दधिकांदो मेला : अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकजुट करने का साधन था

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प्रयागराज। उत्तर प्रदेश (UP) के प्रयागराज (Prayagraj) में 16 -29 सितंबर के बीच होने जा रहे दधिकांदो मेले (Dadhikando Mela) का बड़ा ऐतिहासिक महत्व है। यह मेला हिंदुस्तानी क्रांतिकारियों ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए 1890 में अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में शुरू किया था। धार्मिक दिखने वाले इस मेला आयोजन से क्रांतिकारियों ने इलाहाबाद में अंग्रेजी हुकूमत से बगावत की शुरुआत की थी।

इस मेले को अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में आम जनमानस को एकजुट करने के लिए शुरू किया गया था। देश में ब्रितानी शासकों द्वारा लगातार क्रांतिकारियों का दमन किया जा रहा था। क्रांतिकारी अखबारों और सभाओं पर रोक थी। क्रांतिकारी गुपचुप कहीं बैठक करते थे तो फिरंगी उन्हें प्रताड़ित कर जेल में डाल देते थे।

ब्रितानी शासकों के क्रूर कार्रवाई से कोई भी जनमानस घर के बाहर निकलने से डरता था। बात उस उस समय की है जब इलाहाबाद के कैंट इलाके में अंग्रेजो द्वारा हिन्दुस्तानियो के किसी प्रकार के उत्सव पर प्रतिबन्ध था। तब सन् 1890 में इलाहबाद में इस मेले की नींव रखने के लिए क्रांतिकारियों की बैठक हुई थी। प्रयाग के तीर्थ पुरोहित रामकैलाश पाठक (Ramkailash Pathak), स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विजय चंद्र (Vijay Chandra), सुमित्रादेवी (Sumitra Devi) ने इसकी रूपरेखा तैयार की थी।

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लोग क्रांति के नाम पर उस समय बमुश्किल ही एकत्रित होते लेकिन धार्मिक उत्सव के नाम पर उन्हें नजदीक लाया जा सकता था। समस्या थी कि अंग्रेज कही इस मेले को न होने दें तब क्या होगा। लेकिन मामला धर्म से जुड़ा था तो इतना तो साफ था कि अंग्रेज जबरन कोई कदम नहीं उठाएंगे। निर्णय हुआ कि अगर बहुत सारे लोग एकसाथ एक जगह एकत्रित हो तो उनमें आजादी की लड़ाई के लिए जोश भरा जा सकता है। अगर ज्यादा लोग एकत्रित हो तो तो उनमें संगठित होने की भी भावना घर करती है।

सलोरी दधिकांदो मेला समिति (Salori Dadhikando Mela Committee) के अध्यक्ष राकेश शुक्ल (Rakesh Shukla) ने बताया कि प्रयागराज (Prayagraj) में लगने वाला दधिकांदो मेला उसी का हिस्सा है। प्रयागराज (Prayagraj) में दधिकांदो मेले का आयोजन 16 सितंबर से 29 सितंबर तक होगा। इसकी शुरूआत सलोरी (Salori) से हुई। इसे शुरू करने वाले क्रांतिकारी ब्रह्मचारी बाबा थे ।

बाबा ने 150 साल से पहले जब इस मेले को शुरू किया था तब संसाधनों का अभाव था। मेले में लोगाें को एक साथ मिलने का अवसर मिलता था जिससे वे एक दूसरे से अपने क्रांतिकारी विचार आदान प्रदान कर सकते थे। अंग्रेजाें के खिलाफ रणनीति भी तैयार की जाती थी। मेले से लोगों में जहां देश भक्ति की भावना पैदा होने लगी वहीं धीरे धीरे अंग्रेजों के खिलाफ मन में विद्रोह पनपने लगा।

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