
Himalayan Run and Trek athletes running on high-altitude Darjeeling mountain trails
हिमालयन 100 माइल रेस में दुनिया के धावकों की शानदार मौजूदगी
दार्जिलिंग में अंतरराष्ट्रीय धावकों का हिमालयी इम्तिहान
दार्जिलिंग में आयोजित 34वीं हिमालयन रन एंड ट्रेक रेस ने एक बार फिर दुनिया का ध्यान खींचा। पांच दिन, 160 किलोमीटर और पर्वतों की सर्द हवा के बीच धावकों ने सिर्फ रफ़्तार नहीं दिखाई, बल्कि पर्यावरण के लिए अपनी जिम्मेदारी भी साबित की। यह विश्लेषण इसी अनोखे संगम को गहराई से पढ़ता है।
📍 दार्जिलिंग
🗓️ 16 नवम्बर 2025
✍️ आसिफ़ खान
हिमालयन रन एंड ट्रेक में रफ़्तार, जज़्बा और पर्यावरण का असरदार पैग़ाम
दार्जिलिंग की सुबह में अक्सर बादल ज़मीन को छूते हुए दिखाई देते हैं। हवा में चाय बागानों की हल्की ख़ुशबू, पहाड़ों की लंबी खामोशी और दूर कहीं कंचनजंघा की चोटी पर गिरती सूरज की नई किरण। ऐसे माहौल में जब दुनिया भर के धावक कदम रखते हैं, तो यह सिर्फ एक रेस नहीं रहती, बल्कि एक एहसास बन जाती है। इस साल की 34वीं इंटरनेशनल हिमालयन रन एंड ट्रेक स्पर्धा ने वही एहसास फिर ज़िंदा कर दिया।
यह रेस माउंट एवरेस्ट और कंचनजंघा की परछाइयों के बीच 160 किलोमीटर के सफ़र में फैली रहती है। पांच दिन, पांच स्टेज और रास्ते में कभी जंगल, कभी घाटी, कभी बर्फ जैसी ठंडी हवा, तो कभी शोर से दूर पूरी तरह सन्नाटा। रेस डायरेक्टर सी एस पाण्डेय ने बताया कि इस बार अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, साउथ अफ़्रीका, इंडिया और सिंगापुर से धावक आए। इतनी वाइड इंटरनेशनल लाइन अप अपने आप में बताती है कि यह इवेंट अब सिर्फ एक एथलेटिक चैलेंज नहीं, बल्कि एक ग्लोबल कल्चर बन चुका है।
अब असल बात समझते हैं। यह इवेंट 1991 में शुरू हुआ। उस दौर में एडवेंचर स्पोर्ट्स उतने मेनस्ट्रीम नहीं थे, और न ही वातावरण संरक्षण इतना गहरा सामाजिक मुद्दा था। मगर हिमालयन रन एंड ट्रेक की सोच शुरू से साफ़ रही कि यहां दौड़ने का मतलब सिर्फ रेस पूरी करना नहीं, बल्कि प्रकृति का सम्मान समझना है। इसी वजह से इसे दुनिया की क्लीनस्ट एंवायरनमेंट रनिंग इवेंट्स में गिना जाता है।





इस बार की सबसे दिलचस्प बात यह रही कि पूरा रेस रूट बिल्कुल साफ़ मिला। न कचरे का अंबार, न प्लास्टिक, न गैरजरूरी चीजें। इंटरनेशनल रनर्स ने भी कहा कि उन्हें रास्ते में कहीं भी वेस्ट उठाने का मौका नहीं मिला, एज़ इफ द लोकल कम्युनिटी हैज़ आलरेडी अंडरस्टुड द वैल्यू ऑफ कलेक्टिव रेस्पॉन्सिबिलिटी। समाज में जागरूकता का इतना स्पष्ट उदाहरण कम ही देखने को मिलता है। यह इस बात का सुबूत है कि दार्जिलिंग और आसपास के लोग अब सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि पर्यावरण के जज़्बे में बराबर के हिस्सेदार बन चुके हैं।
अब परफ़ॉर्मेंस पर नज़र डालते हैं। पुरुष वर्ग में जर्मनी के एनटोन स्कैफेर ने 18 घंटे 54 मिनट का शानदार समय निकालकर पहला स्थान पाया। 160 किलोमीटर में यह टाइमिंग बताती है कि उनकी ट्रेनिंग, स्टैमिना और माइंडसेट कितना गहरा था। दूसरे स्थान पर बेल्जियम के तिगौत गेयंस रहे जिनका समय 23 घंटे 01 मिनट रहा। यह अंतर भी हमें बताता है कि इस रेस में टाइमिंग का हर एक घंटा किस तरह पर्वतीय चुनौती से जूझकर निकलता है। तीसरे स्थान पर अमेरिका के क्रिस्टोफर फ्रेंच ने 24 घंटे 50 मिनट में रेस पूरी की।
