
The under-construction mega hydropower dam in Nyingchi, Tibet, near the India border.
चीन का ब्रह्मपुत्र बांध भारत की सीमा पर: पर्यावरण और सुरक्षा दोनों पर खतरा
ब्रह्मपुत्र पर चीन का नया बांध: भारत की जल सुरक्षा पर बड़ा खतरा
Shah Times Editorial
चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाना शुरू किया, जो भारत की जल सुरक्षा और रणनीतिक स्थिरता के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध बनाना शुरू कर दिया है। यह बांध भारतीय सीमा के नजदीक, तिब्बत के न्यिंगची शहर में बनाया जा रहा है। चीन की सरकारी परिषद ने इसकी आधिकारिक पुष्टि करते हुए इसे जल ऊर्जा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक परियोजना बताया है। लेकिन इस बांध के निर्माण से भारत में चिंता की लहर दौड़ गई है। जहां एक ओर यह परियोजना चीन की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर भारत के लिए यह एक रणनीतिक और पर्यावरणीय खतरे के रूप में उभर रही है।
ब्रह्मपुत्र पर बनने वाला यह बांध कहां और क्यों?
ब्रह्मपुत्र नदी को चीन में यारलुंग सांगपो कहा जाता है। यह नदी कैलाश पर्वत के निकट जिमा यांगजोंग ग्लेशियर से निकलती है और हिमालय पार कर भारत के अरुणाचल प्रदेश, असम होते हुए बांग्लादेश और अंततः बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती है। चीन द्वारा बनाया जा रहा यह बांध उसी स्थान पर बन रहा है जहां नदी एक यू-टर्न लेकर भारत में प्रवेश करती है। यह इलाका न सिर्फ सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत संवेदनशील है, बल्कि भूकंप संभावित क्षेत्र भी है।
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इस बांध के निर्माण की घोषणा 19 जुलाई 2025 को चीन के प्रधानमंत्री ली क्यांग ने की थी। इसकी कुल लागत लगभग 167.8 अरब डॉलर यानी 12 लाख करोड़ रुपये बताई गई है। बांध के साथ पांच हाइड्रोपावर स्टेशनों का निर्माण भी किया जा रहा है जो सालाना 300 अरब किलोवॉट घंटा बिजली पैदा करेंगे।
भारत के लिए यह क्यों चिंता का विषय है?
1. जल प्रवाह पर नियंत्रण
बांध का आकार और क्षमता इतनी विशाल है कि चीन को नदी के जल प्रवाह पर पूर्ण नियंत्रण मिल जाएगा। इसका अर्थ यह है कि चीन अगर चाहे तो पानी का बहाव रोके रख सकता है या फिर अचानक बड़ी मात्रा में पानी छोड़ सकता है, जिससे भारत में बाढ़ आ सकती है। भारत में ब्रह्मपुत्र नदी के तटीय क्षेत्र पहले ही बाढ़ के प्रति संवेदनशील हैं।
2. ‘वॉटर बम’ की संज्ञा
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इस परियोजना को ‘वॉटर बम’ करार दिया है। उन्होंने आशंका जताई है कि चीन इस बांध को भविष्य में सामरिक हथियार के रूप में उपयोग कर सकता है। अगर कभी युद्ध जैसी स्थिति बनी और चीन ने जानबूझकर पानी छोड़ दिया, तो निचले भारतीय क्षेत्रों में तबाही मच सकती है।
3. भूकंप का जोखिम
बांध का निर्माण स्थल टेक्टोनिक प्लेट्स के संधिस्थल पर है — जहां भारतीय और यूरेशियन प्लेटें टकराती हैं। यह क्षेत्र भूकंप संभावित है और अतीत में यहां कई बार भूकंप आ चुके हैं। एक भी बड़ा भूकंप बांध की संरचना को नुकसान पहुंचा सकता है, जिसके प्रभाव से निचले इलाकों में विनाशकारी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण और रिपोर्टें
2020 में ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक Lowy Institute ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया था कि चीन तिब्बत के पठार की नदियों पर नियंत्रण के ज़रिए भारत जैसे पड़ोसी देशों पर जल दबाव बना सकता है। रिपोर्ट में विशेष रूप से ब्रह्मपुत्र का जिक्र करते हुए कहा गया था कि चीन भविष्य में इन जलस्रोतों का रणनीतिक उपयोग कर सकता है।
इसके अलावा, चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र की धाराओं पर पहले भी कई छोटे-छोटे बांध बनाए जा चुके हैं, जिससे भारत को पहले भी जल प्रवाह संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
भारत की क्या तैयारी है?
भारत सरकार ने भी ब्रह्मपुत्र पर कई परियोजनाएं शुरू की हैं, विशेषकर अरुणाचल प्रदेश में। भारत और चीन ने 2006 में एक विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (ELM) स्थापित किया था, जिसके अंतर्गत चीन मानसून के दौरान ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों की जलविज्ञान संबंधी जानकारी भारत को प्रदान करता है।
हालांकि, अब जब चीन ने इतना विशाल बांध बनाना शुरू किया है, तो यह संधि कितनी प्रभावी रहेगी, यह देखना शेष है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपने जल संसाधनों की सुरक्षा के लिए एक व्यापक और दीर्घकालिक रणनीति तैयार करनी होगी।
पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव
ब्रह्मपुत्र नदी का इकोसिस्टम बहुत समृद्ध है। यह पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों की जीवनरेखा है। नदी का जल कृषि, मत्स्य पालन, परिवहन और पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि चीन पानी का बहाव नियंत्रित करता है तो इससे भारत में:
कृषि संकट उत्पन्न हो सकता है
मत्स्य उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है
स्थानीय जनजीवन प्रभावित हो सकता है
नदी की जैव विविधता में गिरावट आ सकती है
भारत के लिए आगे की राह
राजनयिक स्तर पर दबाव बनाना: भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से उठाना चाहिए। विशेषकर संयुक्त राष्ट्र और ब्रिक्स जैसे मंचों पर चीन पर पारदर्शिता के लिए दबाव बनाना आवश्यक है।
सुरक्षा और निगरानी तंत्र: चीन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए भारत को उपग्रह, जलग्रहण यंत्रों और अन्य तकनीकी माध्यमों से निगरानी बढ़ानी चाहिए।
स्थानीय बांध परियोजनाओं को गति देना: भारत को ब्रह्मपुत्र पर अपनी जलविद्युत परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि जल पर अधिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित की जा सके।
जल कूटनीति को सशक्त बनाना: चीन के साथ जल संसाधन साझेदारी को लेकर नई रणनीतियों की आवश्यकता है, जिसमें बहुपक्षीय बातचीत और समझौते शामिल हों।
निष्कर्ष
चीन का ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाना केवल एक ऊर्जा परियोजना नहीं है, बल्कि इसके पीछे रणनीतिक और भूराजनीतिक उद्देश्य भी छिपे हो सकते हैं। भारत को इस चुनौती को केवल पर्यावरण या ऊर्जा संकट के रूप में नहीं, बल्कि एक सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ा विषय मानकर कार्य करना होगा। यह समय है जब भारत को जल नीति, कूटनीति और सुरक्षा रणनीतियों को समन्वित कर ठोस निर्णय लेने होंगे।