
Sahastradhara in Dehradun after a devastating cloud burst; hotels, shops, and roads submerged under debris and floodwater. Rescue teams on alert.
उत्तराखंड का दर्द: बादल फटने से सहस्रधारा में भारी तबाही और अफ़रा-तफ़री
देहरादून में बादल फटने से तबाही: 13 की मौत, 16 लापता
देहरादून सहस्रधारा में बादल फटने से भारी तबाही, होटल और दुकानें ध्वस्त, लोग फंसे। SDRF-NDRF राहत कार्य में जुटी। शाह टाइम्स पर पढ़ें पूरी रिपोर्ट।
बादल फटना: सहस्रधारा से उठता एक ग़मगीन सवाल
देहरादून की रात अचानक चीख़ों और अफ़रा-तफ़री से भर गई। पहाड़ों से उतरी एक ख़ामोश तबाही ने सहस्रधारा के पर्यटन स्थल को मलबे और डर के सन्नाटे में बदल दिया। सोमवार रात लगभग 11:30 बजे बादल फटा और कुछ ही पलों में कार्लिगाड़ क्षेत्र ज़िंदगी और मौत की जंग का मैदान बन गया।
तबाही की तस्वीर
बादल फटने के बाद आई तेज़ धारा और भारी मलबे ने सहस्रधारा बाज़ार को तहस-नहस कर दिया।
दो से तीन बड़े होटल मलबे में दब गए।
सात से आठ दुकानें पूरी तरह बह गईं।
सौ से अधिक लोग रात भर मौत के साए में फंसे रहे, जिन्हें स्थानीय लोगों और रेस्क्यू टीम ने सकुशल बाहर निकाला।
सूचना है कि दो लोग अब भी लापता हैं।
ये नज़ारा सिर्फ़ प्राकृतिक आपदा का नहीं बल्कि इंसानी लापरवाही और असुरक्षित विकास मॉडल का आइना भी है।
प्रशासन की चुनौती
आपदा कंट्रोल रूम को रात दो बजे सूचना मिली। तुरंत SDRF और फायर ब्रिगेड को रवाना किया गया, लेकिन रास्ते पर मलबे का ढेर इतना था कि टीमें देर तक मौके तक नहीं पहुंच सकीं।
लोक निर्माण विभाग की JCB ने रातभर रास्ता खोलने की कोशिश की।
एनडीआरएफ को भी बुलाया गया।
पुलिस और प्रशासन ने आईटी पार्क, रायपुर और सौंग नदी किनारे के इलाकों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया।
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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि वे हालात पर लगातार नज़र बनाए हुए हैं और प्रभावितों की मदद के लिए प्रशासन सक्रिय है।
मसूरी का दर्द
देहरादून के साथ-साथ मसूरी भी बारिश और मलबे की मार झेल रहा है। झड़ीपानी में मजदूरों के आवास पर मलबा गिरा, जिसमें एक मजदूर की मौत हो गई और एक गंभीर रूप से घायल हो गया। यह हादसा पहाड़ की नंगी सच्चाई बताता है—जहाँ मज़दूरी कर रहे ग़रीब सबसे पहले आपदा की बलि चढ़ते हैं।
नदियों का रौद्र रूप
तमसा नदी और सौंग नदी रौद्र रूप में आ गईं।
टपकेश्वर मंदिर का शिवलिंग पानी में डूब गया।
मालदेवता और आईटी पार्क क्षेत्र में रिसॉर्ट और होटलों तक में मलबा और पानी घुस गया।
देहरादून की कई कॉलोनियों में जलभराव से लोग पूरी रात बेघर और बेबस रहे।
कुदरत का कहर और मानवीय त्रासदी
देहरादून की सहस्त्रधारा, जो अपने झरनों और पर्यटन के लिए मशहूर है, सोमवार रात देखते ही देखते आफ़तगाह बन गई। मालदेवता और टपकेश्वर मंदिर तक में जलप्रलय का असर दिखाई दिया। नदियाँ—तमसा और आसान—रौद्र रूप में आ गईं।
उत्तराखंड के देहरादून जिले में पिछले 48 घंटों के दौरान बादल फटने और बारिश जनित घटनाओं के कारण विभिन्न स्थानों पर 13 लोगों की मौत हो गई तथा तीन अन्य घायल हो गए, जबकि 16 लोग अब भी लापता हैं। प्राकृतिक आपदा के चलते सरकारी और निजी परिसंपत्तियों को भी भारी नुकसान हुआ है।
जिला प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार, जनपद के सभी विकासखंडों में कुल 13 पुल, 10 पुलिया, दो मकान, 31 दीवार, दो अमृत सरोवर, 12 खेत, 12 नहर, 21 सड़कें, सात पेयजल योजनाएं, आठ हौज और 24 पुस्ते क्षतिग्रस्त हुए हैं।
राहत और बचाव कार्य तेज
जिलाधिकारी सविन बंसल ने मंगलवार शाम जानकारी दी कि सोमवार और मंगलवार को बादल फटने की सूचना मिलते ही एसडीआरएफ, डीडीआरएफ और फायर ब्रिगेड समेत राहत एवं बचाव दल प्रभावित क्षेत्रों में भेज दिए गए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मालदेवता क्षेत्र का दौरा कर आवश्यक दिशा-निर्देश दिए। जिलाधिकारी और एसएसपी ने भी मालदेवता, सहस्रधारा, गुजराडा और कार्लीगाड जैसे प्रभावित इलाकों का स्थलीय निरीक्षण किया।
