
Devotees praying at Hazrat Abbas Baghra Dargah during the 2025 annual Majlis, organized by Anjuman-e-Arfi – Shah Times coverage
दरगाह बघरा 15 मई 2025 से शुरू होंगी चार दिवसीय मजलिसें, जानिए चमत्कारी इतिहास और आयोजन की पूरी जानकारी
~जिया अब्बास ज़ैदी
शामली के बघरा स्थित दरगाह आलिया हजरत अब्बास बाबुल हवायज में 15-18 मई तक आयोजित होंगी सालाना मजलिसें। जानिए दरगाह का रहस्यमयी इतिहास, चमत्कारी घटनाएं और सांस्कृतिक आयोजनों की जानकारी।
बघरा, शामली,(Shah Times)| उत्तर प्रदेश के शामली ज़िले में स्थित दरगाह आलिया हजरत अब्बास बाबुल हवायज बघरा न केवल शिया समुदाय के लिए एक पवित्र स्थल है, बल्कि यह भारत की सामाजिक एकता, धार्मिक सहिष्णुता और मानवीय मूल्यों की अद्भुत मिसाल भी बन चुकी है। इस वर्ष 15 मई 2025 से यहां चार दिवसीय सालाना इस्लाही मजलिसों का आयोजन होने जा रहा है, जिसमें देश-विदेश से लाखों जायरीन के शामिल होने की उम्मीद है।
आस्था का केंद्र: सभी धर्मों के लोग करते हैं मन्नत
यह दरगाह उस भावना की प्रतीक है जो धर्मों के बंधनों से ऊपर उठकर इंसानियत को जोड़ती है। यहां न केवल मुस्लिम, बल्कि हिन्दू, सिख, ईसाई और अन्य समुदायों के लोग भी आस्था के साथ चादर चढ़ाने, मन्नत मांगने और तबर्रुक ग्रहण करने आते हैं। यही विशेषता इसे भारत में धार्मिक एकता का शक्तिशाली केंद्र बनाती है।
इतिहास: करबला की मिट्टी से जुड़ी पवित्रता की कहानी
दरगाह का इतिहास भी उतना ही प्रेरणादायक है। कहा जाता है कि यहां के मौलाना फरजंद अली इराक के करबला से इमाम हुसैन की मजार की पवित्र मिट्टी लाकर बघरा के इसी स्थल पर दफन की थी। यह वही स्थान है जहां पहले से ही ताजिए भी दफन किए जाते थे। इस पवित्रता ने इस स्थान को शिया धर्मावलंबियों के लिए एक प्रमुख केंद्र बना दिया।
1963 की चमत्कारी घटना ने दी पहचान
13 अप्रैल 1963 को इस स्थान की आध्यात्मिक पहचान एक चमत्कारी घटना से जुड़ी है। सैदपुरा गांव का युवक असगर त्यागी खेतों में मवेशी चरा रहा था, तभी एक नकाबपोश घुड़सवार उसकी ओर आया और ठोकर लगने पर असगर 40 कदम दूर जा गिरा। वह कई घंटे तक बेहोश रहा। जब गांववाले मौके पर पहुंचे तो उन्होंने ज़मीन पर घोड़े की गहरी टापों के निशान और अद्भुत चमत्कारी खुशबू को महसूस किया। बाद में इसे हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के प्रकट होने की निशानी माना गया और यहीं पर उनका रोजा बना।
मजलिसें: करबला की घटना का जीवंत चित्रण
हर वर्ष आयोजित होने वाली चार दिवसीय सालाना मजलिसें इस दरगाह का सबसे प्रमुख आकर्षण होती हैं। इस बार ये मजलिसें 15 मई से 18 मई 2025 तक आयोजित होंगी।
इनमें देशभर के नामचीन उलेमा-ए-कराम करबला की घटनाओं को इस्लामी शिक्षाओं के साथ जोड़कर प्रस्तुत करते हैं। इन तकरीरों के माध्यम से न केवल श्रद्धालुओं की आस्था बढ़ती है बल्कि नई पीढ़ी को शहादत, बलिदान और सत्य के मार्ग की शिक्षा भी मिलती है।
करबला मैदान का जीवंत मंचन
दरगाह परिसर के पास बनाए गए करबला मैदान में इमाम हुसैन और उनके साथियों के बलिदान का सजीव चित्रण किया जाता है। यह दृश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि अत्यंत भावनात्मक होता है, जो हर दर्शक को आंसू बहाने पर मजबूर कर देता है। यह आयोजन श्रद्धालुओं को करबला की मिट्टी की वास्तविकता का एहसास कराता है।
हस्तियों की आस्था: जब देश की जानी-मानी हस्तियों ने चढ़ाई चादर
दरगाह की प्रसिद्धि इस बात से भी स्पष्ट होती है कि यहां देश की कई राजनीतिक और सामाजिक हस्तियां भी मन्नतें मांगने आती रही हैं।
केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, स्व. फूलन देवी, राहुल गांधी जैसे बड़े नाम यहां नज़र आ चुके हैं। माना जाता है कि उनकी मन्नतें कबूल भी हुईं।
मुशायरा: सांस्कृतिक एकता का मंच
मजलिसों के समानांतर आयोजित होने वाला आल इंडिया मुशायरा दरगाह कार्यक्रम की सांस्कृतिक गरिमा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाता है। इसमें देशभर से नामी शायर अपने कलाम पेश करते हैं, जिनमें सौहार्द्र, शहादत, और इंसानियत की गूंज होती है।
सुरक्षा, सुविधा और सेवा के संपूर्ण इंतज़ाम
इस विशाल आयोजन की ज़िम्मेदारी दरगाह की रजिस्टर्ड कमेटी अंजुमन-ए-आरफी निभा रही है। कमेटी के सदर हाजी निसार हुसैन और जनरल सेक्रेटरी इमरान अली ने बताया कि जायरीन के लिए पानी, बिजली, सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, शौचालय व आवासीय सुविधाओं के पुख्ता इंतज़ाम किए गए हैं। कमेटी का चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत होता है, जिससे पारदर्शिता और सहभागिता सुनिश्चित होती है।
तबर्रुक और चादरपोशी में भागीदारी
मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं और तबर्रुक (प्रसाद) वितरण करते हैं। यह परंपरा हर मज़हब के लोगों को एक साथ जोड़ती है और इस स्थल को एक “संयुक्त श्रद्धा केंद्र” बनाती है।
एकता का उज्ज्वल प्रतीक
दरगाह बघरा केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि वह स्थल है जहाँ दिलों का मेल होता है, आस्थाओं का संगम होता है, और एकता की लौ हमेशा प्रज्वलित रहती है। ऐसे समय में जब समाज को सांप्रदायिक तनाव से ऊपर उठकर सौहार्द्र की ओर बढ़ने की ज़रूरत है, दरगाह बघरा एक आदर्श पथ प्रदर्शक बनकर सामने आती है।
