
Dinosaur fossil remains discovered during excavation in Megha Village Jaisalmer, India, by scientists – Shah Times
डॉ. नारायण इनाखिया की राय: जुरैसिक काल का संकेत संभावित पर्यटन और Fossil Park की योजना
जैसलमेर में डायसलोर अवशेष: भारत के प्राचीन भूगोल का नया राज़
राजस्थान की रेत में अक्सर तहज़ीब, क़िलों और रियासतों की दास्तानें दबी होती हैं। लेकिन इस बार रेत ने सिर्फ़ इतिहास ही नहीं, बल्कि प्रागैतिहासिक ज़माने का राज़ भी उजागर कर दिया है। जैसलमेर ज़िले के फतेहगढ़ उपखंड के मेघा गाँव में तालाब की खुदाई के दौरान मिले अवशेषों ने वैज्ञानिक हलकों में हलचल मचा दी है। प्रारम्भिक जाँच के अनुसार ये उड़ने वाले शाकाहारी डायनासोर के हो सकते हैं।
शुरुआती खोज और प्रशासनिक प्रतिक्रिया
गुरुवार को जब मज़दूर तालाब की मिट्टी खोद रहे थे, अचानक उन्हें हड्डीनुमा ढांचा और पत्थर जैसे कठोर जीवाश्म मिले। ग्रामीणों ने तुरंत स्थानीय अधिकारियों को सूचना दी। फतेहगढ़ के एसडीएम और तहसीलदार मौके पर पहुँचे और अवलोकन के बाद रिपोर्ट जिला प्रशासन को सौंपी। इसके बाद मामला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) तक पहुँचा। अब वैज्ञानिक दल स्थल का उत्खनन कर नमूनों की जाँच करेंगे।
विशेषज्ञों की राय
डॉ. नारायण इनाखिया
उन्होंने स्थल पर जाकर बताया कि जीवाश्म 6 से 10 फुट लंबे किसी जीव के हैं जिनके पंखों जैसी संरचना भी दिख रही है। यह संरचना संभवतः जुरैसिक काल (लगभग 18 करोड़ वर्ष पूर्व) की है। हालांकि उन्होंने साफ़ कहा – “अभी इसे डायनासोर घोषित करना जल्दबाज़ी होगी, लेकिन इतना तय है कि यह किसी प्राचीन जीव का ढांचा है।”
प्रो. डी. के. पांडे
उन्होंने भूवैज्ञानिक तस्वीरों का अध्ययन कर बताया कि यह जीवाश्म संभवतः लाठी संरचना का हिस्सा है। उनके अनुसार – “यह खोज महत्वपूर्ण है क्योंकि पहली बार इस क्षेत्र की गैर-समुद्री लाठी संरचना में सरीसृप जीवाश्म मिले हैं।”
भूवैज्ञानिक महत्व
जैसलमेर पहले से ही डायनासोर बेसिन माना जाता रहा है। पूर्व में आकल और थईयात क्षेत्रों में भी डायनासोर से जुड़े जीवाश्म मिल चुके हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कच्छ बेसिन और जैसलमेर बेसिन आपस में “सिस्टर बेसिन” हैं। इस कारण संभावना है कि यहाँ और भी दुर्लभ प्रजातियों के जीवाश्म मिलें।
ग्रामीणों की गवाही
मेघा गाँव के मुकेश पालीवाल और सुरेंद्र सिंह ने बताया कि जब तालाब खुद रहा था, तो मज़दूरों को एक बड़ा ढांचा और लकड़ी जैसे कठोर पत्थर मिले। ये पत्थर असल में लकड़ी के जीवाश्म हो सकते हैं।
भारत के वैज्ञानिक मानचित्र पर असर
अगर यह खोज प्रमाणित हो जाती है कि यह वास्तव में फ्लाइंग हर्बिवोरस डायनासोर के अवशेष हैं, तो जैसलमेर न सिर्फ़ राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक मानचित्र पर उभर जाएगा।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
दुनिया भर में डायनासोर जीवाश्म खोजे जाते रहे हैं। अमेरिका के मॉन्टाना, अर्जेंटीना के पटागोनिया और चीन के लियाओनिंग प्रांत में बड़े पैमाने पर उड़ने वाले सरीसृपों के अवशेष मिले हैं। अगर जैसलमेर की खोज की पुष्टि होती है, तो यह भारत को इस वैश्विक मानचित्र में जोड़ देगा।
भविष्य की दिशा
वैज्ञानिक दल नमूनों की रेडियोकार्बन डेटिंग और CT-स्कैन टेस्टिंग करेंगे। उत्खनन से प्राप्त संरचनाओं की तुलना वैश्विक डायनासोर फॉसिल्स से की जाएगी। अगर यह खोज प्रमाणित होती है तो भारत सरकार यहाँ Fossil Park या Dinosaur Museum स्थापित कर सकती है।
नतीजा
यह खोज सिर्फ़ पत्थरों का ढांचा नहीं है, बल्कि हमारी धरती के करोड़ों साल पुराने रहस्यों की चाबी है। जैसलमेर की रेत ने साबित कर दिया है कि इतिहास की तरह भूगर्भ भी अनकहे अफ़सानों से भरा है।