उन्होंने बताया कि पीड़ित परिवारों से मिलकर उन्हें हर संभव मदद का भरोसा दिलाया गया है। लोक निर्माण विभाग और पीएमजीएसवाई को पर्याप्त संख्या में मशीनरी और मैन पावर लगाकर अवरुद्ध सड़कों और संपर्क मार्गों को जल्द से जल्द सुचारू करने के निर्देश दिए गए हैं।
मजयाडा में भारी नुकसान
जिलाधिकारी ने बताया कि मजयाडा क्षेत्र में तीन लोग मलबे में दबे होने और एक व्यक्ति लापता होने की सूचना मिली है। यहां कुछ आवासीय भवन, आंगनबाड़ी केंद्र, पंचायत भवन, सामुदायिक केंद्र, 13 दुकानें, आठ होटल और तीन रेस्टोरेंट क्षतिग्रस्त हुए हैं। सहस्रधारा-कार्लीगाड मोटर मार्ग भूस्खलन के कारण नौ से अधिक स्थानों पर टूट गया है।
प्रभावित परिवारों के लिए राहत
प्रशासन की ओर से राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय चामासारी में राहत शिविर बनाया गया है, जहां प्रभावित परिवारों को ठहराया गया है। जिलाधिकारी ने प्रभावित परिवारों से मिलकर हर संभव मदद का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि यदि कोई परिवार सुरक्षित स्थानों पर किराए के मकान में शिफ्ट होना चाहे, तो उन्हें प्रति परिवार तीन माह तक चार-चार हजार रुपये किराया भी दिया जाएगा।
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देहरादून-मसूरी रोड का बंद होना: कनेक्टिविटी पर चोट
देहरादून-मसूरी रोड, जो पर्यटन और स्थानीय आवागमन के लिए लाइफ़लाइन मानी जाती है, इस आपदा से पूरी तरह ठप हो गई। पुल टूट गए, सड़कें बह गईं और हज़ारों लोग फँस गए। यह सवाल उठाता है कि पहाड़ी इलाक़ों में सड़क निर्माण और रख-रखाव की नीतियाँ कितनी टिकाऊ और जलवायु-उपयुक्त हैं।
राजनीति और राहत: मोदी-शाह का आश्वासन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने सीएम पुष्कर सिंह धामी से बात कर हर संभव मदद का भरोसा दिया। यह राजनीतिक समर्थन महत्वपूर्ण है, लेकिन असल सवाल यह है कि क्या सिर्फ़ आश्वासन काफ़ी है?
केंद्र और राज्य की प्राथमिकता सिर्फ़ तत्काल राहत नहीं, बल्कि दीर्घकालिक आपदा प्रबंधन होनी चाहिए।
फंड और इंफ्रास्ट्रक्चर को आपातकालीन नहीं, बल्कि स्थायी ढांचे के रूप में देखना ज़रूरी है।
NDMA और SDMA जैसी संस्थाओं को और मज़बूत करना चाहिए ताकि समय पर प्रतिक्रिया संभव हो।
सवाल: क्या हम तैयार हैं?
हर बार बादल फटने या लैंडस्लाइड जैसी घटनाओं के बाद वही दृश्य सामने आते हैं:
SDRF, NDRF राहत में जुटी।
मुख्यमंत्री का ट्वीट।
स्थानीय लोगों की बहादुरी।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या हमारी आपदा प्रबंधन व्यवस्था केवल हादसे के बाद सक्रिय होती है?
तीन अहम चुनौतियाँ
बेतरतीब पर्यटन विकास – सहस्रधारा जैसे नाज़ुक इको-ज़ोन में बिना प्लानिंग के बने होटल और मार्केट।
जलवायु परिवर्तन का असर – ग्लोबल वार्मिंग से मानसून की तीव्रता और बादल फटने की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
अपर्याप्त चेतावनी प्रणाली – पर्वतीय इलाकों में मौसम पूर्वानुमान और अर्ली वार्निंग सिस्टम अभी भी कमज़ोर।
इंसानी दर्द
कल्पना कीजिए, एक पर्यटक परिवार होटल में ठहरा है और अचानक पूरी इमारत मलबे में समा जाती है। एक मज़दूर अपने कच्चे घर में सो रहा है और बारिश का पानी उसे ज़िंदा दफ़न कर देता है। यह सिर्फ़ आँकड़े नहीं, बल्कि इंसानी त्रासदियाँ हैं।
समाधान की तलाश
सस्टेनेबल डेवलपमेंट: पर्यटन स्थलों पर कंस्ट्रक्शन को नियंत्रित करना।
अर्ली वार्निंग टेक्नोलॉजी: सैटेलाइट और लोकल अलर्ट सिस्टम को मज़बूत करना।
स्थानीय लोगों की ट्रेनिंग: हर गांव और कस्बे में डिज़ास्टर रिस्पॉन्स वॉलंटियर तैयार करना।
नदी-नालों का संरक्षण: अतिक्रमण और कचरा हटाना, ताकि पानी का प्राकृतिक बहाव बाधित न हो।
नतीजा
सहस्रधारा का यह हादसा हमें यह याद दिलाता है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का अंजाम कितना भयावह हो सकता है। यह सिर्फ़ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि यदि हमने समय रहते सतत विकास और मज़बूत आपदा प्रबंधन की दिशा में कदम नहीं उठाए, तो हर साल ऐसी त्रासदियाँ हमें और गहरे जख़्म देती रहेंगी।