महिला वर्ग में इंग्लैंड की जेनेट पैने ने 30 घंटे 39 मिनट का समय लेते हुए पहला स्थान हासिल किया। ऑस्ट्रिया की पेट्रा जनसतचित्तश्च दूसरे स्थान पर 33 घंटे 15 मिनट के साथ रहीं, और तीसरा स्थान अमेरिका की लोइसे जॉनसन ने 34 घंटे 18 मिनट में लिया। जब महिला एथलीट इतनी कठिन रेस में ऐसे परिणाम लाती हैं तो यह साफ़ दिखता है कि जेंडर कोई बाधा नहीं, बल्कि हौसला और संयम ही असली ताक़त है।
अब एक ज़रूरी सवाल उठाते हैं। क्या यह इवेंट सिर्फ स्पोर्टिंग चैलेंज है, या इसके पीछे कोई गहरी सोच है? यहां एक काउंटरपॉइंट भी बनता है। कई क्रिटिक्स कहते हैं कि ग्लोबल इवेंट्स से टूरिज़्म बढ़ता है, और इससे इलाक़े पर बोझ पड़ता है। मगर यहां पलट कर देखिए। इस रेस ने शुरुआत से ही पर्यावरण संरक्षण को सेंटर पॉइंट रखा, और आज नतीजा यह है कि दार्जिलिंग का संग्रीला क्षेत्र साफ़-सुथरे पर्यटन की मिसाल बन चुका है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा इवेंट है जहां इंटरनेशनल रनर्स कहते हों कि उन्हें उठाने लायक कूड़ा तक नहीं मिला।
इसके अलावा, यह रेस स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी सकारात्मक असर छोड़ती है। होटल, गाइड, लोकल ट्रांसपोर्ट, फूड बिज़नेस और सांस्कृतिक कार्यक्रम सबको इससे फायदा मिलता है। मगर साथ ही यह इवेंट भी इस क्षेत्र से कुछ सीखता है। जैसे पहाड़ों का सब्र, मौसम का अनिश्चित स्वभाव, और यह समझ कि नेचर से लड़ाई नहीं, बल्कि तालमेल बनाकर ही कोई लंबी दौड़ जीती जाती है।
सूरज प्रधान, क्षेत्रीय पर्यटन सह-निदेशक, ने हरी झंडी दिखाकर रेस शुरू कराई और 15 नवंबर को पुरस्कार समारोह के बाद सभी धावकों को विदाई दी। अधिकांश खिलाड़ियों ने रेस डायरेक्टर सी एस पाण्डेय की तारीफ की और कहा कि उनका जुनून, उनका ऑर्गनाइजेशन मॉडल और उनका एनवायरनमेंट-फर्स्ट एप्रोच उन्हें इस इवेंट से बार-बार जोड़ देता है।
यहां एक और महत्वपूर्ण सोच की चर्चा ज़रूरी है। एडवेंचर स्पोर्ट्स में अक्सर यह मान लिया जाता है कि रोमांच ही प्राथमिक लक्ष्य है। मगर हिमालयन रन एंड ट्रेक इस धारणा को उलट देती है। यहां रोमांच मौजूद है, खतरा भी है, फिजिकल चैलेंज भी। लेकिन इसके ऊपर जो विचार खड़ा है वह यह कि प्रकृति सिर्फ बैकड्रॉप नहीं, बल्कि साथी भी है। और साथी का सम्मान किया जाए तो सफ़र और भी खूबसूरत बन जाता है।
अब अगर हम स्पोर्ट्स साइंस के नज़रिए से देखें तो यह रेस एक लाइव लैब की तरह काम करती है। हाई एल्टिट्यूड, लो ऑक्सिजन, अनइवन टेरेन, लॉन्ग स्टेज रनिंग और मेंटल टफनेस। विश्व के कई कोच इस रेस को स्टडी मॉडल के तौर पर देखते हैं। इंडियन रनिंग कम्युनिटी के लिए भी यह रेस लगातार प्रेरणा रही है।
अगर वृहद परिप्रेक्ष्य में सोचा जाए तो यह पूरी कहानी हमें एक सीधी बात समझाती है। दुनिया बदल रही है। लोग रोमांच चाहते हैं, मगर साथ ही जिम्मेदारी भी। और जब कोई इवेंट दोनों को एक साथ निभा लेता है तो उसे सिर्फ स्पोर्ट नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक संपदा कहा जा सकता है।
अंत में यही कहा जा सकता है कि हिमालयन रन एंड ट्रेक अब केवल रेस नहीं रही। यह एक आइडिया है। एक बातचीत है। एक वादा है कि हम पहाड़ों को वैसे ही रहने देंगे जैसे प्रकृति ने उन्हें बनाया है। और जब धावक इस कठिन सफ़र पर कदम रखते हैं तो वे सिर्फ अपनी मंज़िल नहीं ढूंढ रहे, बल्कि हिमालय की आत्मा का हिस्सा बन रहे होते हैं। यही इस इवेंट को दुनिया की सबसे खूबसूरत और सबसे सम्मानित एडवेंचर रेस बनाता है।




