
Uttarkashi cloudburst in Naugaon, houses and shops damaged, SDRF rescue operation – Shah Times
उत्तरकाशी में बादल फटा: नौगांव में तबाही और बचाव कार्य
उत्तरकाशी के नौगांव बाज़ार में बादल फटने से मलबा घुसा
उत्तरकाशी नौगांव में बादल फटने से भारी नुकसान, मकान-दुकान पानी में डूबे। सीएम धामी ने डीएम को राहत कार्य तेज़ करने के निर्देश दिए।
~ Chiranjeev Semwal
Uttarkashi,( Shah Times)। उत्तराखंड का पहाड़ी इलाका एक बार फिर बादल फटने की त्रासदी का शिकार हुआ। यमुनोत्री हाईवे से सटे उत्तरकाशी ज़िले के नौगांव बाज़ार क्षेत्र में शनिवार शाम को अचानक गदेरों में आये उफान ने रिहायशी और व्यावसायिक इमारतों को अपनी चपेट में ले लिया। पूरे बाज़ार में अफ़रातफ़री मच गई, लोग घर-दुकान छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर भागे और प्रशासन को इमरजेंसी रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू करना पड़ा।
तबाही की तस्वीर
स्थानीय गधेरे देवलसारी और स्योरी फल पट्टी के उफान से कई घरों-दुकानों में मलबा और पानी भर गया।
एक आवासीय भवन पूरी तरह मलवे में दब गया।
आधा दर्जन से अधिक मकान और दुकानें जलमग्न हो गईं।
कई टू-व्हीलर और एक कार मलवे में दब गई।
एक मिक्चर मशीन बह गई।
दिल्ली–यमुनोत्री हाईवे बंद कर देना पड़ा जिससे दोनों तरफ़ लंबा ट्रैफ़िक जाम लग गया।
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प्रशासन की कार्यवाही
सीएम पुष्कर सिंह धामी ने घटना की सूचना मिलते ही डीएम उत्तरकाशी से तत्काल वार्ता की और “राहत व बचाव कार्य युद्धस्तर पर संचालित करने” के आदेश दिए।
जिलाधिकारी प्रशांत आर्य ने बताया कि:
SDRF और NDRF की टीमें घटनास्थल पर पहुँच चुकी हैं।
प्रभावितों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया।
अब तक सभी लोग सुरक्षित बताए जा रहे हैं।
विश्लेषण
उत्तराखंड के पर्वतीय इलाक़ों में बादल फटना अब लगभग हर साल की आपदा बन चुका है। विशेषज्ञ मानते हैं कि:
क्लाइमेट चेंज के चलते बारिश का पैटर्न बदल रहा है।
अत्यधिक और कम समय में बारिश से नदियाँ-नाले उफान पर आ जाते हैं।
पहाड़ी ढलानों पर बढ़ते कंस्ट्रक्शन और असंतुलित विकास से आपदा का खतरा बढ़ रहा है।
इस बार भी नौगांव जैसे कस्बे, जहाँ बाज़ार और रिहायशी इलाके गदेरों के किनारे बसे हैं, सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए।
विरोधाभासी दृष्टिकोण
कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि प्रशासन हर बार सिर्फ़ रेस्क्यू और मुआवज़े पर ध्यान देता है, जबकि डिज़ास्टर प्रिवेंशन पर पर्याप्त कार्य नहीं होता।
चेतावनी तंत्र सीमित है।
स्थानीय आबादी को आपदा प्रबंधन की ट्रेनिंग कम दी जाती है।
नालों-गदेरों के किनारे निर्माण की अनुमति देना ख़तरे को और बढ़ाता है।
हालाँकि राज्य सरकार ने हाल ही में 13 आधुनिक सायरनों का लोकार्पण किया है, जो 16 किलोमीटर तक चेतावनी देने में सक्षम हैं। इससे भविष्य की आपदाओं में नुकसान कम करने की उम्मीद जताई जा रही है।
केंद्र की भूमिका
केंद्रीय गृह मंत्रालय की टीम 8 सितंबर को उत्तराखंड पहुँचेगी।
टीम का नेतृत्व संयुक्त सचिव आर. प्रसन्ना करेंगे।
पोस्ट-डिज़ास्टर नीड असेसमेंट (PDNA) प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
उत्तराखंड सरकार ने 5702.15 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की मांग केंद्र से की है।
निष्कर्ष
उत्तरकाशी की यह आपदा सिर्फ़ एक इमरजेंसी अलर्ट नहीं बल्कि एक चेतावनी है कि पहाड़ों में बढ़ते क्लाइमेट क्राइसिस और अनियंत्रित निर्माण कार्य भविष्य को और असुरक्षित बना रहे हैं। राहत और रेस्क्यू के साथ-साथ दीर्घकालिक नीतिगत कदम उठाना अब ज़रूरी है।
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