
Pilgrims visit the sacred Dargah-e-Aaliya Najaf-e-Hind in Jogipura, a historic site of faith and unity – Shah Times Exclusive
दरगाह-ए-आलिया नजफ-ए-हिन्द: 400 साल पुरानी आस्था की प्रतीक
जोगीपुरा स्थित दरगाह-ए-आलिया नजफ-ए-हिन्द एक चमत्कारी स्थल है, जहां हज़रत अली के नूर से रोशन हर धर्म के लोग मन्नतें पूरी करने आते हैं।
मुख्य आकर्षण: नजफ-ए-हिन्द – जहां हज़रत अली का करिश्मा ज़िंदा है
उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले में स्थित दरगाह-ए-आलिया नजफ-ए-हिन्द, जोगीपुरा गांव की सरज़मीन पर बसी वह जगह है, जिसे शांति, चमत्कार और एकता का प्रतीक माना जाता है। यह वही स्थान है जहां कहा जाता है कि हज़रत अली (अ.स.) स्वयं मदद के लिए तशरीफ लाए थे।
इतिहास और करिश्मा: क्यों है यह दरगाह विशेष?
सन 1657 में जब औरंगज़ेब ने शाहजहाँ को कैद कर दिया और उसके वफादारों का कत्ल शुरू किया, तब सैयद राजू नामक एक अधिकारी जोगीपुरा के जंगलों में छिप गए। हर दिन वह ‘या अली अदरिकनी’ की पुकार करते। अंततः एक दिन हज़रत अली के स्वरूप में दो घुड़सवारों के ज़रिए उन्हें यह संदेश मिला:
“जिसे तुम पुकारते हो, वह आज यहां आया है।”
इस घटना के बाद उस स्थान पर घोड़े की टापों के निशान, झाग, और पानी का चश्मा प्रकट हुआ। यहीं पर अब दरगाह स्थित है।
मूर्ति नहीं, नूर की परछाईं है यहां
यह दरगाह न किसी एक धर्म की है, न किसी मज़हब की। यह वह जगह है जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी मिलकर मन्नतें मांगते हैं। कहा जाता है कि यहां से कोई खाली हाथ नहीं लौटता।
इतिहास में दर्ज चमत्कार: सैयद राजू की पुकार और हज़रत अली की रहमत
सन 1657 में जब औरंगज़ेब ने अपने पिता शाहजहां को कैद कर सत्ता हथियाई, तब वफादार सेवकों को खत्म करने का दौर चला। सैयद सलाउद्दीन के बेटे सैयद राजू को भी अपनी जान का खतरा था। उन्होंने जोगीपुरा के जंगल में छिपकर ‘या अली अदरिकनी’ की सदाएं लगाईं। उनकी यह पुकार बेकार नहीं गई। एक दिन एक बूढ़े ब्राह्मण को दो घुड़सवार मिले जो उसे एक नकाबपोश सरदार के पास ले गए। उन्होंने सैयद राजू के लिए मदद का पैगाम भेजा। वह सरदार कोई और नहीं, खुद हज़रत अली थे।
हज़रत अली की पसंदीदा ज़मीन: रोज़े की नींव
हज़रत अली ने इस ज़मीन को पसंद फरमाया और ब्राह्मण से कहा कि सैयद राजू को बताओ कि “जिसे तुम दिन-रात पुकारते हो, वह आज आया है”। इसके बाद सैयद राजू ने इस जगह पर रोज़ा बनवाया। घोड़े की टाप के निशान, झाग, और जमीन पर मौजूद करामाती निशान आज भी वहां देखे जा सकते हैं।
पानी का चश्मा और उसकी शिफा
रोज़े के पास खुदाई के दौरान एक मीठे पानी का चश्मा निकला, जिसका पानी आज भी कई रोगों के इलाज में मददगार माना जाता है। यह चश्मा हज़रत अली की रहमत का प्रतीक बन गया है।
कैसे पहुंचे दरगाह-ए-नजफ-ए-हिन्द?
- स्थान: जोगीपुरा, नजीबाबाद, बिजनौर, उत्तर प्रदेश
- निकटतम रेलवे स्टेशन: नजीबाबाद (12 किमी दूरी)
- सड़क मार्ग: दिल्ली, मेरठ, हरिद्वार से सीधी बस सुविधा
चार दिवसीय मजलिस: 22 से 25 मई
प्रशासक गुलरेज़ हैदर रिज़वी के अनुसार, इस साल की चार दिवसीय मजलिस में देश-विदेश से लाखों जायरीन आने वाले हैं। दरगाह परिसर की साफ़-सफाई, सुरक्षा और सुविधाओं के पूरे इंतज़ाम किए गए हैं।

वरिष्ठ पत्रकार
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