाओं की ज़िंदगी बदलेगी, या फिर यह आने वाले चुनाव की तैयारी है?