दिल्ली चुनाव: ओवैसी की हिकमत-ए-अमली, ‘आप’ की शिकस्त और कांग्रेस पर इल्ज़ामात की सियासत

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे और बदलता राजनीतिक समीकरण

दिल्ली चुनाव 2025: AAP की सीटें घटीं, BJP ने जीत दर्ज की। अमानतुल्लाह खान ने कांग्रेस पर ‘AAP को हराने’ का इल्ज़ाम लगाया, जबकि AIMIM के ओवैसी ने दो सीटों से चुनाव लड़ा लेकिन कामयाबी नहीं मिली। पढ़ें पूरा विश्लेषण।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे इस बार अप्रत्याशित रहे। आम आदमी पार्टी (AAP), जिसने 2020 के चुनाव में 62 सीटें जीती थीं, इस बार सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गई। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 48 सीटों के साथ सत्ता में वापसी की। कांग्रेस, जो पिछले दो चुनावों में लगभग हाशिए पर थी, ने इस बार वोट शेयर में इजाफा किया, हालांकि उसे सीटों में कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिली।

चुनाव के बाद ‘आप’ नेता अमानतुल्लाह खान ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि उसने चुनाव केवल ‘आप’ को हराने के लिए लड़ा, न कि अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए। वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने भी दो सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन उसे कोई कामयाबी नहीं मिली।

असदुद्दीन ओवैसी की रणनीति: मुस्लिम वोटों पर असर?

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस बार दिल्ली की मुस्लिम बहुल दो सीटों—ओखला और मुस्तफाबाद—से अपने उम्मीदवार उतारे। ओखला से शिफा-उर-रहमान और मुस्तफाबाद से ताहिर हुसैन को टिकट दिया गया। हालांकि, पार्टी को इन दोनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा और उसके उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे।

इससे बड़ा सवाल यह उठता है कि AIMIM का मैदान में उतरना किसके लिए फायदेमंद रहा? ओखला में AAP के अमानतुल्लाह खान को जीत मिली, लेकिन उनके आरोपों के मुताबिक, AIMIM और कांग्रेस दोनों ने मिलकर उनकी हार सुनिश्चित करने की कोशिश की। वहीं, मुस्तफाबाद में AIMIM के उम्मीदवार ताहिर हुसैन ने ‘आप’ के अदील खान को कमजोर किया और यह सीट भाजपा के खाते में चली गई।

ओवैसी ने चुनाव के नतीजों के बाद कहा, “मजलिस अपनी लड़ाई जारी रखेगी,” और साथ ही उन लोगों की रिहाई की बात की जो दिल्ली दंगों के बाद से जेल में बंद हैं।

अमानतुल्लाह खान का आरोप: कांग्रेस ने AAP की हार के लिए लड़ा चुनाव?

AAP के वरिष्ठ नेता और ओखला विधायक अमानतुल्लाह खान ने कांग्रेस पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी का मकसद केवल ‘आप’ को हराना था। उन्होंने कहा, “कांग्रेस को पता था कि वह चुनाव नहीं जीत सकती, फिर भी उसने भाजपा की राह आसान कर दी।”

उनका दावा है कि राहुल गांधी ने पहली बार ओखला में प्रचार किया, लेकिन उनकी रणनीति भाजपा को हराने की बजाय AAP को कमजोर करने की थी।

AAP का यह आरोप कितना सही है, यह चुनावी आंकड़ों से भी आंका जा सकता है। कांग्रेस का वोट शेयर 6.34% रहा, जो AAP और भाजपा के बीच के अंतर से अधिक था। यह इंगित करता है कि अगर कांग्रेस और AAP का वोट एकजुट होता, तो भाजपा को रोकने में मदद मिल सकती थी।

कांग्रेस ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने अपने दम पर चुनाव लड़ा और उनका प्रदर्शन पहले से बेहतर रहा। कांग्रेस नेता नरेंद्र नाथ ने कहा, “हमने किसी को हराने के लिए नहीं बल्कि खुद को जिताने के लिए चुनाव लड़ा।”

दिल्ली चुनाव का बड़ा संदेश: मुस्लिम वोटों का बिखराव और भाजपा की जीत

दिल्ली के चुनावी नतीजों से एक बड़ा संदेश यह मिला कि मुस्लिम वोटों का बिखराव हुआ, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिला। ओखला और मुस्तफाबाद जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर AIMIM और कांग्रेस के उम्मीदवारों ने AAP की जीत की संभावनाओं को कमजोर किया।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर AAP और कांग्रेस का गठबंधन मजबूत होता, तो नतीजे अलग हो सकते थे। लेकिन कांग्रेस ने गठबंधन के बावजूद दिल्ली में AAP के खिलाफ चुनाव लड़ा, जिससे विपक्षी वोट बंट गए।

AIMIM का दिल्ली चुनाव में उतरना भी चर्चा का विषय रहा। AAP ने आरोप लगाया कि यह पार्टी भाजपा के फायदे के लिए काम कर रही थी, हालांकि ओवैसी ने इस आरोप को खारिज कर दिया।

भविष्य की राजनीति: दिल्ली में AAP की चुनौती और भाजपा की मजबूती

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे दर्शाते हैं कि आम आदमी पार्टी के लिए अगले पांच साल चुनौतीपूर्ण रहने वाले हैं। भाजपा ने दिल्ली में अपनी पकड़ मजबूत की है और 2025 में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे है।

AAP के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वह कांग्रेस और AIMIM जैसे दलों से मुकाबला करते हुए अपने वोट बैंक को बरकरार रख सके। अगर विपक्षी पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ती रहीं, तो भाजपा को फायदा मिलता रहेगा।

असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM की भूमिका पर भी नजर रखनी होगी कि वह भविष्य में दिल्ली की राजनीति में कितनी सक्रिय रहती है और उसका असर कितना पड़ता है।

 दिल्ली की सियासत में नया मोड़

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 ने कई राजनीतिक समीकरण बदल दिए हैं। AAP की हार, भाजपा की जीत, कांग्रेस के उभरते वोट शेयर और AIMIM की रणनीति—इन सभी ने मिलकर दिल्ली की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि AAP इस हार से क्या सीखती है और आगामी चुनावों में अपनी रणनीति कैसे बनाती है। वहीं, भाजपा अपने विजय अभियान को जारी रखते हुए 2025 में दिल्ली में अपनी सरकार बनाने की कोशिश करेगी। कांग्रेस और AIMIM की भूमिका भी महत्वपूर्ण रहेगी, क्योंकि विपक्ष के बंटवारे से भाजपा को ही फायदा मिल सकता है।

दिल्ली की जनता ने इस चुनाव में जो फैसला सुनाया है, वह केवल राजनीतिक दलों के लिए ही नहीं, बल्कि मतदाताओं के लिए भी एक सबक है—सत्ता का संतुलन बनाए रखने के लिए एकजुटता जरूरी है।

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