
शाहनवाज़ आलम बोले- जज दीपांकर की टिप्पणी न्यायिक मर्यादा के खिलाफ
शाहनवाज़ आलम ने जस्टिस दत्ता को बताया मोदी सरकार का हमदर्द
शाहनवाज़ आलम ने जस्टिस दीपांकर दत्ता की टिप्पणी को राजनीतिक करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट से उनके सभी फैसलों की समीक्षा की मांग की।
दीपांकर दत्ता की टिप्पणी राजनीतिक, उनके पुराने फैसलों की भी हो समीक्षा- शाहनवाज़ आलम
नई दिल्ली, (Shah Times)। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने सुप्रीम कोर्ट के जज दीपांकर दत्ता की नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की देशभक्ति और भारतीयता पर की गई टिप्पणी को न्यायपालिका की लक्ष्मण रेखा पार करने वाली राजनीतिक टिप्पणी करार दिया है। उन्होंने कहा कि अगर जज साहब को राजनीति करनी है, तो न्यायपालिका का मंच छोड़कर यह काम करें।
शाहनवाज़ ने कहा, “यह मानना कठिन है कि जस्टिस दत्ता को नहीं पता कि कोर्ट का काम न्याय करना है, किसी की देशभक्ति तय करना नहीं। उनकी टिप्पणी सीधे तौर पर मोदी सरकार और आरएसएस के नैरेटिव से मेल खाती है।”
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उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार न्यायपालिका के एक हिस्से की मदद से विपक्ष की विचारधारा को दबाने की कोशिश कर रही है और दीपांकर दत्ता इसका ताज़ा उदाहरण हैं। इससे पहले मुंबई हाईकोर्ट के जजों गौतम अंखड़ और रविंद्र गुघ ने माकपा के एक प्रदर्शन को राष्ट्रविरोधी करार दिया था, जो इज़राइली हिंसा के खिलाफ था।
शाहनवाज़ का कहना है कि “यह प्रवृत्ति दिखाती है कि भाजपा और आरएसएस तानाशाही थोपने की कोशिश कर रहे हैं और न्यायपालिका का एक हिस्सा इसमें भागीदार है।”
उन्होंने विशेष रूप से राहुल गांधी द्वारा चीन द्वारा ज़मीन कब्जे के बयान पर जस्टिस दत्ता की टिप्पणी “सच्चा भारतीय ऐसा नहीं कहता” को उनकी गुलाम मानसिकता का प्रतीक बताया और कहा कि “जो सरकार के सुर में सुर मिलाना ही भारतीयता समझे, वो जज बनने योग्य नहीं है।”
शाहनवाज़ आलम ने मांग की कि:
मुख्य न्यायाधीश को जस्टिस दत्ता के सभी पूर्व फैसलों की समीक्षा के लिए जजों की एक समिति बनानी चाहिए।
उन सभी मामलों से दत्ता को हटाया जाए जहां सरकार पक्षकार हो, ताकि उनकी ‘सच्ची भारतीयता’ सरकार की तरफ झुकी न्याय प्रक्रिया पर असर न डाले।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि 2014 के बाद से कुछ जज आरएसएस को खुश करने के लिए होड़ में लगे हैं ताकि रिटायरमेंट के बाद रंजन गोगोई और डी. वाई. चंद्रचूड़ की तरह कोई इनाम मिल सके।